दावेदारी

जिनकी खुद्दारी का शोर था वो अपनी खुद्दारी भूल गए
सागर पे  राज करने वाले कश्तियों की सवारी भूल गए

अमीरी के वक़्त जिन लोगों ने  रिश्तो की मिशाल दिया
गरीबी आते ही वो रिश्तेदार अपनी  रिश्तेदारी भूल गए

फकीरी का चोला  ओढ़े जिन लोगों ने नमाजे अदा की
घुंघरू के छंकार पर वो मस्जिदों की दावेदारी भूल गए

जब तक शराब ना थी कबीलो को जीत का भरोसा था
जैसे ही मैखाना बना, लड़ाके जंग  की तैयारी भूल गए

इस मोहब्बत  के सारे कांटे हमारे पैरो  में चुभे थे, पर
उनकी आंखों में देखा  और हम सारी दुश्वारी भुल गए

उसकी एक अदा पर लाखो लाख दीवाने कुरबान हुए 
उसको  देखते ही बीमार  भी अपनी बीमारी भूल गए

जिनकी खुशियों के लिए हमने खुद जो नीलाम किया
जब जरूरत पड़ी तो, वही यार अपनी यारी भूल गए











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