नज़्म — "तुम्हारे होने की ख्वाहिश"


कभी लगता है,
तुम पास नहीं, फिर भी सबसे ज़्यादा यही हो।

एक जानी-पहचानी ख़ामोशी में
तुम्हारी साँसें सुनाई देती हैं,
हर कोना,
हर रास्ता,
तुमसे होकर गुजरता है।

मैंने कोशिश की तुम्हें भूल जाने की,
पर तुम तो हर आदत में बस गए हो।
चाय की चुस्की में,
बारिश की पहली बूंद में,
नींद से जागते ही जो पहला ख़्याल आता है —
वो भी तुम्हारा होता है।

कई बार सोचा,
खुद को तुम्हारे नाम से आज़ाद कर दूँ…
मगर ये मोहब्बत
इक सज़ा नहीं,
एक आदत बन गई है।

तुम्हारे बिना भी
सब कुछ होता है,
पर कुछ भी पूरा नहीं होता।

जैसे चाँद तो निकलता है,
पर उजास नहीं होती।
जैसे बारिश होती है,
पर मिट्टी की महक नहीं उठती।

कभी तुम मिलो…
बिना वजह, बिना वक़्त,
बस यूँ ही।
मैं कुछ नहीं पूछूंगा,
कुछ नहीं कहूँगा —
तुम रहो, और मैं
तुम्हारे होने को सुनती रहूँगा।

क्योंकि कुछ लोग
लब्ज़ों से नहीं,
बस मौजूदगी से मोहब्बत होते हैं।

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