ग़ालिब-मीर सा फनकार बन जाये

ये खुदा काश उनका इंतेज़ाम ए दीदार बन जाये
तो ये दिन दीवाली और होली का त्योहार बन जाये

जो उनकी  आंखे  को अल्फाज़ो में कोई पिरोये
तो  जाहिल भी ग़ालिब-मीर सा फनकार बन जाये

होंठो  का तिल  देख यही दुआ  मांगी है इलाही
काश हम भी इस मिल्कियत के पहरेदार बन जाये

जो तेरे दीद ए अब्र ए करम की रहमत हो जाये
तो काम का दिन भी छुट्टी वाला इतवार बन जाये

बावरें  जो  तू  ग़ज़ल लिखने बैठ जाये उन पर
तो उनका हुस्न खूबसूरती का नया मेयार बन जाये

खुली जुल्फों के साये का कुछ ऐसा जतन कर
हम भी पल दो पल को इसमें किरायेदार बन जाये

तू भी कभी बड़े काम का  हुआ करता था बावरें
जो नज़र मिली तो मुमकिन है तू भी बेकार बन जाये

Comments

Popular Posts