फिर से कुछ अपनी सुनाऊं मैं
तुम्हारे सूखे दामन को अपने अश्को से भिगाऊ मैं
तुम कितनी खास हो मेरे लिए ये तुझको बताऊं मैं
वैसे तो तुमको देखते ही भूल जाता हूं अपने गम
पर फिर भी इजाज़त हो तो कुछ अपनी सुनाऊं मैं
तेरे ख्वाब पलते आसमां के चांद सितारे में
मै बेमोले भी नही बिकता इन बाजारों में
तेरे दामन में जन्नत समेटे कई लाल सवेरे है
मेरे कश्कोल में तो बस सूनेपन के अंधेरे है
तेरी सलामती की दुआ हर शख्स पढ़ता है
मेरी फरियाद सुनने को कोई ना मिलता है
तुझे खुदा मान लिया अब खुदा से कैसे छिपाऊं मैं
पर फिर भी इजाज़त हो तो कुछ अपनी सुनाऊं मैं
तेरे रोम रोम में पूनम भरी कोई रोशनाई है
मेरे आंगन में बस अमावस की तनहाई है
तेरे ख्वाबों को मुफलिसी से कैसे सजाऊंगा
खैरात ए कश्कोल से कितने महल बनाऊंगा
तुझे तोहफे में देने को ये कलम उठाऊंगा
और सब चांद तारे इसी कागज पे उतरूंगा
जाने महलों की लाडली को और कैसे रिझाऊं मैं
पर फिर भी इजाज़त हो तो कुछ अपनी सुनाऊं मैं
तुम एक कागज़ बनना मेरी कहानी लिखने को
बुढ़ापे की कलम बनना एक जवानी लिखने को
मै तन्हा खाली राते लाऊंगा तुम महफिलें लाना
पल पल मेरे अंधेरे को अपनी रोशनी से सजाना
अपनी सारी नाकामियां,परेशानियां भूल जाऊंगा
तू बस हाथ रख के हाथ पर हौले से मुस्कुराना
कितना कुछ कहना है,एक माला में कैसे पिराऊ मैं
पर फिर भी इजाज़त हो तो कुछ अपनी सुनाऊं मैं
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