जिस आदमी को शहीद-ए-आजम का कथित तमगा इस देश में दिया गया है उस सरदार भगत सिंह और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव को ही देश में शहीद का दर्जा दर्जा नहीं दिया गया है उन्हें आज तक भारत सरकार में शासन करने वाली दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने शहीद नहीं माना और ना ही उन्हें आधिकारिक रूप से शहीद का दर्जा दिया।अंग्रेजो ने अगर भगत सिंह की शारीरिक हत्या किया तो , आज़ादी के बाद से अब तक बीजेपी, कांग्रेस और भारत के कुछ कथित नौजवान क्रांतिकारी भगत सिंह की सामाजिक और राजनीतिक हत्या करते आ रहे है।



"साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था। मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी। इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।"
                  - भगत सिंह (22 मार्च 1931)
ये वाक़्य उस इंसान के आखिरी पत्र है पत्र का हिस्सा है,  जिसने भारत की क्रांति को एक नई दशा और दिशा दी। जिस ने यह बताया कि क्रांति हथियारों से नहीं बल्कि विचारों से आती है । जिसने यह बताया कि देश की राजनीति और देश के परिदृश्य में छात्रों और युवाओं का एक महत्वपूर्ण योगदान है। जिस व्यक्ति ने देश की यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों की भी राजनीति में हिस्सेदारी उन्हें की वकालत की । और उन्हें राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया । जिस व्यक्ति ने भारत की आजादी को एक संगठित और संरचित आज़ादी में बदलने का सपना देखा। 
शहीद दिवस वह दिन जो स्वतंत्रता से पहले भारत के स्वतंत्रता क्रांतिकारियों की शहादत और बलिदान को दिखाता है। यह दिन बताता है कि भारत मां की आजादी के लिए ना जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपनी खुशियों को अपने जीवन को हंसते-हंसते देश पर न्योछावर कर दिया । 23 मार्च ही क्यों शहीद दिवस ? इसलिए क्योंकि इसी दिन भारत के समाजवादी क्रांतिकारी और जननायक शहीदे आजम सरदार भगत सिंह और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी के तट पर लटका दिया था। उनकी पुण्यतिथि के दिन को ही शहीद दिवस के रूप में घोषित किया गया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जिसकी पुण्यतिथि के दिन शहीद दिवस जैसा बड़ा दिन घोषित किया गया, उनको शहीद का दर्जा दिया ही नहीं गया।
यह बेहद ही अजीब बात है कि जिस आदमी की शहादत के दिन को देश में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। और जिस आदमी को शहीद-ए-आजम का कथित तमगा इस देश में दिया गया है ।उस सरदार भगत सिंह और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव को ही देश में शहीद का दर्जा दर्जा नहीं दिया गया है। उन्हें आज तक भारत सरकार में शासन करने वाली दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने शहीद नहीं माना। और ना ही उन्हें आधिकारिक रूप से शहीद का दर्जा दिया। अंग्रेजो ने अगर भगत सिंह की शारीरिक हत्या किया तो , आज़ादी के बाद से अब तक बीजेपी, कांग्रेस और भारत के कुछ कथित नौजवान क्रांतिकारी भगत सिंह की सामाजिक और राजनीतिक हत्या कर रहे है।
और इसके लिए जिम्मेदार इस देश में शासन करने वाली दो बड़ी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस रही है । दोनों ने अपने अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए और अपनी कमियो को छुपाने के लिए शहीद ए आजम भगत सिंह से जुड़ी हुई बातें लोगों के सामने नहीं आने दिया। ना उनके विचार आज तक लोगों के सामने आने दिया,  और ना ही उनको शहीद का दर्जा दिया। क्योकि उस वक़्त जहां भगत सिंह अपनी नीतियों से कांग्रेस को आइना दिखा रहे थे , वहीं उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के जन्म स्रोत संगठन आरएसएस और हिंदू महासभा की सच्चाई बखिया उधेड़ उधेड़ कर लोगों के सामने रखी ।
तो अब अगर भगत सिंह के विचार और भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिया जाता है,  तो उसके बाद अगर किसी की भद पिटेगी तो वह यही दोनों पाटिया रहेंगी।  इन दोनों राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों ने अपने अपने स्वार्थ और अपने अपने गंदे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शहीद ए आजम के साथ आज तक सिर्फ अन्याय ही किया है।  देश के इकहत्तर सालों की आजादी में तेरह साल राज करने वाली भारतीय जनता पार्टी,  और बाकी के समय में राज करने वाले कांग्रेस पार्टी ने शहीद-ए-आजम को सिर्फ हिंसा और हथियारों और फांसी का प्रतीक बना के रखा है ।
आज वक्त है कि हमें सोचना पड़ेगा कि क्या भगत सिंह होने का मतलब सिर्फ हिंसा वादी होना है ?
