कातिल नही देखता
कत्ल होकर भी अपना कातिल नही देखता
तन्हाई का दीवाना कभी महफ़िल नही देखता
देखने वाला भी दौलत शोहरत सब देख लेता है
पर कभी झांक कर मेरा दिल नही देखता
राह ए उल्फत की कुर्वत ही कुछ ऐसी है मुर्शिद
की चलने वाला फिर कभी मंजिल नही देखता
दरिया ए इश्क चुना है कश्ती डुबाने को इलाही
मैं मौजों का तलबगार हूँ, साहिल नहीं देखता
मैने चांद को भटकते देखा है तन्हा रात भर
फ़ना का रूहानी मस्त,अब क़ामिल नहीं देखता।

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