निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ

निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ
न डरो न हटो,कर्म यही करते जाओ


राह में बाधाएं तो आयेगी सारी
बरसती रहेगी अग्नि करके तैयारी

डगमग पथ पर काँटे पड़ते रहेंगे
ज्वारो सा ये हिलोल करते रहेंगे

कंटकपथ हो,बिखरा हो अंगारा
परिधि घेर खड़ी हो अग्नि सारा

हिमखंड हिमालय हो या हो पर्वतमाला
हिम्मत दिखा इनपर चढ़ते जाओ

निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ




चाहे प्रकाश फैले या फैला हो अंधेरा
संध्या छाये या हो लालिमायुक्त सवेरा

हर दुख में हर सुख में पलना होगा
रूदन और हंसी दोनो में ढलना होगा

सुख दुख भाव से भी आगे बढ़कर
विजयरथ के भी मस्तक पर चढ़कर

अथक अकूत अद्भुत साहस लाकर
नभ,थल,जल मे सतत बढ़ते जाओ

निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ




बढ़ना होगा सूनेपन से वीरानों में
बढ़ना होगा इन उपवन उद्यानों में

घनघोर अंधेरे में भी चलना होगा
सूर्य समान उजाले में पलना होगा

शक्तिशाली जोश भरी जवानी होगी
बृद्धावस्था की लाचार कहानी होगी

पित्र के प्यार में ममता के ममकार में
संघर्षो की राह को ही चुनते जाओ

निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ

 


जयकारों सम्मानों से ऊंचा सिर हो
हार से झुका नतमस्तक या फिर हो

उजले से दामन मे यदि कीचड़ आये
चाहे प्रकोप प्रकृति का भीषण आये

चाहे जो ईश्वर राह ये सारी बंद कर दे
उम्मीदों की इस नौका में पानी भर दे

विशालकाय बवंडर बने या हो समुंदर
हौसले की ले नौकाऐं तूफानों में पलते जाओ


निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ



न डरो न हटो सुनिश्चित अपनी जीत करो
जीवन का मोह त्याग मृत्यु संग प्रीत करो

क्षण भर की जीत मिले या आये लंबी हार
बेरंग से ख़ाद्य मिले या मिले नौरंगी थाल

लाखो लाख सारे तूफान अब आते रहेंगे
तन को मन को पल पल झकझोरते रहेंगे

आएगी सारी विपदा,घेरेंगी हर पल आपदा
निर्मल जल सा हर साँचे में ढलते जाओ


निज कर्मपथ पर तुम चलते जाओ
न डरो न हटो,कर्म यही करते जाओ

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