और हम क्या जाने


ये इश्क कितना सही कितना गलत, ये खुदा जाने
हम तो बस मरीज  ए इश्क है, और हम क्या जाने

बस ताउम्र तेरी आगोश में डूबे रहे हम  मुसलसल 
जमाने से बेखबर हम बस तेरी गोद का पता जाने

तेरे माथे को चूमना,  तुझको मेरी बाहों  में उठाना
ये काफिर तो बस इसी को  खुदा का सजदा माने

ये खुले बाल, आंखों पर चश्मा, गालों  पर डिंपल
आबिद तो उस एंजल को अपना तीनों जहां माने 

तेरी हँसी की खनक से खिल उठती है मेरी सुबह
तेरी ज़ुल्फ़ों की गिरह को हम शाम की दुआ माने।


इस राह ए उल्फत में तेरी नजरों में डूबते रहना है
हमें रास्ते का इल्म नहीं, हम क्या मंजिलों का पता जाने

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