जो आदमी बीजेपी के जन्मदाता अटल जी की मौत के नाम पर उनकी अस्थियां लोटो में भर कर घुमा घुमा कर वोट जुगाड़ने की कोसिस कर सकता है वो भला सेना को वोट के लिए बेचने से कैसे कतरायेगा। शहादत से लेकर एयर स्ट्राइक तक को वोट के दुकान में बदलने की कोसिस किया गया। पूरी कोसिस की गई कि शहादत और वीरता नाम के इस "प्रोडक्ट" को बेचने के बदले अच्छे दाम वाले वोट मिल जाए, और चुनावो में मुद्दों को दबाकर सिर्फ सेना के शौर्य को बेचकर काम चला लिया जाए। और युद्ध का मोर्चा संभालने का काम दलाल पत्रकारों समेत गोदी मीडिया को दे दिया।
युद्ध किसी समस्या को रोक सकता है, उसका समाधान नही हो सकता। देश मे युद्ध , नफरत और उन्माद का माहौल बना कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले आजकल बहुत ज्यादा बढ़ चुके है। देश मे युद्ध की परिस्थिति बनना देश की सुरक्षा और संप्रभुता का एक हिस्सा है।और जब पड़ोसी इतना बेशर्म और नंगा देश हो। जिसके पास न कुछ खाने को हो न कुछ बनाने को है , सिर्फ आतंक की सरपरस्ती उसका मुख्य काम हो।
ऐसे में कोई भी ताकतवर देश की सेना ज्यादा समय तक बर्दास्त नही कर पाती और एक समय पर जवाब दे देती है। और इसके लिए सेना को किसी "फ्रीहैण्ड" की जरूरत नही होती। क्योंकि सेना के पास ये " फ्री हैंड" जुलाई 1990 से है। और सेना के इस फ्री हैंड का नाम है "अफ्सपा" यानी कि स्पेशल फोर्सेज पावर एक्ट , जम्मू कश्मीर।
ये एक्ट सेना को वो शक्तियां देती है जिसके बाद सेना किसी 56 इंच वाले , 72 इंच वाले या 156 इंच वाले कि किसी भी कथित परमिशन की मोहताज नही है।
लेकिन यहाँ इस देश मे बहुत से लोग है या साफ साफ कहे तो मोदी जी और उनके कुछ खास ऐसे लोग लगतार सेना की उपलब्धियों को अपना बता कर वोट लेने के फिराक में लगे हुए है। जिस दिन सेना ने एयरस्ट्राइक किया उस दिन मोदी जी रैली में गाना गा रहे थे " ये देश नही झुकने दूंगा, ये देश नही बिकने दूँगा" । और उसी के दो घंटे बाद लखनऊ एयरपोर्ट समेत 5 एयरपोर्ट अडानी को 50 साल के लिए दे दिया गया। और जिस दिन विंग कमांडर अभिनंदन पाकिस्तान की गिरफ्त में थे , उस दिन मोदी जी अपनी पार्टी का कार्यक्रम "मेरा बूथ सबसे मजबूत" कार्यक्रम कर रहे थे। जिससे नाराज होकर लोगो ने उसी दिन ट्रेंड किया "मेरा जवान सबसे मजबूत"।
वैसे जो आदमी बीजेपी के जन्मदाता अटल जी की मौत के नाम पर उनकी अस्थियां लोटो में भर कर घुमा घुमा कर वोट जुगाड़ने की कोसिस कर सकता है वो भला सेना को वोट के लिए बेचने से कैसे कतरायेगा। शहादत से लेकर एयर स्ट्राइक तक को वोट के दुकान में बदलने की कोसिस किया गया। पूरी कोसिस की गई कि शहादत और वीरता नाम के इस "प्रोडक्ट" को बेचने के बदले अच्छे दाम वाले वोट मिल जाए, और चुनावो में मुद्दों को दबाकर सिर्फ सेना के शौर्य को बेचकर काम चला लिया जाए।
इस बार कर ही उदहारण ले तो पुलवामा अटैक के ही दिन से इस वोट की नौटंकी की शुरआत हो गयी । मेरे व्हाट्सएप पर कई सारे मैसेजेस आए की "सर्जिकल स्ट्राइक टू करना है तो बीजेपी को वोट दीजिए"। सूरत में शहीदों की याद में एक कैंडल मार्च निकाला गया। जिसमें बहुत सारे लड़के लड़कियां शामिल थे। अब आप कहेंगे कि इसमें वोट की राजनीति कहां से आ गयी ?जी हां इसमें वोट की राजनीति थी क्योंकि उस कैंडल मार्च में लड़के लड़कियों को जो टी-शर्ट पहनने के लिए दिया गया था, उस टीशर्ट पर "नमो ओन्ली" लिखा हुआ था। जी हां शहीदों की आत्मा की शांति के लिए निकाले हुए कैंडल मार्च में आये हुए लोगों को "नमो ओनली" के टीशर्ट पहनाए गए।
ये किसके लिए था ? इसके माध्यम से किसको प्रमोट किया गया ? इस प्रमोशन से किसको वोट का फायदा दिलाने की कोसिस किया गया ?
कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह समेत उनके शीर्ष नेतृत्व में से बहुत सारे नेताओं ने सेना और सर्जिकल स्ट्राइक के क्रेडिट को मोदी जी को देते हुए उसके लिए वोट बनाने की कोशिश की है । मोदी जी भी इसमें कहीं पीछे नहीं रहे ।और उन्होंने भी सेना की हर अच्छे काम को अपनी उपलब्धता बताया लेकिन जब भी सेना में कोई शहादत हुई या कोई नुक़सान सेना को हुआ उस समय मोदी जी चुप्पी मारकर बैठे रहे । और उस नुकसान की जिम्मेदारी अपने सर पर ना लेते हुए उन्होंने उस सारे नुकसान उसका जिम्मेदार पिछली सरकार और जवाहरलाल नेहरु जी को बताया है।
उन्होंने तो सार्वजनिक मंच से सेना के नाम और वोट की राजनीति तो किया ही, लेकिन उन्होंने राजनीति करने के लिए सेना के मंच का भी इस्तेमाल किया और सेना के मंच को अपनी राजनीति अपनी नफरत अपने उन्माद का एक अड्डा बना कर राष्ट्रीय समर स्मारक से वोट का एक मेनिफेस्टो पेश किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली इंडिया गेट के पास 'राष्ट्रीय समर स्मारक' राष्ट्र को समर्पित किया। यह स्मारक आजादी के बाद से देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले सैनिकों के सम्मान में बनाया गया था।
स्मारक के उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने अपनी वोट की दुकान वाला बिजनेस शुरु किया और खुले मंच से अपना दुकान खोलकर वोट का प्रोडक्ट भेजना शुरू किया । और यह कहा कि कांग्रेस ने सेना के पैसों से सिर्फ अपने परिवार के लिए काम किया ।प्रधानमंत्री ने कहा कि मां भारती के लिए बलिदान देने वालों की याद में निर्मित राष्ट्रीय समर स्मारक, आज़ादी के सात दशक बाद उन्हें समर्पित किया जा रहा है। राष्ट्रीय समर स्मारक की मांग कई दशक से निरंतर हो रही थी। कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री ने राफेल का भी जिक्र किया। उन्होंने राफेल पर बोलते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया और कहा कि उनकी सरकार के दौरान हुए रक्षा सौदों में घोटाले हुए और सेना की अनदेखी की गई।
पीएम मोदी ने कहा कि अब राफेल को रोकने की साजिश हो रही है। पीएम मोदी ने कहा, 'पहले सरकारों ने देश के वीर बेटे-बेटियों के साथ सैनिकों और राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया गया। यहां तक कि सेना के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं खरीदी गईं। लेकिन हमारी सरकार ने 2 लाख 30 हजार से ज्यादा बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदीं।" पीएम मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि पहले सरकारों ने अपनी कमाई का साधन बना लिया था।
ये सब मोदी जी उस जगह से कही जहाँ वो एक प्रधानमंत्री की हैसियत से सरकारी खर्चे पर सेना के एक मेमोरियल का उद्घाटन करने गए थे। सेना के मेमोरियल की चिंता छोड़ मोदी जी सेना के मंच से अपने विपक्षियों पर हमला बोलने में ज्यादा भलाई समझी। क्या वो सेना के जवानों के मन मे कांग्रेस के लिए नफरत भरने की कोसिस कर रहे थे ? क्या इनके लिए हर जगह सिर्फ और सिर्फ वोट ही मायने रखता है ?
यह बात पूरी तरह से सच है कि मोदी जी को और भारतीय जनता पार्टी को सेना की चिंता नहीं है । अगर थोड़ी भी होती तो देश के ऊपर हुए आतंकवादी हमले के बाद रखी गई सर्वदलीय बैठक में बैठक शामिल होने की बजाए पुणे में रैली करने नहीं जाते। अगर उनको देश के जवानों की चिंता होती तो पाकिस्तान के बीस लड़ाकू जहाजों की सीमा में अंदर घुसने और देश के एक जांबाज पायलट की पाकिस्तान की सीमा में फंसे होने के अगले दिन ही "मेरा बूथ सबसे मजबूत" नाम का कैम्पेन करने में व्यस्त नहीं रहते।
यही नहीं जिस दिन पाकिस्तानी एयर फोर्स के विमान भारत की सीमा में दाखिल हुई उसके अगले दिन जब विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ने का ऐलान इमरान खान ने किया उसके बाद एक ओर जहां पाकिस्तान की असेंबली में वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने विपक्ष का सम्मान किया और उनके सामने झुक गए। लेकिन उसी वक्त हमारे देश के प्रधानमंत्री देश भर में घूम – घूम पर देश भर में विपक्ष को गाली देने में व्यस्त थे। वे विपक्ष से मदद की उम्मीद भी करते हैं और दूसरी ओर उनको गाली भी दे रहे हैं। यह सही नहीं है।
हम प्रधानमंत्री जी से ये जरूर पूछना चाहेंगे की - क्या आज उनके लिए देश जीतना जरूरी है या चुनाव ?
आज देश को मजबूत करना ज्यादा जरूरी है या भाजपा का बूथ जीतना ?
सत्ता में वापसी ज्यादा जरूरी थी या अभिनंदन और उनके जैसे कई युद्धबंदियों की वापसी ?
हमारे देश की सेना दुनिया में सबसे ज्यादा मजबूत है। क्या यह सिर्फ चार साल की देन है ?
पिछले 70 साल के भारतीय जनता के समर्पण या विश्वास कुछ भी नही ?
मिराज जैसे फायटर जेट किसकी देन है?
प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए कि चार साल में क्या मिला देश को नफरत और भय के अलावा ?
प्रधानमंत्री जी आप सत्ता के लिए हमारे सैनिकों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। सैनिक देश के निर्माण और मानवता को बचाने के लिए हैं। राजनीतिकरण के लिए नहीं। जब कारगिल की लड़ाई हुई, तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना पर राजनीति नहीं की। सेना का मनोबल बढ़ाया।अमरीका और इजारइल ने भी आंतकवादियों को मारा, लेकिन उस पर राजनीति नहीं की।
आज सैनिक अपने पराक्रम को दिखाते हैं, मगर वर्तमान भाजपा सरकार मोदी जी सेना के इस पराक्रम का इस्तेमाल राजनीति के लिए कर रही है। चुनाव जीतने के लिए वे इतने उतावले हैं कि ये सेना पर राजनीति कर उनके मनोबल से खेल रहे हैं। और अब तो जल सेना, थल सेना और वायु सेना के बाद अब नरेंद्र मोदी के गुणगान में मीडिया सेना खड़ी हो गई है। बीजेपी की इस वोट कटाई खेल में अगर कोई कदम से कदम मिलाकर पूरी तरह से साथ दे रहा है तो वह मीडिया। भारत की मीडिया और उसे कुछ पत्रकार जो कि रोज "एनालिसिस" कर रहे हैं या रोज आकर चैनलों पर गला फाड़ फाफ कर चिल्ला रहे है ।
