देशभक्ति का सर्टिफिकेट दूसरो को तो बांटते रहते हो। लेकिन जब बात खुद को सर्टिफिकेट देने की आएगी तो इतिहास के काले अध्याय से निकले हुए "वीर" के बाइस माफीनामें , मुखर्जी का भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ शपथ पत्र और "गोल गुरुजी'" के भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर की गई टिप्पणियों पर क्या जवाब दोगे ? क्या जवाब दोगे जब लोग पूछेंगे की आपकी जन्म स्रोत संगठन ने आजादी के आंदोलन में क्या और कितना योगदान दिया ? क्या आजादी के आंदोलन में वह आंदोलन के साथ थे या आंदोलन के खिलाफ थे ? मुगल काल के सारे नामों को तो बदल डाला लेकिन ब्रिटिश काल के नामों को क्यों नहीं बदल रहे हो अंग्रेजों और ब्रिटिश काल के नामों से इतना लगाव क्यों है क्या इसका साहेब या बाबा के पास मिलेगा ?

देश में चुनाव आचार संहिता लागू हो चुकी है  लेकिन इस आचार संहिता का अचार बनाकर के कुछ पाटिया और न्यूज़ चैनल लगातार देशभक्ति की दुकान खोलकर बैठे हैं और स्टॉल लगाए लगातार देशभक्ति बेच रहे हैं और उसके बदले वोट ले रहे हैं हाल फिलहाल दो वाकये सामने आए जिसमे पहली बार किसी पार्टी को सेना का इस्तेमाल राजनीति के लिए ना करने की सलाह किसी सरकारी संगठन की तरफ से आया जिसमे एक बार सेना की तरफ से बीजेपी को एक लेटर गया जिसमें पुलवामा के शहीदो को अपने पोस्टरों में न इस्तेमाल करने की नसीहत दी गयी तो दूसरी बार खुद चुनाव आयोग ने बीजेपी को आदेश दिया कि उसके सारे नेता विंग कमांडर अभिनंदन के फोटो के साथ खुद की शेखी बघारने वाले पोस्ट डिलीट करे, साथ ही कोर्ट ने फ़ेसबुक को भी इस बात की सलाह दिया कि कोई भी ऐसा न कर पाए।

ऐसी नौबत इसलिए आयी है क्योंकि अभी देश मे देशभक्ति की एक चौकस दूकान लगी हुई है। ये प्रोडक्ट वो पार्टी बनाती है जिसे देश मे  देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने का ईश्वरीय ठेका मिला हुआ है। ऐसी देशभक्ति की दूकान जिसमे पत्रकार उसके ठेकेदार है। न्यूज़ चैनलों पर देशभक्ति का स्टाल रोज खुल रहा है । और इस स्टाल के जरिये देशभक्ति बेच कर वोट और जुगाड़ खरीदने की पूरी कोसिस की जा रही है।कुछ बेहद चरसी पत्रकार तरह तरह के प्रोपेगेंडा चला चला कर सिर्फ एक पार्टी को देशभक्त और बाकी पार्टीयो को देशद्रोही तक साबित करने में लगे हुए है।

मीडिया के इस नपुंशक्ता ने विकराल रूप ले लिया है। कल रविश कुमार में शो में दिखाया गया कि कैसे एक न्यूज पेपर के फ्रंट पर जवाहर लाल नेहरू को वांटेड लिखा गया। ये न्यूज़ पेपर अपने अन्नदाता की वाहियात बातो को सिर्फ सच साबित करने में लगे है कि देश की 2019 में होने वाली समस्यायों के लिए 1964 में मर चुके नेहरू जिम्मेदार है। अपनी हर नाकामी को छुपाने के लिए मीडिया के माध्यम से नेहरू और सत्तर सालो को जिम्मेदार बताया गया है। अच्छा हुआ कि साहब भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं बने। वरना यही कहते कि "भाइयों बहनों अब मैं क्या करूं, मैं कुछ नहीं कर सकता,  क्योकि अंग्रेज सब कुछ लूट कर चले गए"। जैसे कि अभी 70 साल का बहाना मारते हैं।