क्या भगत सिंह बनने का अंजाम सिर्फ फांसी है ?क्या भगत सिंह जैसा करने का सिंबल सिर्फ हथियार और लड़ाई झगड़े हैं ?
भगत सिंह को हथियारों और फांसी की फंदो तक समेटकर रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी को और कांग्रेस को इतिहास कभी भी माफ नहीं करेगा। शहीद-ए-आजम को शहीद का दर्जा ना देना उनके विचारों को उनके लिखे गए लेखों को उनकी लिखी हुई किताबों को जनता के सामने ना लाना, इन दोनों पार्टियों का अपने वोट और अपने कलंकों को छुपाने का उद्देश्य ही नजर आता है। क्योंकि भगत सिंह ने कांग्रेस पार्टी  के आजादी के नाम पर छुपे हुए राजनीतिक मंसूबे को लोगों के सामने लाया ।  वहीं उन्होंने आर एस एस और हिंदू महासभा  का  धर्म के भाव नाम पर लोगों को लड़ाने का से लेकर अंग्रेजों के साथ मिलकर धार्मिक उन्माद फैलाकर अपने एकछत्र राज करने के मंसूबे को भी लोगों के सामने ले आए।
यही वजह रही कि इन पार्टियों ने सरदार भगत सिंह को सरदार भगत सिंह की तरह हम लोगों के सामने नहीं लाने दिया । उन्होंने भगत सिंह को सिर्फ एक हिंसात्मक व्यक्ति के रूप में लोगों के सामने रखा,और देश की जनता ने भी वही सोचा ।इतिहास ने और देश ने सरदार भगत सिंह के साथ बहुत अन्याय किया है।
शहीद दिवस के दिन बड़े बड़े नेता और बड़ी बड़ी बाते करते हुए नज़र आते है। सरदार भगत सिंह के साथ पोस्टर बैनर लगवाने वाले नेताओं की होड़ लग जाती है। और ये नेता अक्सर बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के लोग होते है।  इन दोनों ही दलों के चाटुकार इतिहासकारों ने भगत सिंह को भगत सिंह के रूप में पेश होने ही नही दिया । साजिशन भगत सिंह के लेखक, विचारक और चिंतक रूप को अब तक देश के लोगो के सामने नही आने दिया गया।
भगत सिंह को सिर्फ उतना ही बताया जाता रहा,  जितना कि वह नेता के वोट के हितों को साधने के लिए सही हो । अगर आपसे कोई यह पूछे कि आप भगत सिंह के बारे में कितना जानते हैं ? या क्या जानते हैं ? तो आप क्या बताएंगे! सिर्फ यही कि उन्होंने सांडर्स की हत्या की,  लाला लाजपत राय का बदला लिया , और असेंबली में बम फोड़ कर देश के लिए फांसी पर झूल गए ?  