उन्होंने न्यूज़ रूम को एक वार रूम में बदल रखा है। वह लगातार देश की जनता की भावनाओं को युद्ध के लिए ना सिर्फ भड़का रहे हैं बल्कि इस युद्ध की भावना को लेकर देश की जनता को इशारों ही इशारों में और कुछ तो खुले रूप से बीजेपी को वोट देने की बातें भी कर रहे है। हम चुप कर बात करने में यकीन नहीं रखते । इसलिए मैं सीधा सीधा नाम लेना चाहूंगा । युद्ध का माहौल बनाने और बीजेपी के लिए इस माहौल को पक्ष में करने का काम सबसे ज्यादा से शुरू से अर्णब गोस्वामी की रिपब्लिक टीवी और सुभाष चंद्रा के जी न्यूज़ के चैनल कर रहे हैं । यह लोग न्यूज़ रूम में बैठे बैठे ही वह माहौल बना रहे हैं । जैसे कि युद्ध एक खेल हो जो 10 मिनट में खत्म हो जाएगा ।असली औकात इन लोगों की तो समझ में आएगी जब इनको खुद बॉर्डर में भेज दिया जाएगा।
भारतीय मीडिया के एंकरों को देखा तो हैरान रह गया कि कैसे टीवी पर चीख़ते, बदला लेने के लिए जनता को उकसाते और सरकार पर दबाव बनाते टीवी चैनल ख़ून के प्यासे हो गए हैं। नहीं होता कि कैसे उन्हें शांति की हर बात नागवार गुज़र रही है, वे हर उस आवाज़ को तुरंत दबाने के लिए तैयार बैठे हैं जो अंधराष्ट्रवाद और युद्ध का विरोध करती दिखाई पड़ती है।
पिछले एक दो सप्ताह में मीडिया ने झूठ और अधकचरेपन के नए कीर्तिमान रच डाले हैं, उसने दिखाया है कि वह कितना ग़ैर ज़िम्मेदार हो सकता है और ऐसा करते हुए उसे किसी तरह की शर्म भी नहीं आती, एकतरफ़ा और फर्ज़ी कवरेज की उसने नई मिसालें स्थापित की हैं, उसने उन पत्रकारों को शर्मसार किया है जो पत्रकारिता को एक पवित्र पेशा समझते हैं और उसके लिए जीते-मरते हैं। सच तो यह है कि इस दौरान भारतीय और पाकिस्तानी अधिकतर पत्रकार, मीडिया की तरह काम कर ही नहीं रहा थे, वे एक प्रोपेगंडा मशीन में बदल चुके थे। वे सत्ता और उसकी विचारधारा के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे, उनका प्रचार-प्रसार कर रहे थे, बिना हिचक के देशभक्ति के नाम पर युद्धोन्माद फैला रहे थे।
पुलवामा हमले के बाद सिलसिला शुरू हुआ भावनाओं को उभारने का। भारतीय मीडिया ने ख़ास तौर पर जवानों के शवों और अंतिम संस्कार के दृश्यों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। इसका लाभ सत्तारूढ़ दल बीजेपी को मिलना तय है क्योंकि उसके नेता अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुँच रहे थे, सैनिको के परिजनों से वे बदला लेने के बयान दिलवा रहे थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि मीडिया सवाल करना बिल्कुल भूल गया जबकि प्रश्न करना ही उसका मुख्य काम है। उसे याद नहीं रहा या फिर उसने यह भूल जाना ठीक समझा कि ज़रा ख़ुफ़िया एजंसियों की नाक़ामी के बारे में भी सवाल करे।
सरकार से पूछे कि जवानों और सेना के कैंपों पर एक के बाद एक बड़े हमले हुए हैं मगर वह कुछ कर क्यों नहीं पा रही।
उन्होंने ने ये पूछने की हिम्मत नही उठायी की क्यों जवानों को एयरलिफ्ट करने की मांग ठुकरा दी गयी।
उन्होंने ये नही पूछा कि पहले से हमले का इनपुट होने के बाद भी हमला कैसे हो गया ?
अजीत डोभाल से उनकी नाकामी के बारे में कोई सवाल पूछा गया क्या ?
चैनल युद्ध का माहौल बनाकर कवियों से दरबार सजवा रहे हैं। और प्रधानमंत्री हैं कि शांति पुरस्कार लेकर घर आ रहे हैं। कहां तो ज्योति बने ज्वाला की बात थी, मां कसम बदला लूंगा का उफ़ान था लेकिन अंत में कहानी राम-लखन की हो गई है ,वन टू का फोर वाली। तरह तरह से भारत की सीमाओं का और भारत के हत्यारों का एक प्रदर्शनी एक झांकी लगी हुई है न्यूज़ चैनलों पर । कभी कोई भारत की ब्रह्मोस मिसाइल के प्रभाव को दिखा रहा है। तो कभी कोई राफेल आ जाने के बाद भारत की बड़ी हुई शक्तियों को दिखा रहा है । न्यूज़ चैनलों ने एक मंच सजा कर तरीके से युद्ध को बेच कर वोट और टीआरपी कमाने का बढ़िया जुगाड़ कर लिया।
कोई नही पूछ रहा है कि क्यों भाजप के लिए चुनाव और बूथ सेना से ज्यादा जरूरी है ।
एक ओर पूरा देश विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई और उनकी सलामती को लेकर चिंतित था। लेकिन भाजपा की रैली नहीं रूकी। बाइक रैली से लेकर गठबंधन करने और "मेरा बूथ सबसे मजबूत" कार्यक्रम चलाने तक ये लोग सिर्फ और सिर्फ अपने वोट और अपनी राजनीति को।चमकाने में व्यस्त थे। जिन्हें इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि अपना जवान मजबूत हो या न हो। इन्हें तो सिर्फ अपना बूथ मजबूत करने की चिंता है। और सेना की शहादत से लेकर सेना की वीरता को ये अपने वोट की दुकान की नज़र से देखते हुए आते है।
पहली सर्जीकल स्ट्राइक से लेकर दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक के तक सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक बीजेपी नेताओं में इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने की होड़ लगी हुई थी। देश के कई शहरों में बीजेपी नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पोस्टर लगाए थे। ऐसा करके बीजेपी निश्चित तौर पर सर्जिकल स्ट्राइक का सियासी लाभ उठाने की कोशिश में लगी हुई है।
एक होर्डिंग यूपी में भी दिखाई दिया , बड़ी सी और बेहद महंगी टाइप। यह होर्डिंग लगाया है उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने। संगठन और सरकार का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ नेता जब सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर इस तरह के होर्डिंग लगाएँगे तो कार्यकर्ता निश्चित रूप से अपने नेताओं को फ़ॉलो करेंगे और कार्यकर्ताओं ने भी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर होर्डिंग लगा दिए।
