जिंदगी धुँआ निकली
आसमान में छाये बादलों जैसी धुआं निकली,
जिंदगी तू तो सच मे बड़ी बेवफा निकली।
जिन हाथो को अपना समझ थामे रखा हमने,
उनमे किसी और के नाम की हिना निकली।
तुम्हारे दिए हर घाव से मेरी आह निकली,
हर आह के साथ मिरे जिस्म से जाँ निकली।
बन्द मुट्ठी से निकलती रेत देख समझ आया
उसकी चुनरी मेरे हाथो से किस तरा निकली।
तोहमत ए बेवफाई का दौर खत्म हुआ इलाही
उनसे तख़रीरो में सिर्फ मेरी ही खता निकली।
ये बे रूह तो बस जीने के लिए जिंदा है बावरें
जिस्म से रूह तो उसके जाने के दौरां निकली।
फरिश्ते भी जनाजा उठाने की दुआ करने लगे
जो मेरी मय्यत देखने घर से वो बला निकली।
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