सुकुन आ जाए
खुदा बागवां की अंजुरी में इतना तो सुकूं आ जाए
फिर बहारें खिलें फिर गुलों में रंग-ओ-बू छा जाए
भले ही इस माली का कोई हमसफर बने या न बने
मेरे खुदा बस देखना गुलिस्तां में न कोई अदू आ जाए
इसी उम्मीद में मैंने खिड़कियां खोल रखी है इलाही
शायद इन हवाओ के साथ उनकी खुशबू आ जाए
जरूरी नहीं की हर बीमारी का इलाज दवा से हो जाए
ठीक वो भी हो जाते है जिनका हाल पूछने तू आ जाए
वजीर ए लश्कर मैं सच बोलते बोलते थक चुका हूं
काश मुझमें भी तुझसा अंदाज ए गुफ्तगू आ जाए
कभी कोई खबर मिले या कभी वो हुबहू आ जाए
अनजाने में ही सही, काश वो मेरे रुबरू आ जाए
कयामत को मेरे सारे गुनाह माफ भी हो सकते है
अगर तू बन कर मेरा गवाह ए आरजू आ जाए
मौत तुझसे तो बस इतनी सी इल्तेजा है हमारी
मुझसे मिलने पहले मेरी जां आए,फिर तू आ जाये
इस रकीबों की महफिल में तू मेरे साथ आ जाना
इससे पहले की मुझपे सवाल ए आबरू आ जाए
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