और अब हर जगह से जवाब पाते पाते थक जाते हैं , तो देश भक्ति पर अपना ज्ञान  बघारना शुरू कर देते हैं । यहां तक कि इनको अपने खिलाफ खड़ा हुआ व्यक्ति भी देशद्रोही नजर आता है । यह स्वयं को राष्ट्र या उससे बड़ा समझने लगे हैं। जब मन किया है, इन्होंने देशभक्ति का सर्टिफिकेट सबको अपनी इच्छा अनुसार जमकर बांटा ।मीडिया में बैठे हुए इनके दलालों ने तो हद कर दी। और देशभक्ति का सर्टिफिकेट भारत रत्न सचिन तेंदुलकर  तक को भी देने की कोशिश की । वो सचिन तेंदुलकर जिसने हम भारतीयों को सीना गर्व से तान कर चलने का मौका दिया। वो सचिन जिसने हॉकी के बाद भारत मे मरणासन्न हो चुके खेल को पुनः विश्वपटल पर जगाया। वो सचिन जिसको खेलते हुए देखने के लिए हिन्दू मुसलमान सब एक दूसरे के साथ लालायित रहते थे।

बीजेपी और आरएसएस के लोगो ने इस "सर्टिफिकेट मार्केटिंग " का खूब कैश इन करवाया। इन लोगो के कोई पूछे की देशभक्ति का सर्टिफिकेट दूसरो को तो बांटते रहते हो।  लेकिन जब बात खुद को सर्टिफिकेट देने की आएगी तो इतिहास के काले अध्याय से निकले हुए "वीर" के बाइस माफीनामें , मुखर्जी का भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ शपथ पत्र और "गोल गुरुजी'" के भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर की गई टिप्पणियों पर क्या जवाब दोगे ? क्या जवाब दोगे जब लोग पूछेंगे की आपकी जन्म स्रोत संगठन ने आजादी के आंदोलन में क्या और कितना योगदान दिया ? क्या आजादी के आंदोलन में वह आंदोलन के साथ थे या आंदोलन के खिलाफ थे ?

बस आपका इन लोगों से इतना सवाल पूछते ही इन लोग का आपको देश का गद्दार कहने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी । और यकीन मानिए यह इतनी शिद्दत से इस काम को करते हैं कि आप जैसे गद्दार साबित हो भी जाएंगे । भले ही जासूसी के केस में रंगे हाथ इनका खुद का आदमी ध्रुव सक्सेना ही क्यों न पकड़ा जाए।  दरअसल इन लोगों का इतिहास ही कुछ इसी तरह के झोलझाल और गद्दारी और से भरा हुआ है । इनके प्रेरणास्रोत स्वयं देश के दुश्मन अंग्रेजो की जी हजूरी करते करते अपना गुज़र बसर किया।

''अगर ब्रिटिश सरकार अपनी असीम भलमन साहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है , तो मैं यकीन दिलाता हु की मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूँगा और अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादार रहूँगा ''

ऊपर लिखी यह चंद लाइनें नाक रगड़ रगड़ कर लिखे गए और माफी मांगे गए बाइस पत्रों के एक पत्र का एक छोटा सा हिस्सा है। जिसमें आज की देशभक्ति का प्रचंड सर्टिफिकेट बांटने वाली पार्टी के कथित "वीर" अपने आप को किसी तरह जेल से छुड़वाने के लिए बिलबिलाते हुए नजर आ रहे है।ये वही थे जिन्होंने हिन्दू धर्म से अलग राजनैतिक हिन्दुत्वा की स्थापना किया। केंद्र और कई राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उसी सावरकर को अपना आदर्श मानती आयी है । आज ऐसा समय है जब उग्र हिन्दू विचारधारा वाली पार्टी सत्ता में है। तब सावरकर के विचार और उनके किये गए कार्यो को लोगो के सामने लाना बेहद जरूरी है । आज़ादी की लड़ाई में उनका योगदान क्या और कितना था ? उनकी भूमिका क्या थी ? ऐसा उन्होंने क्या किया जो आरएसएस और बीजेपी के लोगो ने उनको "वीर" की उपाधि दे दिया ?

