प्रियदर्शनी

अधरों पर अद्भुत अच्छादित  ये आकाश दिख रहा
प्रीतम की पावन पुनीत पल पल पड़ती है आंख पर
लाल लाल लालिमा ललक रही लाल से ललाट पर
चंचल चांदनी चमक रही चंदन से चेहरे के चाँद पर

मोहक सी मुस्कान मन्द मन्द मार रही मुखड़े से
रंगों के राजा और रानी स्पर्श से इसके रंगाती है
कमसिन सी कमरिया तो कांप रही है ऐसे जैसे
छुई मुई छूने से ही छड़ में आगोश में छुप जाती है

होठो की लाली गुलाब की पंखुड़ी सी चमक रही
नीली आंखे नीले समुंदर सी गहरी नज़र आती है
सांसो की खुशबू मतवाली रातरानी सी महक रही
काले घने केशुओं में सुंदर सी घटा निखर आती है

चले चाल इठला कर गली गली कुछ ऐसे जैसे
चाल देख नागिन भी शरमा कर चली जाती है
नाक की नथुनिया इस मुखड़े पर अस लग रही
जैसे भोर की किरण फूलो के बाग को जगाती है

केशुओं की काले काजल सी परछाई खिल रही
जैसे काली नागिन अपने रूप में सिमट आती है
गोल गर्दन की गहराई तो नापे से भी न नापी जाए
जिसमे तो झरने से गिरती धारा भी डूब जाती है

काली नागिन सी काली घुंघराली सवाँर रही अलकें है
अँखियों से उठके झुके हया को दिखाय रही पलके है
मुसका के देखे जो लगेकी रातरानी खिल रही रातों में
शरमा के जो मुख झुकाए चाँद तारे अदाओ से जलते है


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