कांच सा जमीं पर बिखर जाऊँ मैं
कतरा कतरा अब दर्द से गुज़र जाऊँ मै
टूटकर कांच सा जमीं पर बिखर जाऊँ मै
मुझे भटकने दे उसकी गलियों में खुदारा
क्या रखा है घर मे जो अपने घर जाऊँ में
मेरी अँजुली खाली एक मुद्दद से है इलाही
बद्दुआ ही दे दे की रोते रोते गुज़र जाऊँ मै
इन खुशियों को तू औरो में बांट दे गमीन
मुझे कोई घाव दे कि गम से भर जाऊँ मैं
मेरी हर सांस अब उसके खुशबू की आदी है
उसके साथ न रहने से अच्छा है मर जाऊँ मै
जिंदगी ने रुसवाई में कसर न छोड़ी बावरें
मौत शायद तुझसे मिल कर संवर जाऊँ मै
यूँ तो शहर की हर हवा में उसकी यादें है
कब्र में शायद उनकी यादो से बिसर जाऊँ मैं
एक तरफ आग है एक तरफ है दरिया
मौत तू बता तेरा हाथ थाम किधर जाऊँ मै
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