बीजेपी के नेताओं ने पहली और दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश में कई जगहों पर ऐसे होर्डिंग्स लगाए थे। अधिकांश होर्डिंग्स में सर्जिकल स्ट्राइक का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने की कोशिश की गई है।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता भरत पंड्या का बयान आया कि देश में इस समय राष्ट्रवाद की लहर चल रही है और इसे वोटों में तब्दील करने की ज़रूरत है। इसके बाद बयान आया कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता बी. एस. येदियुरप्पा का। येदियुरप्पा ने कहा कि पाकिस्तान में आतंकी कैंपों पर भारत की ओर से किए गए हमले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर बनी है और इससे बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य की 28 में 22 सीटें जीतने में मदद मिलेगी।
अब सवाल यह है कि बीजेपी नेता इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं। क्या उन्हें लगता है कि इस तरह के बयान देने से उनके पक्ष में मतों का ध्रुवीकरण होगा और लोकसभा चुनाव में उनकी नाव सियासी भंवर को पार कर सकेगी। इसके पीछे सीधा कारण यही है कि बीजेपी पहली बार हुई सर्जिकल स्ट्राइक को भुनाने में सफल रही थी।
आपको याद दिला दें कि उरी में हुए आतंकी हमले में 19 जवानों के शहीद होने के बाद भारत ने सितंबर 2016 में पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। उसके बाद हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कई अन्य नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक को अपनी अहम उपलब्धि बताते हुए वोट माँगे थे। तब बीजेपी को इसका ख़ासा फ़ायदा मिला था और उसे उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर 312 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि इसके अलावा यूपी चुनाव में कैराना और शमशान कब्रिस्तान वाला जुमला भी खूब चला , और जनता आराम से बेवकूफ बन गयी।
बीजेपी यूपी चुनाव की रणनीति पर ही काम कर रही है। लोकसभा चुनाव बेहद नज़दीक हैं और इस बार हुई सर्जिकल स्ट्राइक को भुनाकर पार्टी फिर से केंद्र में सरकार बनाना चाहती है। भरत पंड्या और येदियुरप्पा के बयानों से इसका पता चल चुका है। प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी चुनावी रैलियों में सर्जिकल स्ट्राइक का बखान कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक के दस घंटे बाद ही राजस्थान के चुरू की अपनी रैली में इसके नाम पर अपने लिए खुलकर वोट माँग लिए। इस रैली में मंच पर पुलवामा में शहीद हुए जवानों की फ़ोटो लगाई गई थी। रैली में मोदी ने लोगों से कहा, ‘आपने दिल्ली में एक मज़बूत सरकार बनाई है, जिसका दम आज दिख रहा है। आपका वोट बीजेपी को और अधिक मज़बूती देगा।’
फ़िल्म 'उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक', भी बहुत चतुराई से पीओके में हुई पहली सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देती दिखाई देती है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस तरह की फ़िल्म का आना बताता है कि इसका एक राजनीतिक मक़सद है। फ़िल्म ‘उरी’ का बीजेपी के नेताओं ने ख़ूब प्रमोशन किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ सार्वजनिक कार्यक्रमों में ख़ुद इस फ़िल्म के डायलॉग ‘हाउ इज़ द जोश’ का उल्लेख किया था।
वोट लेने का जुगाड़ हर तरफ से किया गया। हर शहादत और हर वीरता को अपनी 1156 इंच वाली छाती का कमाल बताया और सेना के विजय के पीछे सिर्फ अपनी ताकत का बखान किया। । और जब कभी सेना का कुछ नुकसान हुआ तो ये लोग फिर से अपनी रैलिया करने निकल जाते है। और जब कोई इनसे उस समय कोई सवाल करता करता है तो मालवीय जी की टीम समेत मोदी जी इसे "राजनीति" घोषित कर के अपनी नाकामी छुपाने की भरपूर कोसीस करते है।
किसी ने भी इन लोगों से यह तो पूछने की कोशिश नहीं की कि , ठीक है आप सेना की क्रेडिट ले रहे हैं तो पुलवामा में शहादत , उड़ी में शहादत, पठान कोट की शहादत, की जिम्मेदारी किसकी होगी ?अगर सेना के पराक्रम को आप अपनी वजह से मान रहे हैं, तो सेना की हुए नुकसान की भी जिम्मेदारी किसको लेनी पड़ेगी ?
और जब ऐसी जिम्मेदारी का एहसास कराने के लिए सत्ताधारी मुझे सवाल पूछा जाता है तो लोग कहते हैं कि हम राजनीति कर रहे हैं या हम नफरत बांट रहे हैं।
उन लोगों को क्या कहेंगे जो शहादत होने के 4 घंटे बाद ही आतंकी अहमद डार की फोटो शॉप की फोटो राहुल गांधी के साथ पोस्ट करने लगे ? उन लोगों को क्या कहेंगे जिन लोगों ने राहुल गांधी की फोटो शॉप करके मोबाइल चलाते हुए फोटो वायरल कर दी । प्रियंका गांधी को मुस्कुराते भी दिखा दिया । क्या ये शहादत से लाभ लेने के तरीके नहीं थे ?
उन लोगों को क्या कहेंगे जो व्हाट्सएप पर मैसेज भेज रहे हैं कि बदला लेना है तो भारतीय जनता पार्टी को वोट करो? क्या उन लोगों को बोलने के लिए आपके पास मत नहीं है ?क्या आपकी संवेदनशीलता इतनी ज्यादा हीन हो चुकी है कि आपको समझ में नहीं आ रहा है ? क्या आप भारतीय जनता पार्टी या उससे जुड़े हुए संगठनों और लोगों के प्रति इतने कर्मठ और कर्तव्य परायण हो चुके हैं कि आपको दूसरे के द्वारा किए गए काम गलत लग रहे हैं , और उनके द्वारा किए गए गलत काम अच्छे लग रहे हैं ?
क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे लोगों को जवाब देने की जरूरत है? जो सेना और सेना के पराक्रम को अपने वोट की कैश बैंक में बनाने की कोशिश कर रहे हैं ? जो सिर्फ अपने वोट के लिए युद्ध के माहौल का इस्तेमाल करते हुए एक बड़ा हाइप क्रिएट कर रहे हैं ? और उस हाईप में लोगों की भावनाओं और संवेदनाओं को छेड़कर अपने लिए वोट पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि उन लोगों को अब जवाब देने की जरूरत है जो देश की सेना कि किए हुए काम को अपने नेताओं के किये हुए काम बताते हैं?
