तू समझता है कि मुझे कुछ खबर नही
जो तेरे बगवान में वफ़ा का कोई शज़र नही
तो मेरी आँखों मे भी अब तमन्ना ए सहर नही
मैं तो चुप इसलिए हूँ कि तेरा तमाशा न बने
और तू समझता है कि मुझे कुछ खबर नही
शहर ए ख़ामोशा में ही सही जमींदारी तो है
ये न सोच की मेरे पास अपना कोई घर नही
ये मिलने का इंतज़ार भी अजीब है इलाही
वो बेसबर नही और मुझको कोई सबर नही
हाल ए वफ़ा का तुमको क्या ही बताए गमीन
जितनी सिद्दत इधर है उतनी चाहत उधर नही
यूँ तो मेरी तड़प ने पत्थरो के आंशू निकाले है
पर तुम बेदिल हो तुम्हे इसका कोई असर नही
दुनियां जहाँ को तुमने सर से लगा रखा है
ये सच है कि तुम्हे बस हमारी ही कदर नही
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