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कितना ज़ार ज़ार करना

हमने अपने खजाने लुटा दिए

कसम से शिकायत है तुझसे सनम

तुम्हे देखने का गुनाह कर लें

अब कोई चारा नही है

इतनी बेकल नही होती

नूर ए महताब का रंग वो बू मिले

परदा डाला नही जाता

हुस्न ए शार हो जाएगा

कुछ ऐसे रच जाऊँ मैं