दरअसल समस्या इसी तरह के इतिहास को पेश करने वाले लोगों में ही है जो सिर्फ अपने मतलब भर की चीजें ही आपको बताते हैं।  अगर आप भगत सिंह को सिर्फ इन्हीं कामों के लिए जानते हैं,  तो यकीन मानिए कि आप भगत सिंह को 1% भी नहीं जानते हैं।  उस 23 साल के नौजवान ने वह काम कर दिए , जो कि आज के 70 - 80 साल के नेता सोच भी नहीं सकते।  उस 23 साल के नौजवान ने वह प्रसिद्धि और वह मुकाम हासिल कर लिया जिसके लिए आज के नेता तरस भी जाते हैं । 
हमारे सामने एक सवाल जरूर ही उठता है कि भगत सिंह के समय में हजारों क्रांतिकारी मरे,  जिन्होंने देश के लिए हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान की । क्योंकि वह एक दौर था जहां पर देश के लिए मरना किसी भी एक साधारण बात जैसी थी।  क्योंकि उन क्रांतिकारी वीरों के लिए यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी । और सभी देश के लिए फांसी के फंदे पर झूले।  फिर भगत सिंह,  भगत सिंह कैसे बनते हैं ?  ऐसी क्या बात थी जो भगत सिंह को सारे क्रांतिकारियों से अलग करती है ? 
दरअसल जितने भी क्रांतिकारी देश के लिए मरे वह सिर्फ मौत के अंजाम तक ही गए।  लेकिन भगत सिंह एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपनी मौत को पूरी तरह से सजाया और संवारा । या यूं कहें कि उन्होंने अपनी मौत के स्ट्रक्चर को पूरी तरह से डिजाइन किया।  मरने से पहले उन्होंने अपने बयानों को अपने लेखों को दुनिया तक सही तरीके से पहुंचा दिया । भगत सिंह सब कुछ जानते थे । वह बात अच्छे से जानते थे की  उनकी जिंदगी इतनी बड़ी या प्रभावशाली कभी नहीं हो सकती जितनी बड़ी और प्रभावशाली उनकी मौत बन सकती है ।
वह भी जानते थे  कि उनकी जिंदगी सिर्फ एक भगत सिंह को लाएगी।  लेकिन उनकी मौत इस देश के कोने-कोने से भगत सिंह पैदा करेगी । इतने बड़े दूरदर्शी थे कि उन्होंने 23 साल की उम्र में ही सारे काम कर दिए ! जो भी लिखना था , जो भी कहना था,वो सारे उन्होंने पूरा कर दिया ।  उनका सिर्फ एक ही काम अधूरा रह गया , और वह था ब्लादिमीर लेनिन की किताब स्टेट एंड रेजुलशन को पढ़ने का।  क्योंकि उन्हें फांसी 11 घंटे पहले दे दी गई । 
आप जरा सोचिए उस 23 साल के सरदार कि क्या खासियतें रही होंगी ? चेहरे पर पूरी तरीके से दाढ़ी और बाल भी नहीं आए होंगे । और वह ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करता था की,  उस समय के सभी लेखक व इतिहासकार हैरान थे । 
भगत सिंह के साथ हमने भी पूरी तरह से छल और बेईमानी की । जब हमने उन्हें सिर्फ एक हिंसा का समर्थन करने वाले क्रांतिकारी का तमगा दे दिया । और उन्हें हिंसा का एक सिंबल बना दिया । जबकि इन सब से बेहद अलग भगत सिंह समाजवाद की बात करने वाले एक जननायक बन चुके थे।  एक ऐसा जननायक जो गांधी जी तक को भी पीछे छोड़ चुका था । लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि  किसी भी किताब , लेखक या किसी भी लेख कि वह औकात ही नहीं कि वह भगत सिंह को सौ प्रतिशत भगत सिंह जैसा ही प्रस्तुत कर सकें । 
भगत सिंह अपने आप में अनंत और अथाह थे  । जहां एक तरफ भगत सिंह कहते थे कि" वह पूरी तरह से नास्तिक हैं  " , वहीं दूसरी तरफ भगत सिंह की जेब में हमेशा भगवत गीता का एक गुटका,  और स्वामी विवेकानंद की  किताब होती थी।  और यकीन मानिए कि जो भी भगत सिंह के इस विचित्र मेल को समझ गया , सिर्फ वही ही भगत सिंह को थोड़ा बहुत समझ पाने में सक्षम हुआ । 
