खुदा ही जाने
खुदा ही जाने क्या क्या हश्र हुआ उन बेचारों का
कोई निशाँ नही मिला तेरी नज़र के शिकारों का
कोई फना हुआ तो कुर्बान हुआ इनकी चाहत में
जाने कैसा असर हुआ इन आँखों के इशारो का
इलाही मेरे कश्कोल को तू बस इतनी नेमत देदे
की मैं बोली लगा दूं हुस्न वालो के बाजारों का
जब वो बाल खोले हुए खिड़की से देखती है
लौंडे तो लौंडे,ईमान बिगड़ जाता है उम्रदारों क
मैं फकीर ही सही खरीद सकता हूँ बाजार को
मेरे सामने नुमाइश ना करना अपने मेयारो का
कोई जी हुजूरी तो कोई तकबीरी में मशगूल है
मैं भरोसा क्या करू इन बाज़ारू अखबारों का
मेरी नसीब की पतवार मेरे ये दोनो बाजुएँ है
मुझे कोई भरोसा नही इन लुटेरी सरकारों का
जिस्म का कोना कोना नोच कर खा सकते है
तुम भरोसा ना करना आज के चौकीदारों का
जो कमजोर है उनकी पड़गिया उछाल देता है
अब बस यही धंधा है तुम्हारे इन अखबारों का
कभी मजहब कभी कौम का जुलूस निकालते है
कुछ ऐसे ही सफर कट रहा है सारे नक्कारो का
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