अन्नदाता
उखाड़ दे गद्दी जो गद्दारो की,धार इतनी तेरे वार की है
नक्श पलट दे सरकारों की,बात अब तेरे दस्तार की है
खून तेरा समाया हर कण में,पसीने ने सींचा है मिट्टी को
खरीदे तेरे हौसलों को,ये औकात कहा इस बाजार की है
तेरा चावल,तेरा गेँहू,खाई हमने तो बस तेरी ही दाल है
सरकारी जेबों में जो भरा हुआ, वो तो तेरा ही माल है
हक़ की खातिर लाठी खाई,तूने सड़को पर खून बहाया
तूने अन्न खिलाया डंडे पाया,साहेब का कैसा ये कमाल है
कर्मभूमि उपासक हो तुम भारत माँ के अनुपालक हो
जिसका आंचल सोने का हो,उस माँ के ऐसे बालक हो
अनाजो के तुम हो दाता, इस देश के भाग्य विधाता हो
लोगो की भूख मिटाने वाले तुम हर पेट के पालक हो
कब तक सिसकेगा तू, कब तक आंखों से आंशू बहायेगा
कब तक जुल्म सहेगा ,कब तक मजबूरी अपनी छुपायेगा
उठ देख नया अब सवेरा पुकारता,है पुकारती माँ भारती
अपने हाँथो खुद किस्मत लिख, तब तू बलवान कहायेगा
मत सह अब तू पानी की बौछार को लाठी की मार को
है सबसे ज्यादा ताकतवाला दिखा दे इस सारे संसार को
तेरी भुजाये ही सींचती है इस धरती माँ का प्यासा सीना
छोड़ मांगना भीख इनसे ,उठा अपने खेतो के औजार को
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