यह बात तब से सुरु हुई जब भारत में स्वतत्रता आंदोलन जोरो पर था और लोग एक दुसरे की जात पात धर्म छोड़ कर एक साथ आज़ादी के लिए लड़ रहे थे । इस दौरान हिन्दू राष्ट्रवाद का विचार बनाया गया । हम ये भी कह सकते है की सावरकर उस हिन्दू विचाधारा के जन्मदाता है जिसने देश की सर्वधर्म समभाव को ख़तम करने का काम किया ।मुस्लिम लीग जो दो राष्ट्र वाले सिद्धांत पे चल रहे थी , सावरकर भी उसी नक़्शे कदम पे आगे बढे , हुए अंग्रेजो की फुट डालो और शासन करो की निति को भरपूर सहयोग प्रदान किया।

मुस्लिम राष्ट्रवादियों ने मुस्लिम लीग के बैनर के तले और हिन्दूराष्ट्रवादियो ने हिन्दू महासभा , आरएसएस के बैनर के तले स्वतंत्रता संग्राम का यह कहकर विरोध किया , की हिन्दू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र है । आज़ादी की लड़ाई को पूरी तरह से नाकाम करने के लिए इन दोनों कथित राष्ट्रवादियों ने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया , ताकि वे दोनों अपनी पसंद के धार्मिक राष्ट्र हथिया सके। अगर इस पूरे वाकिये को आज की नज़र से देखा जाए तो जिन्नाह और सावरकर में कोई फर्क नहीं है ।

थोड़ा और गहराई में जाए तो यह मिलता है की 1940 में मुस्लिम लीग के तरफ से जिन्न्हा नेअलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग किया था , लेकिन उससे काफी पहले 19937 में ही अहमदाबाद में हिन्दू महासभा के 19वे महाधिवेशन में सावरकर ने हिन्दू और मुसलमानो के लिए अलग राष्ट्र की मांग कर लिया था । उस समय उन्होंने हिन्दू महासभा के अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए ये कहा था की ''फ़िलहाल भारत में दो प्रतिद्वंदी राष्ट्र अगल-बगल रह रहे हैं। कई अपरिपक्व राजनीतिज्ञ यह मान कर गंभीर ग़लती कर बैठते हैं कि हिन्दुस्तान पहले से ही एक सद्भावपूर्ण राष्ट्र के रूप ढल गया है या केवल हमारी इच्छा होने से इस रूप में ढल जाएगा। इस प्रकार के हमारे नेक नीयत वाले पर कच्ची सोच वाले दोस्त मात्र सपनों को सच्चाई में बदलना चाहते हैं ।इसलिए वे सांप्रदायिक उलझनों से अधीर हो उठते हैं और इसके लिए सांप्रदायिक संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन ठोस तथ्य यह है कि तथाकथित सांप्रदायिक प्रश्न और कुछ नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से हिंदू और मुसलमान के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता के नतीजे में हम तक पहुंचे हैं. हमें अप्रिय इन तथ्यों का हिम्मत के साथ सामना करना चाहिए । आज यह क़तई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एकता में पिरोया हुआ राष्ट्र है, इसके विपरीत हिंदुस्तान में मुख्यतः दो राष्ट्र हैं, हिंदू और मुसलमान।’ सावरकर आरएसएस के वह विचारक है जो हिन्दू और मुसलमान के दो अलग अलग राष्ट्र को बनाने का पूरा प्रयास करता है "।

जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी ने अन्य देशो की सहायता से युद्ध के माध्यम से देश को आज़ाद कराने का प्रयास किया तब इन्ही कथित वीरो ने अंग्रेजी सेना की सहायता किया । इन्होंने सरेआम देश में हिंदुत्व के नाम का मंच बनाकर और हिंदुत्व की भावनाओं का प्रयोग करके देश के साथ आजाद हिंद फौज के साथ और सुभाष चंद्र बोस के साथ गद्दारी किया और देश के उन नौजवानों को जो हिंदुत्व के नाम पर आंधी और मूर्ख बन चुके थे पर लगाया और अंग्रेजों का साथ देकर आजाद हिंद फौज को नष्ट करने की बात किया

