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Showing posts from March, 2019

अभिन्न द्वार पर खड़ा बेबस मैं ताकता

जिस आदमी को शहीद-ए-आजम का कथित तमगा इस देश में दिया गया है उस सरदार भगत सिंह और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव को ही देश में शहीद का दर्जा दर्जा नहीं दिया गया है उन्हें आज तक भारत सरकार में शासन करने वाली दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने शहीद नहीं माना और ना ही उन्हें आधिकारिक रूप से शहीद का दर्जा दिया।अंग्रेजो ने अगर भगत सिंह की शारीरिक हत्या किया तो , आज़ादी के बाद से अब तक बीजेपी, कांग्रेस और भारत के कुछ कथित नौजवान क्रांतिकारी भगत सिंह की सामाजिक और राजनीतिक हत्या करते आ रहे है।

देशभक्ति का सर्टिफिकेट दूसरो को तो बांटते रहते हो। लेकिन जब बात खुद को सर्टिफिकेट देने की आएगी तो इतिहास के काले अध्याय से निकले हुए "वीर" के बाइस माफीनामें , मुखर्जी का भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ शपथ पत्र और "गोल गुरुजी'" के भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर की गई टिप्पणियों पर क्या जवाब दोगे ? क्या जवाब दोगे जब लोग पूछेंगे की आपकी जन्म स्रोत संगठन ने आजादी के आंदोलन में क्या और कितना योगदान दिया ? क्या आजादी के आंदोलन में वह आंदोलन के साथ थे या आंदोलन के खिलाफ थे ? मुगल काल के सारे नामों को तो बदल डाला लेकिन ब्रिटिश काल के नामों को क्यों नहीं बदल रहे हो अंग्रेजों और ब्रिटिश काल के नामों से इतना लगाव क्यों है क्या इसका साहेब या बाबा के पास मिलेगा ?

संघर्षो से खड़ा मुस्किलो में लड़ा हू मैं

"मैं  उस परंपरा की कड़ी हूं जो प्रह्लाद से शुरू होकर सुकरात से होते हुए गांधी तक पहुंची है।मैं चाहता हूं कि मनुष्य हथियारों या ताकत का उपयोग किए बिना अन्याय एवं शोषण के विरोध करने की कला को सीखें ।" जब डॉक्टर लोहिया इस तरह से समाजवाद को लोगो के सामने रखते , तो ये दिखता की वो इस पर कितना फक्र करते है। ये  वैचारिक परंपरा शहीदे आज़म भगत सिंह और महात्मा गांधी से देश मे पनपते हुए, लोहिया जी के हाथों से होते हुए समाजवादी नेता मुलायम सिंह के विचारों में आई। और अब यह अखिलेश यादव की नीतियों में पूर्णतया समाहित नज़र आती है।

विकराल क्रोध के प्रचंड का

जो आदमी बीजेपी के जन्मदाता अटल जी की मौत के नाम पर उनकी अस्थियां लोटो में भर कर घुमा घुमा कर वोट जुगाड़ने की कोसिस कर सकता है वो भला सेना को वोट के लिए बेचने से कैसे कतरायेगा। शहादत से लेकर एयर स्ट्राइक तक को वोट के दुकान में बदलने की कोसिस किया गया। पूरी कोसिस की गई कि शहादत और वीरता नाम के इस "प्रोडक्ट" को बेचने के बदले अच्छे दाम वाले वोट मिल जाए, और चुनावो में मुद्दों को दबाकर सिर्फ सेना के शौर्य को बेचकर काम चला लिया जाए। और युद्ध का मोर्चा संभालने का काम दलाल पत्रकारों समेत गोदी मीडिया को दे दिया।

वीरता का अभिनंदन है ये