सेना को ना तो आप की कथित फ्री हैंड की जरूरत है । न सेना को आप की कथित राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। सेना अपने आप में पूर्ण है । सेना को वह सारे अधिकार पहले से ही मिले हुए हैं। जिससे सेना देश के दुश्मनों का सफाया कर सकती है। चाहे वह देश के बाहर के हो या देश के अंदर के वह दुश्मन । जिन को भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू एंड कश्मीर के मुख्यमंत्री तक बना दिया । वहीं दुश्मन महबूबा मुफ़्ती पुलवामा की शहादत पर पाकिस्तान को बजाती हुई नजर आई। ऐसे लोगों से भी सेना निपटने में सक्षम है । क्योकि सेना "सर्वश्रेष्ठ" है। सेना "सर्वोपरि" है ।सेना "सर्वनाम" है। और सेना "सर्व विद्यमान" है ।
ऐसे में कोई भी ताकतवर देश की सेना ज्यादा समय तक बर्दास्त नही कर पाती और एक समय पर जवाब दे देती है। और इसके लिए सेना को किसी "फ्रीहैण्ड" की जरूरत नही होती। क्योंकि सेना के पास ये " फ्री हैंड" जुलाई 1990 से है। और सेना के इस फ्री हैंड का नाम है "अफ्सपा" यानी कि स्पेशल फोर्सेज पावर एक्ट , जम्मू कश्मीर।
ये एक्ट सेना को वो शक्तियां देती है जिसके बाद सेना किसी 56 इंच वाले , 72 इंच वाले या 156 इंच वाले कि किसी भी कथित परमिशन की मोहताज नही है।
लेकिन यहाँ इस देश मे बहुत से लोग है या साफ साफ कहे तो मोदी जी और उनके कुछ खास ऐसे लोग लगतार सेना की उपलब्धियों को अपना बता कर वोट लेने के फिराक में लगे हुए है। जिस दिन सेना ने एयरस्ट्राइक किया उस दिन मोदी जी रैली में गाना गा रहे थे " ये देश नही झुकने दूंगा, ये देश नही बिकने दूँगा" । और उसी के दो घंटे बाद लखनऊ एयरपोर्ट समेत 5 एयरपोर्ट अडानी को 50 साल के लिए दे दिया गया। और जिस दिन विंग कमांडर अभिनंदन पाकिस्तान की गिरफ्त में थे , उस दिन मोदी जी अपनी पार्टी का कार्यक्रम "मेरा बूथ सबसे मजबूत" कार्यक्रम कर रहे थे। जिससे नाराज होकर लोगो ने उसी दिन ट्रेंड किया "मेरा जवान सबसे मजबूत"।
वैसे जो आदमी बीजेपी के जन्मदाता अटल जी की मौत के नाम पर उनकी अस्थियां लोटो में भर कर घुमा घुमा कर वोट जुगाड़ने की कोसिस कर सकता है वो भला सेना को वोट के लिए बेचने से कैसे कतरायेगा। शहादत से लेकर एयर स्ट्राइक तक को वोट के दुकान में बदलने की कोसिस किया गया। पूरी कोसिस की गई कि शहादत और वीरता नाम के इस "प्रोडक्ट" को बेचने के बदले अच्छे दाम वाले वोट मिल जाए, और चुनावो में मुद्दों को दबाकर सिर्फ सेना के शौर्य को बेचकर काम चला लिया जाए।
इस बार कर ही उदहारण ले तो पुलवामा अटैक के ही दिन से इस वोट की नौटंकी की शुरआत हो गयी । मेरे व्हाट्सएप पर कई सारे मैसेजेस आए की "सर्जिकल स्ट्राइक टू करना है तो बीजेपी को वोट दीजिए"। सूरत में शहीदों की याद में एक कैंडल मार्च निकाला गया। जिसमें बहुत सारे लड़के लड़कियां शामिल थे। अब आप कहेंगे कि इसमें वोट की राजनीति कहां से आ गयी ?जी हां इसमें वोट की राजनीति थी क्योंकि उस कैंडल मार्च में लड़के लड़कियों को जो टी-शर्ट पहनने के लिए दिया गया था, उस टीशर्ट पर "नमो ओन्ली" लिखा हुआ था। जी हां शहीदों की आत्मा की शांति के लिए निकाले हुए कैंडल मार्च में आये हुए लोगों को "नमो ओनली" के टीशर्ट पहनाए गए।
ये किसके लिए था ? इसके माध्यम से किसको प्रमोट किया गया ? इस प्रमोशन से किसको वोट का फायदा दिलाने की कोसिस किया गया ?
कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह समेत उनके शीर्ष नेतृत्व में से बहुत सारे नेताओं ने सेना और सर्जिकल स्ट्राइक के क्रेडिट को मोदी जी को देते हुए उसके लिए वोट बनाने की कोशिश की है । मोदी जी भी इसमें कहीं पीछे नहीं रहे ।और उन्होंने भी सेना की हर अच्छे काम को अपनी उपलब्धता बताया लेकिन जब भी सेना में कोई शहादत हुई या कोई नुक़सान सेना को हुआ उस समय मोदी जी चुप्पी मारकर बैठे रहे । और उस नुकसान की जिम्मेदारी अपने सर पर ना लेते हुए उन्होंने उस सारे नुकसान उसका जिम्मेदार पिछली सरकार और जवाहरलाल नेहरु जी को बताया है।
उन्होंने तो सार्वजनिक मंच से सेना के नाम और वोट की राजनीति तो किया ही, लेकिन उन्होंने राजनीति करने के लिए सेना के मंच का भी इस्तेमाल किया और सेना के मंच को अपनी राजनीति अपनी नफरत अपने उन्माद का एक अड्डा बना कर राष्ट्रीय समर स्मारक से वोट का एक मेनिफेस्टो पेश किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली इंडिया गेट के पास 'राष्ट्रीय समर स्मारक' राष्ट्र को समर्पित किया। यह स्मारक आजादी के बाद से देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले सैनिकों के सम्मान में बनाया गया था।
स्मारक के उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने अपनी वोट की दुकान वाला बिजनेस शुरु किया और खुले मंच से अपना दुकान खोलकर वोट का प्रोडक्ट भेजना शुरू किया । और यह कहा कि कांग्रेस ने सेना के पैसों से सिर्फ अपने परिवार के लिए काम किया ।प्रधानमंत्री ने कहा कि मां भारती के लिए बलिदान देने वालों की याद में निर्मित राष्ट्रीय समर स्मारक, आज़ादी के सात दशक बाद उन्हें समर्पित किया जा रहा है। राष्ट्रीय समर स्मारक की मांग कई दशक से निरंतर हो रही थी। कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री ने राफेल का भी जिक्र किया। उन्होंने राफेल पर बोलते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया और कहा कि उनकी सरकार के दौरान हुए रक्षा सौदों में घोटाले हुए और सेना की अनदेखी की गई।
पीएम मोदी ने कहा कि अब राफेल को रोकने की साजिश हो रही है। पीएम मोदी ने कहा, 'पहले सरकारों ने देश के वीर बेटे-बेटियों के साथ सैनिकों और राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया गया। यहां तक कि सेना के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं खरीदी गईं। लेकिन हमारी सरकार ने 2 लाख 30 हजार से ज्यादा बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदीं।" पीएम मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि पहले सरकारों ने अपनी कमाई का साधन बना लिया था।
ये सब मोदी जी उस जगह से कही जहाँ वो एक प्रधानमंत्री की हैसियत से सरकारी खर्चे पर सेना के एक मेमोरियल का उद्घाटन करने गए थे। सेना के मेमोरियल की चिंता छोड़ मोदी जी सेना के मंच से अपने विपक्षियों पर हमला बोलने में ज्यादा भलाई समझी। क्या वो सेना के जवानों के मन मे कांग्रेस के लिए नफरत भरने की कोसिस कर रहे थे ? क्या इनके लिए हर जगह सिर्फ और सिर्फ वोट ही मायने रखता है ?