देश के लिए सिर्फ आजादी का ही नहीं बल्कि एक सुव्यवस्थित और संरक्षित आजादी का सपना देखने वाले सरदार भगत सिंह जी  ना जाने कितने ही संघों न जाने कितने ही महासभाओं और न जाने कितने ही कथित रूप से आजादी के लड़ने वाली पार्टियों के लिए खतरा बन चुके थे । सरदार भगत सिंह और सरदार भगत सिंह के विचार उस वक्त के राजनीतिक परिदृश्य और अभी के राजनीतिक परिदृश्य के लिए बहुत ही ज्यादा जानलेवा थे । क्योंकि भगत सिंह अपने विचारों को कुछ इस तरह खुलकर रखें कि आज की ओ मुख्य राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां और उस वक्त के जितने भी कथित धर्म के ठेकेदार थे सब की पोल खुलती नजर आती है।
देश में समाजवादी क्रांति का बिगुल बजाने वाले भगत सिंह लेनिन से बहुत प्रेरित थे। लेकिन अपने जीवन के अंतिम समय मे भगत सिंह जी ने ये लिखा कि क्रांति कभी हथियारों से नही आती बल्कि क्रांति विचार से आती है। शहीदे आज़म ने सिर्फ 23 साल की उम्र में जो सोचा और जो लिखा वो दुनिया के लिए किसी अजूबे से कम नही था। सिर्फ 23 साल की उम्र में शहीदे आज़म ने देश मे वो स्थान प्राप्त कर लिया जिसे प्राप्त करने के लिए महात्मा गांधी को 50 साल से ज्यादा का वक़्त लगा। वो स्थान जिसे पाने के लिए आज के नेता 90 साल तक कि उम्र तक कोसिस करते है लेकिन पा नही पाते है।
और जब उसी शहीदे आजम सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने की बात आती है तो सारी सरकारे मुंह फेर लेती हैं। सरकारी रिकॉर्ड में आज तक शहीदे आजम सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया ।यह सरदार भगत सिंह का वह अपमान है , जो आजादी से पहले अंग्रेजों ने भी नहीं किया होगा । भगत सिंह के देखे गए सपनों वाले आजाद भारत में जब भगत सिंह को ही शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है तो यह जानकर बहुत दुख होता है।
भगत सिंह के को शहीद का दर्जा दिलाने की मांग करने वाले उनके प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू ने कहा है कि "वे शहीदों पर सरकारों के रवैये से हैरान हैं। पिछले माह पंजाब के नवांशहर स्थित भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़ कलां के लोगों ने भी जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया था। उन्‍होंने देश के लिए जान गंवाने वाले भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को सरकारी दस्तावेजों में शहीद का दर्जा देने की मांग की थी।सरकारें भगत सिंह को शहीद घोषित करने से आखिर डरती क्‍यों हैं? इसके लिए कई  नेताओं से सिफारिश की गई लेकिन देश के हीरो के लिए कोई आगे नहीं आया। इसलिए अब शहीद भगत ब्रिगेड की ओर से इसके लिए कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। संबंधित दस्‍तावेज जुटा लिए गए हैं।”
केंद्रीय गृह मंत्रालय में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लेकर एक आरटीआई डालकर पूछा गया था , कि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को शहीद का दर्जा कब दिया गया। यदि नहीं तो उस पर क्या काम चल रहा है ?  इस पर मंत्रालय ने कहा था कि इस संबंध में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। तब से शहीद-ए-आजम के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं।
