मेरी राधा
वो लड़की जिसके दिल में भक्ति ऐसे रहती है
जैसे लहरें सागर के संग संग बहती जाती है।
वो भगवान को माँगने नहीं, बस मानने जाती है—
बिना स्वार्थ,इच्छा,के बस खुद को जताने जाती है
उसकी आँखों कृष्णा की तस्वीर लिए चमकती है
वो लड़की जो लड्डू के नाम से राधा सी चहकती है
वो भगवान को माँगने नहीं, बस मानने जाती है
अपने आँसू तक उनके चरणों में चढ़ाने जाती है।
उसके अंदर राधा-सा पवित्र प्रेम पलता है,
जिसमें पाने की लालसा नहीं—
बस मिट जाने का सुख मिलता है।
उसका कान्हा उसके लिए आती जाती सांस-सा है,
उसकी धड़कनों में बसती बाँसुरी का मधुर राग-सा है।
उसके कदम रेत पर भी पड़ें तो राधा-पदचिह्न बन जाते हैं,
और उसकी चुप्पियाँ भी कान्हा की लीला के गीत कहलाते हैं।
प्यार इतना दिया, जैसे राधा ने कान्हा को दिया था,
खुद टूटकर भी प्रेम निभाती है, जैसे मीरा ने किया था
उसकी आत्मा में कृष्ण की छाया यूँ टहलती है,
जैसे कोई भावना , अपने विश्वास में पलती है
वो लड़की सिर्फ भक्त नहीं—वो राधा-सी अधूरी कहानी है,
जिसके हर भाव में कृष्ण बसते हैं…
और उसके लड्डू लाडो ही उसकी ज़िंदगानी है।
वो अपने प्रेम को पूजा बनाकर मेरी आंखों में पलती है,
और मुझको कृष्णा कह कह कर राधा-सी खिलती है।

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