यह बात पूरी तरह से सच है कि मोदी जी को और भारतीय जनता पार्टी को सेना की चिंता नहीं है । अगर थोड़ी भी होती तो देश के ऊपर हुए आतंकवादी हमले के बाद रखी गई सर्वदलीय बैठक में बैठक शामिल होने की बजाए पुणे में रैली करने नहीं जाते। अगर उनको देश के जवानों की चिंता होती तो पाकिस्तान के बीस लड़ाकू जहाजों की सीमा में अंदर घुसने और देश के एक जांबाज पायलट की पाकिस्तान की सीमा में फंसे होने के अगले दिन ही "मेरा बूथ सबसे मजबूत" नाम का कैम्पेन करने में व्यस्त नहीं रहते।
यही नहीं जिस दिन पाकिस्तानी एयर फोर्स के विमान भारत की सीमा में दाखिल हुई उसके अगले दिन जब विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ने का ऐलान इमरान खान ने किया उसके बाद एक ओर जहां पाकिस्तान की असेंबली में वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने विपक्ष का सम्मान किया और उनके सामने झुक गए। लेकिन उसी वक्त हमारे देश के प्रधानमंत्री देश भर में घूम – घूम पर देश भर में विपक्ष को गाली देने में व्यस्त थे। वे विपक्ष से मदद की उम्मीद भी करते हैं और दूसरी ओर उनको गाली भी दे रहे हैं। यह सही नहीं है।
हम प्रधानमंत्री जी से ये जरूर पूछना चाहेंगे की - क्या आज उनके लिए देश जीतना जरूरी है या चुनाव ?
आज देश को मजबूत करना ज्यादा जरूरी है या भाजपा का बूथ जीतना ?
सत्ता में वापसी ज्यादा जरूरी थी या अभिनंदन और उनके जैसे कई युद्धबंदियों की वापसी ?
हमारे देश की सेना दुनिया में सबसे ज्यादा मजबूत है। क्या यह सिर्फ चार साल की देन है ?
पिछले 70 साल के भारतीय जनता के समर्पण या विश्वास कुछ भी नही ?
मिराज जैसे फायटर जेट किसकी देन है?
प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए कि चार साल में क्या मिला देश को नफरत और भय के अलावा ?
प्रधानमंत्री जी आप सत्ता के लिए हमारे सैनिकों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। सैनिक देश के निर्माण और मानवता को बचाने के लिए हैं। राजनीतिकरण के लिए नहीं। जब कारगिल की लड़ाई हुई, तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना पर राजनीति नहीं की। सेना का मनोबल बढ़ाया।अमरीका और इजारइल ने भी आंतकवादियों को मारा, लेकिन उस पर राजनीति नहीं की।
आज सैनिक अपने पराक्रम को दिखाते हैं, मगर वर्तमान भाजपा सरकार मोदी जी सेना के इस पराक्रम का इस्तेमाल राजनीति के लिए कर रही है। चुनाव जीतने के लिए वे इतने उतावले हैं कि ये सेना पर राजनीति कर उनके मनोबल से खेल रहे हैं। और अब तो जल सेना, थल सेना और वायु सेना के बाद अब नरेंद्र मोदी के गुणगान में मीडिया सेना खड़ी हो गई है। बीजेपी की इस वोट कटाई खेल में अगर कोई कदम से कदम मिलाकर पूरी तरह से साथ दे रहा है तो वह मीडिया। भारत की मीडिया और उसे कुछ पत्रकार जो कि रोज "एनालिसिस" कर रहे हैं या रोज आकर चैनलों पर गला फाड़ फाफ कर चिल्ला रहे है ।
उन्होंने न्यूज़ रूम को एक वार रूम में बदल रखा है। वह लगातार देश की जनता की भावनाओं को युद्ध के लिए ना सिर्फ भड़का रहे हैं बल्कि इस युद्ध की भावना को लेकर देश की जनता को इशारों ही इशारों में और कुछ तो खुले रूप से बीजेपी को वोट देने की बातें भी कर रहे है। हम चुप कर बात करने में यकीन नहीं रखते । इसलिए मैं सीधा सीधा नाम लेना चाहूंगा । युद्ध का माहौल बनाने और बीजेपी के लिए इस माहौल को पक्ष में करने का काम सबसे ज्यादा से शुरू से अर्णब गोस्वामी की रिपब्लिक टीवी और सुभाष चंद्रा के जी न्यूज़ के चैनल कर रहे हैं । यह लोग न्यूज़ रूम में बैठे बैठे ही वह माहौल बना रहे हैं । जैसे कि युद्ध एक खेल हो जो 10 मिनट में खत्म हो जाएगा ।असली औकात इन लोगों की तो समझ में आएगी जब इनको खुद बॉर्डर में भेज दिया जाएगा।
भारतीय मीडिया के एंकरों को देखा तो हैरान रह गया कि कैसे टीवी पर चीख़ते, बदला लेने के लिए जनता को उकसाते और सरकार पर दबाव बनाते टीवी चैनल ख़ून के प्यासे हो गए हैं। नहीं होता कि कैसे उन्हें शांति की हर बात नागवार गुज़र रही है, वे हर उस आवाज़ को तुरंत दबाने के लिए तैयार बैठे हैं जो अंधराष्ट्रवाद और युद्ध का विरोध करती दिखाई पड़ती है।
पिछले एक दो सप्ताह में मीडिया ने झूठ और अधकचरेपन के नए कीर्तिमान रच डाले हैं, उसने दिखाया है कि वह कितना ग़ैर ज़िम्मेदार हो सकता है और ऐसा करते हुए उसे किसी तरह की शर्म भी नहीं आती, एकतरफ़ा और फर्ज़ी कवरेज की उसने नई मिसालें स्थापित की हैं, उसने उन पत्रकारों को शर्मसार किया है जो पत्रकारिता को एक पवित्र पेशा समझते हैं और उसके लिए जीते-मरते हैं। सच तो यह है कि इस दौरान भारतीय और पाकिस्तानी अधिकतर पत्रकार, मीडिया की तरह काम कर ही नहीं रहा थे, वे एक प्रोपेगंडा मशीन में बदल चुके थे। वे सत्ता और उसकी विचारधारा के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे, उनका प्रचार-प्रसार कर रहे थे, बिना हिचक के देशभक्ति के नाम पर युद्धोन्माद फैला रहे थे।
