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वो आंखों में ठहर जाती

जो सही गलत से परे, दूर कही  हमारी  नजर  जाती आँखें  उनसे मिलती, और  वो आंखों  में ठहर जाती उससे मिलता मै भी दुनिया के रिवाजों को  भूल कर कांधे पर सर रखती, बाहों  में टूट  कर  बिखर जाती कभी खुले बालों के, कभी डिंपल के  कसीदे  कहता  वो खुद को मेरी आंखों से देखते  देखते निखर जाती वो बेपरवाह सी हंसी, वो आंखों में उतरा अल्हड़पन जब भी दिखती, तस्वीर बन कर सीने में ठहर जाती वो चुपके  से आती,  रूह की  दरारों  में उतर जाती वो  मेरी  पगली प्रिंसेस थोड़ा सा  और  संवर जाती वो थमाती अपनी हथेलियाँ,  मेरे बेजान से हाथों में फिर मेरी  एंजल मेरी  बाँहों में गिर के सँभल जाती मैं जब भी गुजरता उसकी गलियों से होकर इलाही वो कभी छत पे,तो कभी बालकनी पर नजर आती

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