संघर्ष के आदी, समाजवादी

पर्वत की दीवार कभी क्या रोक सकी तूफानों को। 
क्या बंदूकें रोक सकेंगी बढ़ते हुए नौजवानों को।
 चूर-चूर हो गई वह शक्ति जो हमसे टकराई है,
आज चलेगा कौन देश से भ्रष्टाचार मिटाने को।

बर्बरता से लोहा लेने आज देख ले कौन रचाता मौत के संग सगाई है।
अखिलेश यादव का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है। 
समय अब आ गया है उखाड़ फेंको सत्ता के अत्याचारी को
तिलक लगाने तुम्हें नौजवानों अखिलेश क्रान्ति द्वार पर आई है॥


सड़को पर खून भले बिखरा, हम अब भी संघर्षो के आदी है, 
जुल्म की पराकाष्ठा को चुनौती देने आये अब समाजवादी है,
सुन लो आज सत्ताधीशो तुम घमंड तुम्हारा अब जरूर टूटेगा
अब तीर तुम्हारा अपने जिगर से झेलेंगे हम वो लोहिया वादी है

लाठी मुकदमो से क्या डराओगे तुम, तुम तो खुद ही इससे डरते हो
ताप जब बढ़ जाता है क्रांति का, संसद में खड़े होकर रोते हो।
मत भूलो कैसे तुमको बक्शा था हमने जब बात जान पर आई थी
हवाला देकर रामराज का तुम तानाशाही जनता पर करते हो।

बिगुल बज उठा समाजवाद का अखिलेश ने क्रांति लौ जलाई है
संघर्षो को दोहराने वालो ने फिर सत्ता से छेड़ी घनघोर लड़ाई है
खुले शस्त्र है खुले तीर है खुली हुई तेरी जुल्मो की अब ताबीर है।
फीके पड़ेंगे ये दांव सब  फिर से अखिलेश वाद ने ली अंगड़ाई है।


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