ग़ज़ल लिख डाले

आंखों पर उनके जाने कितनी ग़ज़ल लिख डाले
कागज पर हमने तूफान और हलचल लिख डाले

उतने मिसरे अब रेख़्ते में भी नहीं मिलते इलाही
जितने शेर बावरे ने तुझपे आज कल लिख डाले

बनाई होगी किसी शाहजहां ने इमारत ए दौलत
हमने तो कलमों से कई ताजमहल लिख डाले

एक तेरी नजर पर कलम कुछ ऐसी ठहरी साहेब
एक ही शेर हमने लफ्ज़ बदल बदल लिख डाले

तब ज़माने ने भी उसे ग़ज़ल समझ लिया,
जब पन्नों पे तेरे संग बिताए पल लिख डाले।


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