जाने कब

बात शुरू हुई थी मोहब्बत से जाने कब कहर तक पहुची गयी
फिर गली कस्बो से शुरू हुई हवा जाने कब शहर तक पहुची गयी

जाने क्या सुकून मिलता है तुम्हे खुद का इंतेज़ार करवाने में 
अब बाट जोहने की वो रात बीतते बीतते सहर तक पहुच गयी

मोहब्बत में बदनाम इतने हुए कि हमारा भी नाम  हो गया
फिर बदनामी की मेरी शोहरत भी शहर के हर घर तक पहुँच गयी

बदल जाते है न जाने कितने जज्बात इन गुलाबी फ़िज़ाओं पर
अब जो दिल से शुरू हुई वो खुमारी अब मेरे सर तक पहुँच गयी

मगरूरियत ने मार डाला न जाने कितने फनकारों को
अब ऐब की वो मार लहज़े से शुरू होकर मेरे हुनर तक पहुच गयी

नज़रो ने जब नजरो को देखा तो बयाँ किया हाले जहन
फिर दिल की सारी बातें मेरे नज़र से उसके नजर तक पहुँच गयी

हर रोज दिल्लगी की आदत ने तेरा दिल खोखला कर डाला
अब तेरे दिल की गहराई समंदर से होती हुई नहर तक पहुँच गई

जुबां बंद किया तो सैकड़ो तूफान जगने लगे इस मन में
फिर जहन के तूफान की हालत साहिल से हो लहर तक पहुँच गयी


कुछ पल तो तूने भी खूब निभाया मोहब्बत का वो रिश्ता,
अब मीठेपन से भरे रिश्तों की चखाई अब अमहर तक पहुँच गयी

सपनो की मंजिल खुद से पाने का हुनर सीखा है हमने,
अब मेरे ख्वाबो से सजी डोली खुद ब खुद महर तक पहुच गयी


बड़ी प्यारी लगती है हवाएं ,जबसे इकरारे मोहब्बत हुई है
जैसे काफिये की शुफ़ियाना राग अब सुनहरे बहर तक पहुँच गयी


बड़े किस्से सुने तेरी बहादुरी के मुझसे टकराने से पहले
अब असद मारने की तेरी वो हिम्मत दुबले तहर तक पहुच गयी


बड़े जान निशार करते थे वो भी जब तक रईसी थी मेरे साथ
फिर जीने जिलाने वाली हसरते-दिल अब जहर तक पहुँच गयी

बदनाम हो गए अक्सर सारे मेरी बदनामी की बात करने वाले
जिससे बात जहाँ से चली कम्बखत वो बात उसी पर पहुच गयी

बड़े जोर शोर से शुरू हुए तेरी मुहब्बत के चर्चे सारे शहर में
फिर उजलत में शुरू शफ़ाक़त, मुलाकात के गहर तक पहुँच गयी


मोहब्बत में तेरी खाई गई कसमों का हश्र कुछ ऐसा हुआ 
जैसे मोहब्बत भरी एक सुबह,शाम की उदास पहर तक पहुँच गयी

आंखे टिक ही नही पाती कई चाँद समेटे तेरे इस मुखड़े पर 
नज़रो के फिसलन की मार चेहरे से होकर कमर तक पहुँच गयी

जाने कब वो गुस्सैल चेहरा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा
जाने कब नफरत भरी तकरार ,मोहब्बत भरी चहर तक पहुँच गई




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