पर दिल ने कुछ सुना है।
शायद मिरा नाम लिया है, या भेजी कोई दुआ है, कोई सदा तो नही आयी, पर दिल ने कुछ सुना है। तुम्हारा चलना तो यूँ मुसलसल ही लगा रहता है धड़कनो अभी तो थम जाओ, उसने कुछ कहा है। कैसे बुला लूं इनको फलक से जमीन पर इलाही मेरे महबूब को इन्ही चांद तारों मे रहने का गुमां है। जिसे पाया नहीं, फिर भी हर जगह मुझे मिला है वो सिर्फ लड़की नही, वो मेरा इश्क़, मेरा खुदा है। मुझे दोजख, जन्नत कि अब परवाह नही इलाही उसके इश्क़ को मैने इबादत ए खुदा सा जिया है। न कसमे, न वादे, ना उसने, ना मैने कुछ कहा है फिर भी उसकी आँखों पे मैने "अंजूरी" लिखा है। सुन लिया वो अल्फ़ाज़ जो लबों तक आ न सके मेरी आँखों ने उसकी आँखों को कुछ ऐसे पढ़ा है।