पुलवामा हमले के बाद सिलसिला शुरू हुआ भावनाओं को उभारने का। भारतीय मीडिया ने ख़ास तौर पर जवानों के शवों और अंतिम संस्कार के दृश्यों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। इसका लाभ सत्तारूढ़ दल बीजेपी को मिलना तय है क्योंकि उसके नेता अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुँच रहे थे, सैनिको के परिजनों से वे बदला लेने के बयान दिलवा रहे थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि मीडिया सवाल करना बिल्कुल भूल गया जबकि प्रश्न करना ही उसका मुख्य काम है। उसे याद नहीं रहा या फिर उसने यह भूल जाना ठीक समझा कि ज़रा ख़ुफ़िया एजंसियों की नाक़ामी के बारे में भी सवाल करे।
सरकार से पूछे कि जवानों और सेना के कैंपों पर एक के बाद एक बड़े हमले हुए हैं मगर वह कुछ कर क्यों नहीं पा रही।
उन्होंने ने ये पूछने की हिम्मत नही उठायी की क्यों जवानों को एयरलिफ्ट करने की मांग ठुकरा दी गयी।
उन्होंने ये नही पूछा कि पहले से हमले का इनपुट होने के बाद भी हमला कैसे हो गया ?
अजीत डोभाल से उनकी नाकामी के बारे में कोई सवाल पूछा गया क्या ?
चैनल युद्ध का माहौल बनाकर कवियों से दरबार सजवा रहे हैं। और प्रधानमंत्री हैं कि शांति पुरस्कार लेकर घर आ रहे हैं। कहां तो ज्योति बने ज्वाला की बात थी, मां कसम बदला लूंगा का उफ़ान था लेकिन अंत में कहानी राम-लखन की हो गई है ,वन टू का फोर वाली। तरह तरह से भारत की सीमाओं का और भारत के हत्यारों का एक प्रदर्शनी एक झांकी लगी हुई है न्यूज़ चैनलों पर । कभी कोई भारत की ब्रह्मोस मिसाइल के प्रभाव को दिखा रहा है। तो कभी कोई राफेल आ जाने के बाद भारत की बड़ी हुई शक्तियों को दिखा रहा है । न्यूज़ चैनलों ने एक मंच सजा कर तरीके से युद्ध को बेच कर वोट और टीआरपी कमाने का बढ़िया जुगाड़ कर लिया।
कोई नही पूछ रहा है कि क्यों भाजप के लिए चुनाव और बूथ सेना से ज्यादा जरूरी है ।
एक ओर पूरा देश विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई और उनकी सलामती को लेकर चिंतित था। लेकिन भाजपा की रैली नहीं रूकी। बाइक रैली से लेकर गठबंधन करने और "मेरा बूथ सबसे मजबूत" कार्यक्रम चलाने तक ये लोग सिर्फ और सिर्फ अपने वोट और अपनी राजनीति को।चमकाने में व्यस्त थे। जिन्हें इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि अपना जवान मजबूत हो या न हो। इन्हें तो सिर्फ अपना बूथ मजबूत करने की चिंता है। और सेना की शहादत से लेकर सेना की वीरता को ये अपने वोट की दुकान की नज़र से देखते हुए आते है।
पहली सर्जीकल स्ट्राइक से लेकर दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक के तक सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक बीजेपी नेताओं में इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने की होड़ लगी हुई थी। देश के कई शहरों में बीजेपी नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पोस्टर लगाए थे। ऐसा करके बीजेपी निश्चित तौर पर सर्जिकल स्ट्राइक का सियासी लाभ उठाने की कोशिश में लगी हुई है।
एक होर्डिंग यूपी में भी दिखाई दिया , बड़ी सी और बेहद महंगी टाइप। यह होर्डिंग लगाया है उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने। संगठन और सरकार का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ नेता जब सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर इस तरह के होर्डिंग लगाएँगे तो कार्यकर्ता निश्चित रूप से अपने नेताओं को फ़ॉलो करेंगे और कार्यकर्ताओं ने भी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर होर्डिंग लगा दिए।
बीजेपी के नेताओं ने पहली और दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश में कई जगहों पर ऐसे होर्डिंग्स लगाए थे। अधिकांश होर्डिंग्स में सर्जिकल स्ट्राइक का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने की कोशिश की गई है।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता भरत पंड्या का बयान आया कि देश में इस समय राष्ट्रवाद की लहर चल रही है और इसे वोटों में तब्दील करने की ज़रूरत है। इसके बाद बयान आया कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता बी. एस. येदियुरप्पा का। येदियुरप्पा ने कहा कि पाकिस्तान में आतंकी कैंपों पर भारत की ओर से किए गए हमले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर बनी है और इससे बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य की 28 में 22 सीटें जीतने में मदद मिलेगी।
अब सवाल यह है कि बीजेपी नेता इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं। क्या उन्हें लगता है कि इस तरह के बयान देने से उनके पक्ष में मतों का ध्रुवीकरण होगा और लोकसभा चुनाव में उनकी नाव सियासी भंवर को पार कर सकेगी। इसके पीछे सीधा कारण यही है कि बीजेपी पहली बार हुई सर्जिकल स्ट्राइक को भुनाने में सफल रही थी।