उस समय ''वीर'' सावरकर ने ये वक्तव्य था ''‘जहां तक भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिंदू समाज को भारतसरकार के युद्ध संबंधी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिंदू हितों के फ़ायदे में हो। हिंदुओं को बड़ी संख्या में थलसेना, नौसेना और वायुसेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद, और जंग का सामान बनानेवाले कारख़ानों वगै़रह में प्रवेश करना चाहिए। ग़ौरतलब है कि युद्ध में जापान के कूदने कारण हम ब्रिटेन के शत्रुओं के हमलों के सीधे निशाने पर आ गए हैं। इसलिए हम चाहें या न चाहें, हमें युद्ध के क़हर से अपने परिवार और घर को बचाना है और यह भारत की सुरक्षा के सरकारी युद्ध प्रयासों को ताक़त पहुंचा कर ही किया जा सकता है। इसलिए हिंदू महासभाइयों को ख़ासकर बंगाल और असम के प्रांतों में, जितना असरदार तरीक़े से संभव हो, हिंदुओं को अविलंब सेनाओं में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

इसी तरह जब देश में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई और इसके लिए खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बर्लिन की रैलियों से देश के लोगों से इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने और गांधी जी के साथ मिलकर अंग्रेजो को उखाड़ने की अपील किया तब आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर ने 24 मार्च, 1936 को आरएसएस प्रचारक कृष्णराव वाडेकर को एक चिठ्ठी लिखी, जिसमें लिखा - “क्षणिक उत्साह और भावनात्मक उद्वेलन से पैदा हुये कार्यक्रमों से संघ को दूर रहना चाहिये।” उनकी नजर में आजादी की लड़ाई एक “क्षणिक उत्साह” था।

गोलवलकर यहीं नहीं रुकते। वो आगे कहते हैं - "इस तरह से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश 'सतही राष्ट्रवाद' है।" इस चिठ्ठी में वो वाडेकर को ताकीद करते हैं कि वो धूले जलगांव इलाके में संघ की शाखा स्थापित करने पर ध्यान दें।गोलवलकर ने हालांकि ये माना कि आरएसएस कार्यकर्ताओं के मन में भी भारी ऊहापोह था। इनमें से कई भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेना चाहते थे। पर गोलवलकर ने संघ कार्यकर्ताओं को ऐसी किसी भी मुहिम या आंदोलन का हिस्सा बनने से मना कर दिया।

गोलवलकर ने लिखा है -"1942 में बहुत सारे संघ कार्यकर्ताओं के दिल में भावनायें उछाल मार रही थी। फिर भी, उस समय, संघ का काम निर्बाध चलता रहा। संघ ने कसम खाई थी कि वो सीधे (आंदोलन में) हिस्सा नहीं लेगा। इसके बावजूद संघ स्वयंसेवकों के दिमाग में भारी उथल-पुथल मची रही।"

और एक दूसरी बात यह भी रही कि जिस हिंदुत्व का नारा दे देकर और यह हाथ के इस शिखर तक पहुंचे। हिन्दुमहासभा आर एस एस ने जिस से हिंदूप्रिय और मुसलमान विरोधी छवि बना कर अपनी राजनीति खड़ी की उसी  हिंदू महासभा ने 1942 में बंगाल में जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लीग के फजल- उल-हक तब मुख्यमंत्री थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस सरकार में उपमुख्यमंत्री थे। जैसे-जैसे आजादी की लड़ाई परवान चढ़ती गई, बंगाल की लीग-महासभा की संविद सरकार का जुल्म बढ़ता गया।

जिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आज प्रचंड राष्ट्रवादी और प्रखर देशभक्त के तौर पर आरएसएस/बीजेपी/हिंदुत्ववादी पेश करते है उनकी तब के अंग्रेज गवर्नर को लिखी चिठ्ठी हतप्रभ कर देती है और ये सवाल खड़ा करती है कि क्या उन्हें सही मायनों में देशभक्त कहा जा सकता है ? उन्होंने 26 जुलाई, 1942 को गवर्नर को आधिकारिक तौर पर लिखा था-
             “सवाल ये है कि बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन का सामना कैसे किया जाये ? प्रशासन को इस तरह से चलाया जाये कि कांग्रेस की भरसक कोशिश के बाद भी ये आंदोलन बंगाल में अपनी जड़ें न जमा पाये, असफल हो जाये। भारतीयों को ब्रिटिशर्स पर यकीन करना होगा, ब्रिटेन के लिये नहीं, या इससे ब्रिटेन को कोई फायदा होगा, बल्कि बंगाल राज्य की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिये।”

