बेहद अफसोस और शर्मनाक की बात है कि मेरे देश का प्रधानमंत्री झूठा है । वह ऐसे-ऐसे झूठ बोलता है जो सबके सामने पहले से उजागर रहते हैं । उसे सही-गलत की परवाह नहीं ।इतिहास-भूगोल की कोई कदर नहीं । वह सिर्फ अपने सुविधानुसार झूठ पर झूठ बोलता जाता है । और लोगों द्वारा उसके झूठ को सामने जब लाया जाता है , और उनको बताया जाता है कि नहीं आपने बात झूठ बोली , तब भी उनको कोई शर्म नहीं आती है। ना ही उन्हें अपनी झूठ पर कोई अफसोस होता है ।बल्कि वह दुगने उत्साह से अगले भाषण में और बड़ा झूठ बोल देते हैं ।कहने में तो अच्छा नहीं लगता , लेकिन हकीकत तो यही है कि "मेरा प्रधानमंत्री झूठा है"।

अगर किसी से पूछा जाए कि पढे लिखे और जाहिलो में क्या अंतर होता है  ? तो वो यही बताएगा शायद की , पढे लिखे व्यक्ति हर तत्व को सोच विचार कर सही गलत का अनुमान लगाकर और तर्क के आधार पर बोलते हैं।  पढ़े लिखे व्यक्ति इतिहास की बातों को अपनी सुविधानुसार बनाकर नहीं बोलते । बल्कि इतिहास को उसी की तरह बता कर लोगों के सामने रखते हैं । वही एक जाहिल अनपढ़ बिना सोचे समझे , बिना तर्क-वितर्क के तथ्यों को,  इतिहास को,  अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर झूठ बोल कर लोगों के सामने पेश करता है।

हमारे साहब को प्रधान सेवक नहीं , बल्कि प्रधान इतिहासकार होना चाहिए । क्योकि उन्होंने इतने झूठ और इतने गलत तथ्य दुनिया के सामने बोले हैं । अब स्वयं इतिहास भी उनके सामने नतमस्तक है । अभी ताजा- ताजा बयान होने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में लोगों के सामने दिया कि "नेहरू गांधी परिवार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम को दबा दिया "।

मैं हमारे बचपन से नेता जी के बारे में कई जगह पड़ा किताबों में, पाठ्यक्रमों में पढ़ा और गली ,नुक्कड़ चौराहे पर हर जगह नेताजी को जाना है।  वह भी तब , जब कांग्रेस का सरकार था।  और उसी कांग्रेस को मोदी जी कह रहे हैं कि उसने नेता जी के नाम को दुनिया से छुपा के रखा। जिस नेताजी बोस पर दर्जनों किताबें लिखी गई, गाने बने( उपकार का तो गाना सुन लेते) करोड़ों कैलेंडर छपे, जिनमें नेताजी की तस्वीर अनिवार्य रूप से होती ही थी और है, अनेक चौराहों पर उनकी प्रतिमा है, सड़कों के नाम हैं, नेताजी नगर है, देश के करोड़ों बच्चे फैंसी ड्रेस पार्टी में नेताजी बन कर जाते हैं, उस नेताजी के बारे में प्रधानमंत्री ही कह सकते हैं कि इन्हें भुला दिया गया।

प्रधानमंत्री के याद करने का एक ही पैटर्न है।उसे देखते हुए लगेगा कि एक अकेले नेहरू ने भारत की आज़ादी के सारे नायकों को किनारे कर दिया था।इतने सारे नायक नेहरू से किनारे हो गए।नेहरू आज़ादी की लड़ाई में कई साल जेल गए। यात्राएं की।मगर प्रधानमंत्री के भाषणों से लगता है कि नेहरू अंग्रेज़ी हुकूमत से नहीं बल्कि उन महापुरुषों को ठिकाने लगाने की लड़ाई लड़ रहे थे।

