कोई साहिल मिला नहीं
ऐसा तो नही उससे खूबसूरत कोई दिखा नही
बस आंखों में उसके सिवा और कोई रुका नही
एक बार जो हम उनकी आंखों में डूबे इलाही
फिर कश्ती डूबती गयी,किनारा कोई मिला नहीं
बस एक झलक भर देखा था हमने उन्हें कल
तब से मंजिल की खबर नही,रास्ते का पता नही
एक रोज उनके लबों का जाम चखा था मैंने
यकीनन दूसरे मैखानो में उसके जैसा नशा नही
कसम से एक बार आंखों में झांक कर देखो
गुम होने के लिए उससे बेहतर कोई जगह नही
इन कत्थई झीलों में बहकने वाले पार हुए
होशवालों को ये हुनर ए तैराकी पता नही
वो झील सी आंखे, घुंघराले अलकों का घेरा
सोचा ग़ज़ल लिखू, पर लफ्ज़ कोई मिला नही
उसको लिख तो दूं हूबहू उसी के ही जैसा
पर मेरे अल्फाज़ो में उसके नूर जैसी शफा नही
बस वही फूल मेरी डाली पे कभी खिला नही
फिर ये बगबान कभी इस मैखाने से उठा नही
मेरी इबादत की सिद्दत तो देख मुरशिद, की
मेरे मंदिर में उसके सिवा और कोई खुदा नही
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