अटल अनंत

बुनियाद खड़ी कर दी अपनी नफरत के इतिहासों पर
आहत है वो जो लिखता मिटाता था काल के शीर्षासों पर

कैसे पल पल रार नई ठानेगा,गीत नई अब वो कैसे  गायेगा
लड़खड़ाते होंगे उसके भी पैर, कदम मिलाकर चल न पायेगा
जीते जी उसको मारा है मरने पर अस्थिकलश तक  बेचा है
मौत से भी ठानने वाला वो अब सिंधू में ज्वार कैसे उठाएगा
फेर दिया है पानी तुमने उसके खुद्दारी के प्रयासों पर
बुनियाद खड़ी कर दी अपनी नफरत के इतिहासों पर
आहत है वो जो लिखता मिटाता था काल के शीर्षासों पर



बेबस सा होगा बैठा वो भी बर्बादी अपने बगीचे की निहार
तेरी निष्ठुरता पल पल करती होगी उसके सीने पर प्रहार
क्या दिया जलाएगा अब वो कवि किसको गान सुनाएगा
आहत है जिसकी मुक्ति भी अब वो स्वतंत्र्ता क्या बुलायेगा
कलंकित दाग लगाया तूने उसके रचित उपन्यासों पर
बुनियाद खड़ी कर दी अपनी नफरत के इतिहासों पर
आहत है वो जो लिखता मिटाता था काल के शीर्षासों पर

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