नेताजी और नेहरू की दोस्ती पर दो लाइन भी नहीं बोलेंगे, पटेल और नेहरू के आत्मीय संबंधों पर दो लाइन नहीं बोलेंगे मगर हर भाषण का तेवर ऐसा होगा जैसे नेहरू ने सबके साथ काम नहीं किया बल्कि उनके साथ अन्याय किया।
जब सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई और उनकी आजाद हिंद फौज के हजारों अफसर और सैनिक गिरफ्तार कर लिए गए तो देश के सामने चुनौती पैदा हो गई ।

अपने मित्र सुभाष की मृत्यु के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस काम को संभाला। इन सैनिकों को बचाने के लिए देश के भावी प्रधानमंत्री ने वह काला चोगा फिर से धारण किया, जिसे वे वकालत के कैरियर की बहुत शुरुआत में छोड़ चुके थे। नवंबर 1945 में लाल किले में आइएनए सैनिकों का मुकदमा  तीन शख्स थे जिन्होंने लड़ा, ये तीन लोग थे। जवाहर लाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और हमारे समय के मुखर जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दादा कैलाश नाथ काटजू।

नेहरू एक तरफ मुकदमा लड़ रहे थे, दूसरी तरफ नेता की हैसियत से इन सैनिकों को बचाने में लगे थे और तीसरी तरफ देश की जनता में वह उत्साह फैला रहे थे जो "आजाद हिंद फौज" के सैनिकों की रिहाई को राष्ट्रीय मुद्दा बना सके।

  शायद हमारे प्रधानमंत्री को इतनी जानकारी नही वरना आज आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गांधी परिवार पर लाल किले से  कटाक्ष नही करते। इतिहास में पहले प्रधानमंत्री है जो बिना जानकारी के ही लंबे-लंबे भाषण देते है जिसमें अधिकांश जानकारी झूठी होती है और कांग्रेस , गांधी परिवार पर कटाक्ष होते है।

दरअसल, नरेन्द्र मोदी को ये ग़ुमान है कि वो बहुत धाँसू वक़्ता हैं। ये बात को ख़ारिज़ भी नहीं किया जा सकता। भाषणों की बदौलत ही वो सवा सौ करोड़ लोगों वाले देश के मुखिया के आसन तक जा पहुँचे। वर्ना, उनके प्रशासनिक, कूटनीतिक, आर्थिक, विधायी और राजनीतिक कौशल को तो देश चार साल से झेल ही रहा है। भाषणों की वजह से ही मोदी की फेंकूँ, जुमलेबाज़, झूठ पर झूठ बोलने वाले या कुछ भी बोल देने वाला मसख़रे नेता जैसे ख़ास पहचान बनती चली गयी। मज़े की बात तो ये है कि मोदी हरेक झूठ को अति आत्मविश्वास से बोलते हैं। जबकि तमाम ऐसे मुद्दों पर उन्हें साँप सूँघ जाता है, जिससे समाज में उथल-पुथल मची हो। दिल दहला देने वाली वारदातों और ज्वलन्त मुद्दों पर उनके जैसे वाचाल नेता की ख़ामोशी भी कभी अपना रिकॉर्ड नहीं तोड़ती!

लिहाज़ा, ये कौतूहल होना स्वाभाविक है कि आख़िर क्या वजह है कि झूठ और लन्तरानियों यानी लम्बी-चौड़ी हाँके बग़ैर मोदी का कोई भाषण पूरा नहीं होता? इसकी वजह सिर्फ़ इतनी सी है कि नरेन्द्र मोदी उस पेड़ की तरह हैं जो झूठ के बीज से उस मिट्टी में अंकुरित हुआ जो झूठ से ही बनी थी। झूठ की ही आबोहवा में वो अंकुर ही पौधा बना। झूठ से ही उसके तने मज़बूत हुए। झूठ ही उसकी शाखाओं, टहनियों, पत्तियों और कोपलों में पनपता रहा। इसीलिए इस पेड़ पर लगने वाले फल भी झूठ से ही सराबोर हैं।

सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में ही नरेंद्र मोदी ने झूठ नहीं बोला बल्कि सरदार पटेल से लेकर के सरदार भगत सिंह तक चल शेखर आज आज तक हर क्रांतिकारी के बारे में इन्होंने झूठ बोला और उस क्रांतिकारी के अपने मन गलत नजरिए दिखाकर कांग्रेस के प्रति नफरत पैदा करने की कोशिश की कभी कहते हैं कि सरदार पटेल को नेहरू जी ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया तो कभी कहते हैं कि सरदार भगत सिंह जी जब जेल में बंद थे तो कोई कांग्रेसी उनका सपोर्ट नहीं किया मैं आज प्रधानमंत्री जी के बोले हुए कई झूठ और उनकी सच्चाई सबके सामने ले आऊंगा जैसा कि मैंने ऊपर कांग्रेस द्वारा नेताजी के लिए किए गए कार्यों को दिखाया अब बात करते हैं सरदार भगत सिंह जी के बारे में

में एक रैली में कर्नाटक चुनाव में ही हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने यह कहा कि " उन्हें जहां तक जानकारी है जब  भगत सिंह जेल में बंद थे,  कोई भी कांग्रेसी नेता उनसे मिलने नहीं गया " । पहली बात तो यह सवाल ही अपने आप में एक बहुत ही वाहियात और व्यर्थता से भरा हुआ विचार है , कि "कौन नेता किस से मिलने गया ? या कौन नेता किससे मिलने नहीं गया ? या किस नेता ने किसके बारे में बोला ? या किस नेता ने किसके बारे में नहीं बोला" 

लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री जी की इस बात का जवाब देना जरूरी है । क्योंकि उन्होंने कहा था कि " अगर किसी के पास इसके अलावा सही जानकारी हो तो वह बताए तो मैं सुधार कर लूंगा। "

 मैं माननीय प्रधानमंत्री जी की जानकारी के लिए बताना चाहता हूं,  9 अगस्त 1929 को पंडित नेहरु जी न सिर्फ  भगत सिंह बल्कि उनके सारे साथियों से मिलने जेल पहुंचे थे । और इस बात का खुलासा उन्होंने अगले ही दिन " द ट्रिब्यूनल " के इंटरव्यू में किया।  

पंडित नेहरू कहते हैं- 'मैं कल सेंट्रल जेल गया था. सरदार भगत सिंह, श्री बटुकेश्वर दत्त, श्री जतिन नाथ दास और लाहौर केस के सभी आरोपियों को देखा, जो भूख हड़ताल पर बैठे थे. कई दिनों से उन्हें जबरन खिलाने का प्रयास हो रहा है. कुछ को इस तरह जबरन खिलाया जा रहा है कि उन्हें चोट पहुंच रही है. जतिन दास की स्थिति काफी नाजुक है. वे काफी कमजोर हो चुके हैं और चलफिर नहीं सकते. बोल नहीं पाते, बस बुदबुदाते हैं. उन्हें काफी दर्द है. ऐसा लगता है कि वे इस दर्द से मुक्ति के लिए प्राण त्याग देना चाहते हों. उनकी स्थिति काफी गंभीर है. मैंने शिव वर्मा, अजय कुमार घोष और एल जयदेव को भी देखा. मेरे लिए असधारण रूप से इन बहादुर नौजवानों को इस स्थिति में देखना बहुत पीड़ादायक था. मुझे उनसे मिलकर यही लगा कि वे अपनी प्रतिज्ञा पर कायम हैं. चाहे जो नतीजा हो. बल्कि वे अपने बारे में जरा भी परवाह नहीं करते हैं. सरदार भगत सिंह ने उन्हें वहां की स्थिति बताई कि कत्ल के अपराध को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों से विशिष्ट व्यवहार होना चाहए. मुझे पूर्ण आशा है कि उन युवकों का महान आत्मत्याग सफल होगा.'। 

जैसा की मैंने पहले भी यह कहा कि , यह सवाल अपने आप में बेहद ही वाहियात है कि कौन सा नेता किस से मिलने गया या नहीं।  लेकिन फिर भी अगर हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने यह सवाल किया तो मैंने उसका जवाब दिया । अब मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री जी अपने उस बयान का सुधार करें और ट्वीट करके देश से सार्वजनिक रूप से माफी मांगे । 