सितंबर 2016 में इसी मांग को लेकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के वंशज जलियांवाला बाग से इंडिया गेट तक शहीद सम्‍मान जागृति यात्रा निकाल चुके हैं। संबंधित दस्‍तावेजों के साथ तीन बार गृह राज्‍य मंत्री हंसराज अहीर से मिल चुके हैं। अहीर खुद संस्‍कृति मंत्रालय से इस बारे में बातचीत कर रहे हैं। लेकिन अब तक नतीजा नहीं निकला। जब हमने इस बारे में अहीर के निजी सचिव डॉ। राजेश से बात की तो उन्होंने कहा “संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखा गया है।” 2018 में भी इस बारे में आरटीआई डाली गई लेकिन गृह मंत्रालय ने इस बारे में जवाब नहीं दिया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सरकार ने शहीद का दर्जा कब दिया।
जब मामला मीडिया की सुर्खियां बना तो तत्‍कालीन प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह को सफाई देनी पड़ी। राज्‍यसभा सांसद केसी त्‍यागी ने 19 अगस्‍त 2013 को सदन में यह मुद्दा उठाया। उन्‍होंने कहा कि गृह मंत्रालय के जो लेख और अभिलेख हैं उनमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा देने का काम नहीं हुआ।
इस पर कुसुम राय, जय प्रकाश नारायण सिंह, राम विलास पासवान, राम गोपाल यादव, शिवानंद तिवारी, अजय संचेती, सतीश मिश्र और नरेश गुजराल सहित कई सदस्‍यों ने त्‍यागी का समर्थन किया था। वर्तमान उप राष्‍ट्रपति वेंकैया नायडू ने तब बीजेपी नेता के रूप में कहा था कि ‘सरकार को इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। वह यह देखे कि भगत सिंह का नाम शहीदों की सूची में सम्‍मलित किया जाए। वे जिस सम्‍मान और महत्‍व के हकदार हैं उन्‍हें प्रदान किया जाए।क्‍योंकि वे स्वतंत्रता सेनानियों के नायक थे। देश के युवा उनसे प्रेरित होते हैं’।
सरकार की ओर से रिकॉर्ड सुधारने के आश्वासन के तीन साल बाद पुराने सवालों के साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई डाली गई। अक्‍टूबर 2016 में फिर वही जवाब आया। पीएमओ ने आरटीआई गृह मंत्रालय को रेफर कर दी। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस बारे में उसके पास कोई रिकार्ड नहीं है।
हालांकि इसी साल जून में दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भगत सिंह की जेल डायरी के विमोचन अवसर पर 2013 में राज्यसभा में उठे इस मामले का जिक्र करते हुए कहा “जिस दिन आरटीआई की बात आई थी कि भगत सिंह शहीद नहीं हैं, उस दिन संसद में विपक्ष के एक नेता ने सवाल उठाया था। वेंकैया जी ने मेरी तरफ देखा, मैं खड़ा हुआ और कहा कि सरकार से प्रतिकार करता हूं कि आरटीआई की सूचना गलत दी गई है। शहीद भगत सिंह को किसी आरटीआई के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं। वो शहीद थे, हैं और रहेंगे।”
भगत सिंह को तो जनता शहीद मानती है फिर सरकारी रिकॉर्ड की क्या जरूरत ? इस सवाल के जवाब में संधू कहते हैं “भगत सिंह को शहीद घोषित कर दिया जाता तो कोई भी किताबों में उन्‍हें "क्रांतिकारी आतंकी" लिखने की हिम्‍मत नहीं करता’। पालिस्तान में भी भगत सिंह को न्‍याय दिलाने के लिए वहां के लोगों ने कोर्ट में ही केस डाला हुआ है।
संधू के मुताबिक वह इस मामले को लेकर भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी, बीजेपी के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष विनय विनय सहस्त्रबुद्धे से मिल चुके हैं। सहस्त्रबुद्धे गृह मंत्री को पत्र भी लिख चुके हैं।
