क्या तुम वहाँ चलोगे

क्या तुम वहाँ चलोगे…जहाँ मेरा दर्द रहता है,
जहाँ मेरे इश्क़ का मौसम थोड़ा सर्द रहता है।

जहाँ वीरानियां एक रीआयत-सा लगती है,
जहां पर बेचैन सी मेरी मोहब्बत रहती है 

जहाँ मेरी धड़कनों की सरहद पर
खामोशियों के पहरे लगते हैं,

और टूटे ख़्वाबों की किरचों में
कई अरमान बहते हैं।

क्या तुम चलोगे वहाँ…
जहाँ मेरी अधूरी मोहब्बत बेचैन-सी ठहरी रहती है,
कभी वीरानियो से बातें तो कभी मेरा नाम कहती है।

जहाँ हर मोड़ पर तेरी याद का एक चराग जलता है,
और मेरी रूह का हर कोना तेरे इंतज़ार में पिघलता है।

क्या तुम चलोगे वहाँ…
जहाँ मेरे सीने में एक ठंडी आग दहकती है,
जहाँ मोहब्बत रूठी हुई और उम्मीद थकती है।

अगर हाँ—
तो चलो, मेरे साथ चलो,
उस राह पर जहाँ दर्द भी मेरा साथी है…
और तुम 
जो मेरे दिल का सुकून, मेरी सीने की ठंडक और मेरे चेहरे की मुस्कान ............

Comments

Popular Posts