राम बन गए हो तुम

इस ख़ला में मुकम्मल पैगाम बन गए हो तुम
जो  हर दुआ में रहे वही नाम बन गए हो तुम

हर पल  हर लम्हा  जिसे  मैं करता हूं इलाही
हां  वही मेरा  इकलौता काम बन गए हो तुम

अधूरे  ख्वाबों का एक  अंजाम बन गए हो तुम
बुझते चिरागों के खातिर  शाम बन गए हो तुम

इंतेज़ार में जिसने ये राह ए गुल बिछाए है यहां
हा उसी मुंतजिर शबरी के राम बन गए हो तुम

सूकून ए दिल का अव्वल इंतेज़ाम बन गए तुम
आयत ए इश्क का कोई कलाम बन गए हो तुम

हर मंजिल, हर  सफर जाते है तेरी ओर इलाही
मेरा शहर,मेरी गली मेरा मकान बन गए हो तुम

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