सुलाया है खुद को
तेरी रहगुज़र में गुल बनके बिछाया है खुद को
फकीर बन तेरी बाजार में लुटाया है खुद को
मुद्दतो बाद तेरे ख्वाब देखने को मिलेंगे नींद में
बस यही लालच दे कर मैने सुलाया है खुद को
ताकि उसकी कश्ती साहिल तक पहुँच जाए
जिंदगी तेरे भंवर में हमने डुबाया है खुद को
यूँ ही नही बसते है तारे मेरे आगोश में इलाही
आसमां जितना काबिल मैने बनाया है खुद को
नफरतो का दौर मुसलसल चलता रहे इलाही
तेरे सच्चे झूठे अफ़साने मैंने सुनाया है खुद को
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