और इससे आगे मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी से पूछना चाहूंगा कि कृपया करके वह यह बताएं कि भाजपा के जन्मस्रोत संगठन आरएसएस के उस समय के बड़े नेता गोवलकर जी , गुरुजी और हेडगेवार जी या सावरकर,  श्यामा प्रसाद मुखर्जी । क्या इनमें से कोई भी नेता कभी भी भगत सिंह या किसी और अन्य क्रांतिकारी से मिलने गया था? 

तथ्यों को कैसे तोड़ा मरोड़ा जाता है, आप प्रधानमंत्री से सीख सकते हैं। मैं इन्हें सरासर झूठ कहता हूं क्योंकि ये खास तरीसे से डिजाइन किए जाते हैं और फिर रैलियों में बोला जाता है। गुजरात चुनावों के समय मणिशंकर अय्यर के घर की बैठक वाला बयान भी इसी श्रेणी का था जिसे लेकर बाद में राज्य सभा में चुपचाप माफी मांगी गई थी। 1948 की घटना का ज़िक्र कर रहे हैं तो ज़ाहिर है टीम ने सारे तथ्य निकाल कर दिए ही होंगे, फिर उन तथ्यों के आधार पर एक झूठ बनाया गया होगा।

कर्नाटक के कलबुर्गी में प्रधानमंत्री ने कहा कि फिल्ड मार्श के एम करिअप्पा और जनरल के थिमाया का कांग्रेस सरकार ने अपमान किया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। जनरल थिमाया के नेतृत्व में हमने 1948 की लड़ाई जीती थी। जिस आदमी ने कश्मीर को बचाया उसका प्रधानमंत्री नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने अपमान किया। क्या अपमान किया, कैसे अपमान किया, इस पर कुछ नहीं कहा।

1947-48 की लड़ाई में भारतीय सेना के जनरल सर फ्रांसिस बुचर थे न कि जनरल थिमाया। युद्ध के दौरान जनरल थिमाया कश्मीर में सेना के आपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे। 1957 में सेनाध्यक्ष बने। 1959 में जनरल थिम्माया सेनाध्यक्ष थे। तब चीन की सैनिक गोलबंदी को लेकर रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने उनका मत मानने से इंकार कर दिया था। इसके बाद जनरल थिम्माया ने इस्तीफा देने की पेशकश कर दी जिसे प्रधानमंत्री नेहरू ने रिजेक्ट कर दिया।

वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कृष्‍ण मेनन ने भारतीय सेना के सर्वोच्‍च पद का राजनीतिकरण करने की कुचेष्‍टा की थी और यह भी सत्‍य है कि संसद में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री नेहरू ने अपनी सरकार की चीन विषयक नीति से असहमति जताने पर थिमय्या को संसद में झिड़क दिया था। लेकिन वे संदर्भ अलग हैं और एक चुनावी सभा में भारतीय सेना के कंधे पर बंदूक रखकर झूठे तथ्‍यों के आधार पर विपक्षी राजनीतिक दल के चरित्र हनन वाले इस मामले का कैसे भी बचाव नहीं किया जा सकता।

पिछले 70 सालों से चुनावों में राजनीतिक नफे-नुकसान के मद्देनज़र होने वाले धर्म और जाति के दुरुपयोग के दंशों से ही हम आज तक नहीं उभर पाये हैं। अब भारतीय सैन्‍य इतिहास की राजनीतिक व्‍याख्‍या-कुव्‍याख्‍या और तथ्‍यात्‍मक त्रुटियों के बल पर मतदाताओं को अपने पीछे लामबंद करने की खतरनाक राजनीति अलग से शुरु हो गई है। राष्‍ट्रवाद के नाम पर छद्म राष्‍ट्रवादियों की इस राष्‍ट्र विरोधी राजनीति के खिलाफ नागरिक समाज को समय की नज़ाकतता को देखते हुए त्‍वरित कदम उठाना होगा ताकि सेना के अराजनीतिक चरित्र की रक्षा समय रहते की जा सके, अन्‍यथा राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर अपने राजनीतिक विरोधियों के चेहरे पर कालिख पोतने वाला सेना का यह राजनीतिक दुरुपयोग आगामी दिनों में बेहद विस्‍फोटक स्थितियाँ पैदा कर सकता है।

मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से भी जो भाषण दिया उसमें अर्थव्यवस्था पर, किसानों की जीवनस्थिति पर ग़लत तथ्य दिये गये थे। गाँवों की बिजली के बारे में जो तथ्य दिये गये थे, वे भी ग़लत थे। पहली सरकारों के बारे में इनके सभी आँकड़े सरासर झूठ होते हैं। दरअसल जिन योजनाओं को मोदी ने 2014 में सत्ता में आने से पहले धोखाधड़ी और जनविरोधी करार दिया था उन्हें भी अब मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों में गिनाने का काम कर रही है। यह फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि मोदी और मोदी सरकार के झूठों पर मोटी पुस्तक लिखी जा सकती है।

दरअसल जब भी कोई नेता सत्ता में पहुँचता है तो जनता यह पाती है कि उसके वायदे झूठे थे और नेता की यारी जनता नहीं पूँजीपति के साथ है। परन्तु नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने इस मामले में 60 साल राज करने वाली कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है। इसके पीछे एक वजह है और वह यह कि नरेन्द्र मोदी फासीवादी नेता है जिसकी फासीवादी राजनीति नंगे तौर पर कारपोरेट हितों की सेवा करती है और जनता को इस लूट-खसोट से भरमाने के लिए झूठों का पहाड़ खड़ा करती है। राष्ट्रवाद का उन्माद जगाकर उन वायदों को भुलाया जा रहा है जो सरकार ने कभी किये थे।

फासीवादी सरकार और उसका ज़मीनी स्तर पर मौजूद काडर जो एक अनौपचारिक राज्यसत्ता की तरह काम करता है, इस झूठे प्रचार को जनता तक ले जाता है जिसमें ख़ासतौर पर उसे निम्न मध्य वर्ग और लम्पट सर्वहारा वर्ग का समर्थन मिलता है। यही इस झूठ के सबसे बड़े समर्थक होते हैं जिनमें भक्ति पैदा हुई है।

लेकिन झूठ और झूठ में फ़र्क़ होता है। मार्क ट्वेन ने लिखा था कि झूठ तीन प्रकार के होते हैं – झूठ, मक्कारी और तथ्य। मोदी ने इन तीनों तरह के झूठ को बोलने में महारत हासिल की है। हाँ, इसमें एक ख़ास कि़स्म का झूठ भी है जो मोदी जी अपने भोलेपन में बोल देते हैं। नरेन्द्र मोदी की इतिहास ज्ञान-शून्यता सभी को जाहिर है, इन्होंने ही सिकन्दर को बिहार पहुँचा दिया था और तक्षशिला को बिहार में पहुँचा दिया था

श्यामा प्रसाद मुखर्जी को विवेकानन्द से मुख़ातिब करवा दिया, जबकि विवेकानन्द की मृत्यु के समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी महज़ कुछ महीनों के थे। आज भी भाषणों में और सभाओं में नरेन्द्र मोदी ऐसे झूठ और कुशब्द बोला करते रहते हैं, मसलन कभी पर्यावरण में तब्दीली को लोगों की सहनशीलता में बदलाव बताते हैं तो कभी लाल किले को लाल दरवाज़ा बोल देते हैं, और कभी डॉक्टरों की सभा में कहते हैं कि गणेश की कथा भारत में हज़ारों साल पहले प्लास्टिक सर्जरी का प्रमाण है।

