नूर ए महताब का रंग वो बू मिले

निगाह ए ताक़ को बस इतनी ही आरजू मिले
मैं नींद में जब भी रहूँ मेरे ख्वाबों में बस तू मिले

मुझपर बस  इतनी इनायत रखना मेरे मुर्शिद
इस चमन जार में बस तेरी ही तेरी  खुशबू मिले

एक एक हर्फ़ में रवां रहे उसकी बातें इलाही
मेरी ग़ज़ल को जिक्र ए यार का ऐसा रफू मिले

फिर किसी जन्नत की ख्वाहिश ही ना मिले
खुदा उसकी आगोश में मुझे इतना सुकूँ मिले

तेरी कहानी चाहे मुकम्मल हो ना हो बावरें
तेरे किस्से में नूर ए महताब का रंग वो बू मिले

मिसरे पढ़ के खुदा भी उसकी तस्बीह करे
कलम तेरे अल्फाज़ो में वो इतनी बा वजू मिले



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