एक ख़ुशबू,
गलियों में फैली है एक ख़ुशबू,
जो नाम तक नहीं जानती,
मगर हर दीवार पे लिखा है —
कि कोई था…
जो किसी की नज़र-ए-करम से बदल गया।
वो शमा, जो पहले उजालों की गुलाम थी,
अब परवानों की दुआओं में जलती है।
हर चिंगारी, अब किसी मिलने की
तमन्ना में बुझती नहीं,
बल्कि रौशनी बन जाती है।
कुछ लफ़्ज़, जो कभी ज़ुबां तक आते-आते
थम जाया करते थे,
अब तेरे लहजे की उल्फ़त में
पिघलने लगे हैं।
दरमियान कुछ अधूरे से जुमले रह गए थे,
कुछ खामोशियाँ, जो लफ़्ज़ बनने से रह गईं —
मगर अब?
अब उनमें भी मोहब्बत बोलती है।
तेरा शुक्रिया...
कि तू जफ़ाओं की राह पर भी
इतने एहतराम से चली,
कि मेरी बेरंग तस्वीर में भी
रंग भर गए।
तू हवाओं की तरह पास होती तो
शायरी महज़ तुकों का खेल न रहती,
वो रवायत बनती —
जिसे मुहब्बत का नाम मिलता।
अब ये जो शोहरत है...
ये जो बेतरतीब सी चुप है,
ये जो बेमतलब मुस्कानें हैं —
सब तेरे होने का सबूत हैं।
वरना हम कौन थे,
जो भीड़ में पहचान लिए जाते .

Comments
Post a Comment