मेरी गैरत

जब से शहर की हवा लगी तब से तू नशे में चूर है,
रुसवाई  बेवफाई  तन्हाई  जुदाई  सब  भरपूर  है।

यू तो  मेरी गैरत कहती है, तुम्हे कॉल भी न करूं,
पर क्या करूँ मैं दिल अपनी आदत से मजबूर है।

वैसे  हज़ारो लाखो हुस्न के खुदा है मेरे शहर में,
पर न जाने क्यों  तुम्हे ही  खुद पर बड़ा गुरूर है।

मेरा ग़म  मेरी रुसवाई, तेरे रकीब तेरी बेवफाई,
शहर में  बस हम दोनो  की यहीं बाते मशहूर है।

चाहे जला दे  मिटा दे दगा  दे  या  फिर भुला दे,
तू जो भी सजा दे मुझको हर  हाल  में मंजूर है।

जो तुम्हारी आदत है इसमें  तुम्हारा कसूर नही
शहरे दिल्ली की   हवा  ही  कुछ इतनी बेनूर है

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