इतनी बेकल नही होती
अब्र ए करम की बारिश यहाँ मुसलसल नही होती
मेरे शहर में ताब ए रहमत आज कल नही होती
तुझपर लिखा हर शेर अधूरा है तो सिर्फ इसलिए
हमारी कहानी बनती तो है पर मुकम्मल नही होती
दिलकशी में ताक़ ए हुस्न का रिवाज देख इलाही
दीदार ए तलब होती तो है पर हर पल नही होती
उनके कंधे पर सिर रखे कई शामे बीत जाती हो
छोड़ो यार ऐसी हसीन बाते आज कल नही होती
मिलन की हड़बड़ी में श्रृंगार कुछ अधूरा रहता है
कभी कंगन नहीं होता तो कभी पायल नही होती
कुछ तो एहसास उसने भी दिल मे दबाया है बावरें
वरना तेरे बगैर वो महफ़िल में इतनी बेकल नही होती
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