ये किस गली में रुके है कदम

ये किस गली में रुके है कदम ये किस गली में रुके है कदम
चलते चलते कहाँ पे निकल आये हम ये किस गली में रुके है कदम


यहाँ पे शरीफो को मिलते है धोखे जो आया यहाँ पे वो जाता है रोके
नही है किसी को किसी की जरूरत, कैसी हवा ये है किसकी शरारत
यहाँ शमशीर के साये में चले है कलम , ये किस गली में रुके है कदम



लगती यहाँ पे है खुशीयो की कीमत, डूबी है नशे में जमाने की शोहरत
डुबाया सभी ने सभी की है कश्ती, उजाड़े खुदाओं ने लोगो की बस्ती
चलो घर को  चले अब मेरे हमकदम, ये किस गली में रुके है कदम



फ़िज़ा है वीराना तो सूना है मंजर, होंठो पे हंसी है और हाथो में खंजर
मुरझाये सभी है जमीं भी है बंजर, सूखी है नदिया और सूखे है सागर
जिंदा होने का सबको है यहाँ पर भरम, ये किस गली में रुके है कदम


शहर के घरों की यही है कहानी, न चेहरे पे शिकना न आंखों में पानी
गिला भी करो तो नही है वो सुनता,कानो को मूंदे वो मन की है धुनता
गुलशन  में भी छाया है रंगों का गम, ये किस गली में रुके है कदम


चेहरे पर मुस्कान है आंखे फरेबी, अमीरी भी आयी जो बेची गरीबी
दरपन से होते है सारे ही वादे, कच्चे है सारे ये चाहत के धागे
की सूरज यहाँ पर  हुआ  है  मद्धम, ये किस  गली में रुके है कदम

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