पैरहन की खुशबू
मेरे लिबास में कुछ ऐसे सिमट गई तेरे पैरहन की खुशबू
मै करवट बदलता रहा,रात भर आती रही तेरे बदन की खुशबू
एक दिन गले लगा कर मुझे कोई कलमा पढ़ा था उसने
आज तलक मुझसे भुलाई नहीं गई उस सुखन की खुशबू
पिछली होली में उसने चुटकी भर गुलाल उड़ाया हमपे
अब हर त्यौहार में हमे आती है सिर्फ उसी फगुन की खुशबू
इन सुखनवारो और इन शायरी के बस की ये बात नहीं
कोई हमसे पूछे की क्या होती है तुम्हारे छुवन की खुशबू
इन लिहाफो की अब तुझको कोई जरूरत कहां बावरें
तेरी ताब ए रात तो करती रहेगी उनसे वो मिलन की खुशबू
माली ने तो बागवां बचाने का खूब जतन किया इलाही
फिर भी एक फूल ले गया अपने साथ पूरे चमन की खुशबू
पूरब की हवाएं बस इतनी गुजारिश है इस परदेशी की
अबकी बार आना तो अपने साथ लाना मेरे वतन की खुशबू
Comments
Post a Comment