गजल का पन्ना बना रखा है
तेरी तारीफ में असमान ये सितारों से सजा रखा है
खुदा ने मौसमों को तेरे गजल का पन्ना बना रखा है
तू नजरें झुकाए तो कही दिन ढल ना जाए इलाही
ऐतिहातन उसने दो चार सूरज भी जला रखा है
ताकि तेरे आँगन की ताबीर रोशन रहे हर शाम
हमने जुगुनुओ को तेरे घर का पता बता रखा है
और चिरागों को भी जरूरत है परवाज़-ए-नूर की
इसलिए हर चिराग़दाँ पर तेरी तस्वीर लगा रखा है
अब क्या बताए इस अंधेरे का सबब हम इलाही
सूरज को तूने अपनी जुल्फों के साए में छुपा रखा है
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