हमने अपने खजाने लुटा दिए


बस एक बार नज़रे मिली और राज सारे बता दिए
उन्होंने निगाहों पर हमने अपने  खजाने लुटा दिए

महफ़िल  में एक रोज जिक्र ए नशा का दौर चला
और हमने किस्से तुम्हारी इन आँखो के सुना दिए

अब अपने हुजरे की कैफियत  पे क्या रोये जनाब
इन  आँखों ने तो जाने कितने  सल्तनत डूबा दिए

कोई मीर कोई जौन कोई फ़राज़ तो कोई राहत
देख तेरी निगाहों ने यहां कितने शायर बना दिये

जरा इनमे डूब जाने की तेरी तलब तो देख बावरें
अपनी कश्ती की पतवार तूने दरिया को थमा दिए

जो समंदर हो तो तैर के पार भी कर जाए बावरा
उसकी आँखों के जाने कितने तलातुम जगा दिये

शर्त तो  लगी थी बस  एक   दो घूँट की ही इलाही
नशा  गहराता  गया और  हमने मैखाने  उड़ा दिए

Comments

Popular Posts