अगर आज के माहौल में इस तरह की चिठ्ठी लिखी गई होती तो न केवल श्यामा प्रसाद मुखर्जी को देशद्रोही करार दिया जाता बल्कि उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा भी चलता। बहुत संभव है कि उन्हें आगे चलकर जेल की हवा भी खानी पड़ती। लेकिन आज श्यामा प्रसाद का गुणगान हो रहा है।हम श्यामा प्रसाद को महान तब मानते जब फजल-उल-हक की सरकार से इस्तीफा देते और आंदोलनकारियों के साथ अंग्रेजों की लाठियां खाते। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो जिन्ना की पार्टी के साथ मिलकर आंदोलनकारियों पर लाठी भंजवाते रहे।

स्वतंत्रता सेनानी’ हेडगेवार आरएसएस की स्थापना से पहले कांग्रेस के सदस्य हुआ करते थे। ख़िलाफ़त आंदोलन (1919-24) में उनकी भूमिका के कारण उन्हें गिरफ़्तार किया गया और उन्हें एक साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी। आज़ादी की लड़ाई में यह उनकी आख़िरी भागीदारी थी। रिहा होने के ठीक बाद, सावरकर के हिंदुत्व के विचार से प्रभावित होकर हेडगेवार ने सितंबर, 1925 में आरएसएस की स्थापना की। अपनी स्थापना के बाद ब्रिटिश शासन के पूरे दौर में यह संगठन न सिर्फ़ उपनिवेशी ताक़तों का आज्ञाकारी बना रहा, बल्कि इसने भारत की आज़ादी के वास्ते किए जाने वाले जन-संघर्षों का हर दौर में विरोध किया।

ऐसा नहीं है कि हेडगेवार जी जेल नहीं गए, 
आजादी के आंदोलन में वह एक बार जेल गए ।लेकिन उनका जेल जाने का मकसद,सच्चे स्वतंत्रता सेनानियों के जेल जाने के मकसद से बेहद अलग था । यह बात खुद आरएसएस द्वारा प्रकाशित उनकी जीवनी ही बताती है , उसमें लिखा है "कि वह इस विश्वास के साथ जेल गए कि,  आजादी से मोहब्बत करने वाले अपनी कुर्बानी देने को तैयार प्रतिष्ठित लोगों के साथ रहते हुए , उनके साथ संघ के बारे में विचार-विमर्श करेंगे , और उन्हें संघ के लिए काम करने के लिए तैयार करेंगे।

भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के डेढ़ साल बाद, ब्रिटिश राज की बॉम्बे सरकार ने एक मेमो में बेहद संतुष्टि के साथ नोट किया कि ‘संघ ने पूरी ईमानदारी के साथ ख़ुद को क़ानून के दायरे में रखा है। ख़ासतौर पर अगस्त, 1942 में भड़की अशांति में यह शामिल नहीं हुआ है।"

एक और दिलचस्प वाक्य जानना भी जरूरी है कि जिस सरदार पटेल के नाम की माला जप जप कर नरेंद्र मोदी जी सत्ता के शीर्ष पर बैठे हैं । और जिस नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम का टोपी लगाकर और उनके जैसी वर्दी पहनकर नरेंद्र मोदी जी देश में कई कोनो में घूमते हुए नजर आए। उन्हीं सरदार पटेल और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आर एस एस रावण का अवतार मानती थी । एक फोटो आरएसएस की मराठी पत्र  "अग्रणी" में 1945 में छपी थी । इस फोटो में सावरकर को "भगवान राम" की जगह और श्याम प्रसाद मुखर्जी को "भगवान लक्ष्मण" की जगह दिखाया गया है । साथ में महात्मा गांधी को "रावण" दिखाया गया है।  रावण के 10 सिरों के रूप में सरदार वल्लभ भाई पटेल,  नेताजी सुभाष चंद्र बोस , मौलाना आजाद , राजगोपालचारी , आचार्य कृपलानी , जवाहरलाल नेहरू और पंडित गोविंद बल्लभ पंत जैसे लोगों को दिखाया गया है।  साथ ही यह दिखाया जा रहा है कि सावरकर राम बने हुए धनुष से रावण का रुप दिए हुए इन महापुरुषों का वध कर रहे हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है की या तो उस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल गलत है ?  या तो श्याम प्रसाद मुखर्जी और दिसावर का गलत थे ? अगर सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल गलत है तो बीजेपी आज उनके नाम की इतनी बड़ी राजनीति क्यों कर रही है ? इस हिसाब से एक "गलत आदमी" के 3000 करोड़ की मूर्ति क्यों बनवाई जा रही है ? और अगर विनायक दामोदर और श्यामा मुखर्जी गलत थे , तो वह गलत आदमी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के प्रेरणा स्रोत कैसे हैं ?और अगर वह गलत आदमी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत हैं , तो क्या वह पार्टी सही रास्ते पर है ? या उस पार्टी के सिद्धांत और उसकी नीतियां देशहित में है ?