आपको याद दिला दें कि उरी में हुए आतंकी हमले में 19 जवानों के शहीद होने के बाद भारत ने सितंबर 2016 में पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। उसके बाद हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कई अन्य नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक को अपनी अहम उपलब्धि बताते हुए वोट माँगे थे। तब बीजेपी को इसका ख़ासा फ़ायदा मिला था और उसे उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर 312 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि इसके अलावा यूपी चुनाव में कैराना और शमशान कब्रिस्तान वाला जुमला भी खूब चला , और जनता आराम से बेवकूफ बन गयी।
बीजेपी यूपी चुनाव की रणनीति पर ही काम कर रही है। लोकसभा चुनाव बेहद नज़दीक हैं और इस बार हुई सर्जिकल स्ट्राइक को भुनाकर पार्टी फिर से केंद्र में सरकार बनाना चाहती है। भरत पंड्या और येदियुरप्पा के बयानों से इसका पता चल चुका है। प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी चुनावी रैलियों में सर्जिकल स्ट्राइक का बखान कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक के दस घंटे बाद ही राजस्थान के चुरू की अपनी रैली में इसके नाम पर अपने लिए खुलकर वोट माँग लिए। इस रैली में मंच पर पुलवामा में शहीद हुए जवानों की फ़ोटो लगाई गई थी। रैली में मोदी ने लोगों से कहा, ‘आपने दिल्ली में एक मज़बूत सरकार बनाई है, जिसका दम आज दिख रहा है। आपका वोट बीजेपी को और अधिक मज़बूती देगा।’
फ़िल्म 'उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक', भी बहुत चतुराई से पीओके में हुई पहली सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देती दिखाई देती है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इस तरह की फ़िल्म का आना बताता है कि इसका एक राजनीतिक मक़सद है। फ़िल्म ‘उरी’ का बीजेपी के नेताओं ने ख़ूब प्रमोशन किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ सार्वजनिक कार्यक्रमों में ख़ुद इस फ़िल्म के डायलॉग ‘हाउ इज़ द जोश’ का उल्लेख किया था।
वोट लेने का जुगाड़ हर तरफ से किया गया। हर शहादत और हर वीरता को अपनी 1156 इंच वाली छाती का कमाल बताया और सेना के विजय के पीछे सिर्फ अपनी ताकत का बखान किया। । और जब कभी सेना का कुछ नुकसान हुआ तो ये लोग फिर से अपनी रैलिया करने निकल जाते है। और जब कोई इनसे उस समय कोई सवाल करता करता है तो मालवीय जी की टीम समेत मोदी जी इसे "राजनीति" घोषित कर के अपनी नाकामी छुपाने की भरपूर कोसीस करते है।
किसी ने भी इन लोगों से यह तो पूछने की कोशिश नहीं की कि , ठीक है आप सेना की क्रेडिट ले रहे हैं तो पुलवामा में शहादत , उड़ी में शहादत, पठान कोट की शहादत, की जिम्मेदारी किसकी होगी ?अगर सेना के पराक्रम को आप अपनी वजह से मान रहे हैं, तो सेना की हुए नुकसान की भी जिम्मेदारी किसको लेनी पड़ेगी ?
और जब ऐसी जिम्मेदारी का एहसास कराने के लिए सत्ताधारी मुझे सवाल पूछा जाता है तो लोग कहते हैं कि हम राजनीति कर रहे हैं या हम नफरत बांट रहे हैं।
उन लोगों को क्या कहेंगे जो शहादत होने के 4 घंटे बाद ही आतंकी अहमद डार की फोटो शॉप की फोटो राहुल गांधी के साथ पोस्ट करने लगे ? उन लोगों को क्या कहेंगे जिन लोगों ने राहुल गांधी की फोटो शॉप करके मोबाइल चलाते हुए फोटो वायरल कर दी । प्रियंका गांधी को मुस्कुराते भी दिखा दिया । क्या ये शहादत से लाभ लेने के तरीके नहीं थे ?
उन लोगों को क्या कहेंगे जो व्हाट्सएप पर मैसेज भेज रहे हैं कि बदला लेना है तो भारतीय जनता पार्टी को वोट करो? क्या उन लोगों को बोलने के लिए आपके पास मत नहीं है ?क्या आपकी संवेदनशीलता इतनी ज्यादा हीन हो चुकी है कि आपको समझ में नहीं आ रहा है ? क्या आप भारतीय जनता पार्टी या उससे जुड़े हुए संगठनों और लोगों के प्रति इतने कर्मठ और कर्तव्य परायण हो चुके हैं कि आपको दूसरे के द्वारा किए गए काम गलत लग रहे हैं , और उनके द्वारा किए गए गलत काम अच्छे लग रहे हैं ?
क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे लोगों को जवाब देने की जरूरत है? जो सेना और सेना के पराक्रम को अपने वोट की कैश बैंक में बनाने की कोशिश कर रहे हैं ? जो सिर्फ अपने वोट के लिए युद्ध के माहौल का इस्तेमाल करते हुए एक बड़ा हाइप क्रिएट कर रहे हैं ? और उस हाईप में लोगों की भावनाओं और संवेदनाओं को छेड़कर अपने लिए वोट पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि उन लोगों को अब जवाब देने की जरूरत है जो देश की सेना कि किए हुए काम को अपने नेताओं के किये हुए काम बताते हैं?
सेना को ना तो आप की कथित फ्री हैंड की जरूरत है । न सेना को आप की कथित राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। सेना अपने आप में पूर्ण है । सेना को वह सारे अधिकार पहले से ही मिले हुए हैं। जिससे सेना देश के दुश्मनों का सफाया कर सकती है। चाहे वह देश के बाहर के हो या देश के अंदर के वह दुश्मन । जिन को भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू एंड कश्मीर के मुख्यमंत्री तक बना दिया । वहीं दुश्मन महबूबा मुफ़्ती पुलवामा की शहादत पर पाकिस्तान को बजाती हुई नजर आई। ऐसे लोगों से भी सेना निपटने में सक्षम है । क्योकि सेना "सर्वश्रेष्ठ" है। सेना "सर्वोपरि" है ।सेना "सर्वनाम" है। और सेना "सर्व विद्यमान" है ।
Well said
ReplyDelete