सिर्फ इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतनी फेंका  की झूठ की एक लंबी कतार की लाइन लगा दी , इतने झूठ बोले इतने झूठ बोले की उनकी गिनती दुनिया के झूठे प्रधानमंत्रियों में होने लगी। उनके द्वारा बोले गए और झूठ  कुछ इस प्रकार रहे।

नवंबर 2003 में एक रैली में महात्मा गांधी के बारे में चर्चा करते हुए उन्हें मोहनलाल करमचंद गांधी कह दिया।महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।मोदी की इस ग़लती पर उनकी काफ़ी किरकिरी हुई थी।

वर्ष 2013 में पटना की बहुचर्चित रैली में नरेंद्र मोदी ने बिहार की शक्ति का ज़िक्र करते हुए सम्राट अशोक का जिक्र किया, पाटलिपुत्र का ज़िक्र किया और फिर नालंदा और तक्षशिला का।
जबकि तथ्य ये है कि तक्षशिला पाकिस्तान में है, न कि बिहार या भारत मे।

डाओस के इंटरनेशनल सम्मेलन में दुनिया भर के बिजनेसमैन को संबोधित करते हुए प्रधानमत्री ने यह तक कह दिया कि , देश के 600 करोड़ लोगों ने वोट देकर उनको चुना है, जबकि भारत मे वोटरों की संख्या 80 करोड़ से भी कम है ,और 2014 में कुल मतदान भी 58% का आस पास हुआ था।

जुलाई 2003 में नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में कहा था कि आज़ादी के समय एक डॉलर की क़ीमत एक रुपए के बराबर थी।यूपीए सरकार की नाकामी गिनाते-गिनाते नरेंद्र मोदी ये भूल गए कि उस समय एक रूपए की क़ीमत 30 सेंट के बराबर थी।और उस समय एक रुपया एक पाउंड के बराबर था।

अहमदाबाद में अक्तूबर 2003 में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अहमदाबाद नगरपालिका में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1919 में रखा था।लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ये भूल गए थे कि वल्लभ भाई पटेल ने ये प्रस्ताव 1926 में दिया था।

फरवरी 2014 में नरेंद्र मोदी ने मेरठ में कहा था कि कांग्रेस ने आज़ादी की पहली लड़ाई को कम कर के आँका था।तथ्य ये है कि मेरठ में 1857 की क्रांति शुरू हुई थी। लेकिन मोदी ये भूल गए कि कांग्रेस की स्थापन 1885 में हुई थी. 1857 में कांग्रेस का कोई अता-पता नहीं था।

नवंबर 2003 में बंगलौर में नरेंद्र मोदी ने कहा था- 15 अगस्त का प्रधानमंत्री का भाषण लाल दरवाज़े से होता है"। अब ये कोई बताने वाला तथ्य नहीं है कि पीएम लाल क़िले से भाषण देते हैं न कि लाल दरवाजे से।

2003 में मुंबई में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वर्ष 1960 से महाराष्ट्र में 26 मुख्यमंत्री हुए हैं।तथ्य ये है कि 2003 तक सिर्फ़ 17 नेताओं ने 26 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।

नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि जब हम गुप्त साम्राज्य की बात करते हैं कि हमें चंद्रगुप्त की राजनीति की याद आती है।दरअसल मोदी जिस चंद्रगुप्त का और उनकी राजनीति का जिक्र कर रहे थे, वो मौर्य वंश के थे। गुप्त साम्राज्य में चंद्रगुप्त द्वितीय हुए थे। लेकिन मोदी उनका ज़िक्र नहीं कर रहे थे।

दिसंबर 2013 में नरेंद्र मोदी ने जम्मू में एक रैली के दौरान कहा था कि मेजर सोमनाथ शर्मा को महावीर चक्र और ब्रिगेडियर रजिंदर सिंह को परमवीर चक्र मिला था।तथ्य ये है कि मेजर सोमनाथ शर्मा को परमवीर चक्र और रजिंदर सिंह को महावीर चक्र मिला था।

