क्या करे कोई

मेरी नजरें उनकी नजरों से मिले तो क्या करे कोई,
दिल की बात जब ये आंखे कहे तो क्या करे कोई।

तेरी शिकायत लिए हम खुदा के पास चले तो जाए
पर खुदा ही तुझपे फिदा हो जाए तो क्या करे कोई

एक तमन्ना थी उनको चांद की रोशनी में देखने में
पर चांद ही उन्हें देख छुप जाए तो क्या करे कोई

मुसलसल लम्हे मिलते रहे उन्हें हाले दिल बताने के
इजहारे इश्क ही लरजिश में रहे तो क्या करे कोई

यू तो वजह ए गुफ्तगू और भी है जहान में इलाही
पर लबों पर जिक्र उनका ही रहे तो क्या करे कोई

यू तो सारा जहां हाजिर है दीदार की खातिर बावरे
पर जो आंखों में वो ही वो बसे तो क्या करे कोई


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