संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं

संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं
द्वंद नाद बजाये, विकराल सा खड़ा हूँ मैं
लथपथ देह ताने, आंखों से गुरुर दिखाते
हौसला बोले खुद मौत से बड़ा हूँ मैं

पथिक चलते चलते जब तक मंजिल न पाए
विजय शंखनाद जब तक कानो में न आये
मुश्किलें जब तक राह छोड़ चली न जाये
उम्मीद की रोशनी लिए,अंधेरे में बढ़ा हूँ मैं
संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं

पकड़ वक़्त की बाह, उसे मैं मोड़ दूँ
घमंड इस हालात का सहज मैं तोड़ दूँ
कमजोरियों की कड़ियाँ सारी जोड़ दूँ
इंकलाब श्रोत से खंड खंड भरा हूँ मैं
संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं।

विजय द्वार पर खड़ा, हार का श्रृंगार हूँ
काटे जो कर्कशो को वो दृढ़ कटार हूँ
बांध लाल साफा क्रांति का मैं हुंकार हूँ
समर भूमि में अभिमन्यु सा मरा हूँ मैं
संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं।

विकराल युद्ध नाद का मैं सार हूँ
हौसलो के गुबार सा,वीरगति का बहार हूँ
तल्खियां जिंदगी की खाये, मौज का फुहार हूँ
लथपथ गिर उठा, शत्रु वार से कब डरा हूँ मैं
संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं।

समर भेरी तान सुन, रण राह पर चला।
नाश कर शत्रु दुर्ग,उसके छल को छला
छीन कर गुरुर उसका, काट आया गला
प्रतिपल भाव लिए, निर्भीकता से भरा हूँ मैं
संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं

Comments

Popular Posts