नवंबर 2013 में खेड़ा में नरेंद्र मोदी श्यामजी कृष्ण वर्मा और श्यामा प्रसाद मुखर्जी में अंतर नहीं कर पाए।मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को गुजरात का बेटा कह दिया और ये भी कह दिया कि उन्होंने लंदन में इंडिया हाउस का गठन किया था। और उनकी मौत 1930 में हो गई थी।दरअसल श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता में हुआ था। उनकी मौत 1953 में हुई थी।

पटना में रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सिकंदर की सेना ने पूरी दुनिया जीत ली थी। लेकिन जब उन्होंने बिहारियों से पंगा लिया था, उसका क्या हश्र हुआ।यहाँ आकर वो हार गए।

जबकि सच्चाई ये है कि सिकंदर की सेना ने कभी गंगा पार ही नहीं किया। सिकंदर 326 ई.पू. तक्षशिला से होते हुए से पुरु के राज्य की तरफ बढ़ा जो झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था। राजा पुरु से हुए घोर युद्ध के बाद वह व्यास नदी तक पहुंचा, परन्तु वहां से उसे वापस लौटना पड़ा। उसके सैनिक मगध (वर्तमान बिहार) के नन्द शासक की विशाल सेना का सामना करने को तैयार न थे। इस तरह से सिकंदर पंजाब से ही वापस लौट गया था।

लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा कि चीन अपनी जीडीपी का 20 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है, लेकिन भारत नहीं।हकीकत ये है कि चीन अपनी जीडीपी का सिर्फ 3.93 प्रतिशत ही शिक्षा पर खर्च करता है। जबकि वहीं भारत में अटल सरकार में शिक्षा पर जीडीपी का 1.6 प्रतिशत खर्च हुआ और यूपीए सरकार में 4.04 प्रतिशत था।

अक्सर मैंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं उनके कुछ बड़बोले प्रस्ताव और

जहां तक मेरे सुनने में आया है कि प्रधानमंत्री जी की इस तरह की भाषण देने वाली को लिखने वाली टीम में 20 से भी ज्यादा लोग हैं।  तो क्या वह निहायत ही बेवकूफ वाहियात और गवार टाइप के लोग हैं ?  जिन्हें इतिहास तथ्य और तर्कों से कोई मतलब नहीं है?  वह अपने हिसाब से मनगढ़ंत बातें लिखते हैं ? और प्रधानमंत्री के सामने एक तथ्य वहीं झूठा और गलत भाषण रख देते हैं ?

जिसे प्रधानमंत्री बड़ी मासूमियत से पढ़ लेते हैं,  बिना सही गलत की जानकारी के  ? या फिर वह लोग प्रधानमंत्री के आदेश से ही इस तरह के झूठे और मनगढ़ंत भाषण लिखते हैं?  जिसमें इतिहास की बातों को तोड़ मरोड़ कर और इतिहास की बातों को झूठा बना कर पेश किया जाता है।  क्या यह सब कुछ प्रधानमंत्री की मर्जी से हो रहा है ?  या प्रधानमंत्री इन सब बातों से अनजान है?  अगर प्रधानमंत्री को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था,  तो जब उनके इतने सारे झूठ लोगों के सामने आए ।

जैसे तक्षशिला को बिहार में बताया गया , भारत के 600 करोड़ वोटर बताए गए,  तब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण वाली टीम चेंज क्यों नहीं की  ? और अपने इतने बड़े बड़े झूठ पर उन्होंने देश से माफी क्यों नहीं मांगी?  इसका इशारा साफ है इसका मतलब साफ है कि यह सारे भाषण प्रधानमंत्री भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के इशारे पर लिखे जाते हैं।  जो उस समय की जन भावनाओं को और उग्र और कट्टर बनाने के हिसाब से अनुकूलित होते हैं।

इन भाषणों का सत्य से और इतिहास से कोई सरोकार नहीं होता है । यह भाषण पर अपना चुनावी वोट बैंक साबित करने की कोशिश करते हैं।  फिर चाहे ही वोट पाने के बाद सब लोग आपस में मर कटकर खत्म क्यों ना हो जाए ।इसे प्रधानमंत्री को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता है।

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