भारतीय जनता पार्टी , अमित शाह ,नरेंद्र मोदी या भारतीय जनता पार्टी का कोई भी सीनियर जूनियर नेता , कार्यकर्ता बताने का कष्ट करेगा कि वह श्यामा मुखर्जी या वीर सावरकर को अपने प्रेरणा स्रोत कैसे मानते हैं ? जिस "वीर" ने चिट्ठियां लिख लिख कर कलम घिस डाली, जिस श्याम प्रसाद मुखर्जी में आंदोलन को दबाने के लिए ना जाने कितने नरसंहार करवा दिए, वह लोग सच्चे देश भक्तों के प्रेरणादायक कैसे हो सकते हैं ? जो सच में देश भक्ति मे लीन है उन लोगों के प्रेरणा स्रोत आज के जमाने के गद्दार कैसे हो सकते हैं ?

अब ये जिम्मेदारी आरएसएस और बीजेपी की बनती है की वो बताये की विनायक दामोदर सावरकर ने ऐसा क्या किया आज़ादी के आंदोलन में की उनको वीर की उपाधि मिल गयी ? या अंग्रेजो से 22 पत्र लिखते हुए रोने वाले को, देश को हिन्दू मुस्लिम के नाम पर को, देश की जनता को साम्प्रदाइकता की आग में झोकने वाले को''वीर'' कहा जाता है ? भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने वाला और अंग्रेजों की सरकार  के साथ मिलकर के  स्वतंत्रता सेनानियों  की  बर्बरता पूर्वक पिटाई करवाने वाला लगातार मुस्लिम लीग के सुर में सुर मिलाते हुए अंग्रेजों  और मोदी जी सरकार की तीमारदारी करने वाला देश भक्त है अगर 'हां' तो फिर सरदार भगतसिंह , राम प्रसाद बिस्मिल, असफाक उल्लहा खाना , रोशनलाल , चंद्र शेखर आज़ाद , सुखदेव ,राजगुरु , सुभाष चंद्र बोस को हम क्या कहेंगे ? क्योकि ये लोग विनायक दामोदर सावरकर की विचारधारा और उनके कृत्य के बिलकुल विपरीत थे ।

अब इन सब के बाद भी यह लोग दूसरों को देश भक्ति का ज्ञान और देशभक्ति की सर्टिफिकेट बहुत ही आसानी से धड़कने से बांटते फिरते हैं । जिन लोगों ने फैक्ट्रियां खोल खोल कर देश भक्ति को बेचा है । जिनके पूर्वजों ने पहले आजादी की लड़ाई में खुद के ईमान बेच अंग्रेजो के तलवे चाटे, और देश के साथ गद्दारी की । और अब उनके वंशज देश के संविधान को खत्म करके फिर से वही अंग्रेजी कानून लागू करके अपने पुराने मालिकों को कुछ तोहफा देना चाहते हैं । दूसरों को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने से पहले इन लोगों को खुद के इतिहास और खुद के गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए । और यकीन मानिए कि इनका इतिहास और उनका गिरेबान इतना गंदा है , कि उसमें झांकने से ही यह अंधे और बहरे बन कर इधर-उधर दांत चियारते हुए परलोक सिधार सकते है।

Comments

Post a Comment

Popular Posts