कलम भी तेरी गुलाम हो जाये।
शहर ए हुस्न में तेरी पायल अब सरेआम हो जाये
इनकी झंकार सुने और मौसिकारो का काम हो जाये।
मैं एक कागज पे तेरे हुस्न की तारीफ लिख तो दूं,
पर मुमकिन है कि ये कलम भी तेरी गुलाम हो जाये।
बस एकबार तेरे चरणों में सजदा करना है इलाही,
फिर चाहे हम शहर भर में क्यो ना बदनाम हो जाये।
कभी मैं तेरा खयाल रखूं,कभी तू मेरी फिक्र करना,
ऐसे ही चलते चलते शायद ये राह आसान हो जाये।
जिक्र ए यार में एक दौर हमारे नाम का भी चले,
खुदा तेरी नेमत होगी, जो हमारा ये अंजाम हो जाये।
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