संगेमरमर हो गए
मोहब्बत से भरे सारे बगवान बंजर हो गए
हम उसकी खुशी के खातिर शायर हो गए
काँटे सारे रौनक ए महफ़िल बन गए इलाही
और हम तो फूल बांटते बांटते पत्थर हो गए
वो ताज सी अपनी बुलंदी पर खड़ी इतराती रही
हम उसकी बुनियाद में बिछके संगेमरमर हो गए
अपने हक़ूक़ का सारा जमजम उसे दिया
और हम हलाहल पीकर भोले शंकर हो गए
शमशीर सी सीधी बात करने की आदत थी
दुनियादारी के चक्कर मे हम खंजर हो गए
मोहबत में इतनी बाजियाँ हारी है बावरें
जिंदगी ले अब हम खुद तेरे चौसर हो गए
एक महल वाले के साथ घर बसाया है उसने
जिसकी आस में न जाने कितने बेघर हो गए
आसमाँ में ऊंचा उड़ने की ख्वाहिश थी उसकी
उसको पर क्या दिया, हम खुद बेपर हो गए
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