इंकलाबी लाल टोपी

सर पर विराजित ये लाल टोपी क्रांति की अलख जगाती है
बढ़ जाता जब अत्याचार जब, बिगुल विरोध का बजाती है
संघर्षो में न थकने देती ये हमको न ये पराजित हो पाती है
तुम क्या जानो मोल, स्वाभिमानियो का ये सम्मान बढ़ाती है


लहूलुहान हो जाता बदन जब, ये मरहम बन जाती है
जुल्म करता जो जनता पर,उसे हैसियत पर लाती है
इंकलाब, क्रांति के दीवानों को ये टोपी खूब सुहाती है
वतन पर जान छिड़कने वालो वीरो को खून लुभाती है
ललाट के खालीपन को विजयी तिलक सा सजाती है
सर पर विराजित ये लाल टोपी क्रांति की अलख जगाती है
तुम क्या जानो मोल, स्वाभिमानियो का ये सम्मान बढ़ाती है




तुमने न इसकी ताकत जानी,न तुम इससे अबतक टकराये
जब भी पड़ा तुम्हारा इससे पाला तुम अपने धाम भाग पराये
दबोचा जब भी इसने तुमको,तुम संसद तक जाकर कराहे
जुल्म कर क्रांतिकारियों पर तुमने अपने घड़े पाप के भराये
क्रांति निशानी है ये चिलम नही जो शाम बखत चढ़ जाती है
सर पर विराजित ये लाल टोपी क्रांति की अलख जगाती है
तुम क्या जानो मोल, स्वाभिमानियो का ये सम्मान बढ़ाती है


टोपी नही ये मान हमारा है, रंग नही ये स्वाभिमान हमारा है
इसके रंग में क्रांति पलती, जाने कितने तख्तो को नकारा है
ये मातृभूमि ही जननी है इसकी ,इंकलाब ही इसका नारा है
इसने तानाशाहों को मार भगाया, सदा वीरता को सवांरा है
टोपी यह लाल रंग की संघर्ष क्रांति विजय रण को दर्शाती है
सर पर विराजित ये लाल टोपी क्रांति की अलख जगाती है
तुम क्या जानो मोल, स्वाभिमानियो का ये सम्मान बढ़ाती है

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