लेकिन देश और देश भक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले , और आए दिन दूसरों को देश भक्ति के कमल लगे स्टैंप वाले सर्टिफिकेट बांटने वाले भारतीय जनता पार्टी के यह बड़े-बड़े नेता और यह बड़े-बड़े मंत्री आज तक शहीद ए आजम को शहीद का दर्जा दिलाने में नाकाम रहे।  इन लोगों की कमजोरी और इन लोगों के नकारेपन ने शहीद -ए-आजम को देश में अभी तक कानूनी रूप से एक आतंकवादी का ही दर्जा दिया ।
भगत सिंह ने देश की आजादी के सपने देखे उसी सरदार भगत सिंह को उन्हीं के देश में कानूनी रूप से सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही माना गया है।
ये एक संयोग ही है कि जिस समाजवादी विचारधारा को सरदार भगत सिंह जी के बाद भारत मे लोहिया जी ने पोशा। उसी लोहिया जी का जन्म दिवस और सरदार भगत सिंह की पुण्यतिथि एक ही दिन पर है। खुद डॉक्टर राम मनोहर लोहिया बी सरदार भगत सिंह की बहुत इज्जत करते थे और वह उनके विचारों से पूरी तरह प्रेरित भी थे। सरदार भगत सिंह के समाजवाद वाली विचारधारा को लोहिया ने ही देश में आगे बढ़ाया । और उसको एक मजबूत विचारधारा के रूप में स्थापित किया । साथ ही में लोहिया ने उस समय जब कांग्रेस का संपूर्ण देश में शासन था, तब उन्होंने एक मजबूत विपक्ष की स्थापना की । लोहिया ने विपक्ष को कार्य करना सिखाया । और उस समय की मौजूदा सरकार को बताया कि विपक्ष भी कुछ ऐसा कर सकता है , जो सरकार की गलत नीतियों और जन विरोधी भावनाओं की नींव तक हिला सकता है।
सरकार को और सरकार में बैठे हुए लोगों के मन में यदि शहीदे आजम सरदार भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु के प्रति जरा भी सम्मान है,  तो उन्हें तुरंत ही शहीद का दर्जा देने का कष्ट करें । वरना जनता बैठी है ऐसे लोगों से हिसाब लेने के लिए , जो लोग अपने देश के निर्माण कर्ताओं को उचित सम्मान नहीं दे सकते। ऐसे लोगों को सत्ता में बैठने का कोई हक नहीं है ।चाहे वह कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी,
दोनों ने ही अपने अपना स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ही शहीद-ए-आजम को आज तक शहीद का दर्जा नहीं दिया । और बहाना कई बार कानूनी अड़चनों का भी दिया गया । यदि शहीद-ए-आजम को शहीद घोषित करने में कोई कानूनी अड़चन भी है , तो उसे सुधारा जा सकता है। अध्यादेश या बिल के माध्यम से ऐसे कानून को बदला जा सकता है।  एक नए कानून को बनाकर शहीद -ए-आजम को शहीद का दर्जा दिया जा सकता है। यह काम बेहद आसान है ।
क्योंकि शहीदे आजम के नाम पर कोई विरोध भी नहीं कर सकता। लेकिन यह दोनों ही मौजूदा सरकार है ऐसे ही नहीं करेंगी। क्योंकि ऐसे करने से  इन पार्टियों का आजादी से पहले की नाकारापन निरंकुशता और ढोंग देश के सामने आ जाएगा । यह साबित हो जाएगा कि यह दोनों दल आजादी से पहले जो कर रहे थे, भगत सिंह उसके प्रखर विरोधी थे । चाहे वह कांग्रेस का आजादी की लड़ाई के नाम पर अपनी राजनीतिक उल्लू को सीधा करना हो,  या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा का आजादी से पहले देश को हिंदू और मुसलमान में बैठकर आजादी को लड़ाई को कमजोर करके अंग्रेजों की सहायता करना।
इंकलाब जिंदाबाद
जय समाजवाद

Comments

Popular Posts