मौत से भी जिंदगी का वादा निभाए बैठे है
बहरों के शहर में दर्द ए मोहब्बत सुनाए बैठे है
हम मौत से भी जिंदगी का वादा निभाए बैठे है
घर की तलाश में हमसे दोस्ती करने वाले सुनो
हम अपने आशियाने को आग लगाए बैठे है
कितने रंजिश कितने शिकवे यहां दबाए बैठे है
हम इस दिल को वसवसों का घर बनाए बैठे है
रहमत, इज्जत,शोहरत,नेमत, हसरत,अजमत
इस इश्क में हम न जाने क्या क्या गंवाए बैठे है
निशाँ ना ढूंढे कोई हमारी बर्बादी का इलाही
हम मसान में खुद की लकड़ियां सजाए बैठे है
बात थी उनके बस कमरे में उजाले की मुर्शीद
जिसकी खातिर हम घर अपना जलाए बैठे हैं
कभी मशहूर थे किस्से यहां रईसी के जो, अब
दुआ ,सफ़ा,वफ़ा ,नफा, हम सब गंवाए बैठे है
जिंदगानी के फलसफे किसी और को दे मुर्शीद
हम तो मौत के इंतजार में नजरें गड़ाए बैठे है
झूठ ही सही, पर सच मान हम मुस्कुराए बैठे है
ख्वाबों के सब परिंदों को मुंडेर से उड़ाए बैठे है

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