कुछ ऐसे रच जाऊँ मैं
इन हाथो पर मैरून बन कर बिखर जाऊँ मैं
उनकी लकीरों में कुछ इस कदर बस जाऊँ मैं
किसी और के नाम का रंग चढ़ ही ना पाए
मेहंदी बन कर उनके हाथों पे कुछ ऐसे रच जाऊँ मैं
अगर मेहन्दी खिलने से इश्क़ बढ़ता है इलाही
तो कुछ ऐसा कर कि मैं दरख़्त ए हिना बन जाऊं मैं
जो नज़रे मिले तो जरा आहिस्ता धड़कना दिल
ऐसा न हो मैं इज़हार ए इश्क़ से पहले ही मर जाऊँ मैं
बेफज़ूल है ये महल,चमन-जार,ये दीवारे नक्कास
अब उनकी आंखों से फुरसत मिले तो अपने घर जाऊँ मैं
अब जो उनके केशुओँ की छांव मिले मुरशिद
तो चमन ए सजर छोड़ कर ताउम्र यही ठहर जाऊँ मैं
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