मुझको भी खबर है

सिर्फ  तुमको ही नहीं ये तो मुझको भी खबर है
की इन पूरब की हवाओं का रुख अब किधर है

वो जब  चाहे तुझे बसा ले जब तुझको निकाले
बावरें  तू उसकी  मोहब्बत में कितना बेकदर है

दरिया में उतरते ही मेरी ये  कश्ती डूब जाती है
मेरा मांझी ही जाने साहिलो पे ये कैसा भंवर है

मेरी  तंगदिली पर  तू  सवाल  मत उठा इलाही
पहले बता तेरे खुद के मोहल्ले में कितने घर है

मुझे सहेरा में रहने के सलीके सीखा मुरशीद
मेरी  प्यास  पर अब ये  दरिया भी  बेअसर है

अपने घर की किस्से भी अखबारों में छाप बैठे
सबकी खबर रखने वाले ये नादां कितने बेखबर है

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