पुरानी हिंदी फिल्मों में अक्सर एक कहानी दिखाई जाती थी, जिसमे बेटा अपने मा बाप के सहारे बड़ा बनता है , और बढ़ा बनते ही अपने माँ बाप को दर दर की ठोकरे खाने पर मजबूर कर देता है, फिर जब कोई काम लगता है माँ से तो उसको मस्का लगा कर अपना काम निकालने की कोसिस करता है। कुछ ऐसा ही वाकया वनारस में गंगा मैया के साथ हुआ, जब 2014 में बच्चा जबरजस्ती गंगा मैया के गोद मे आकर बैठ गया। और लोगो से कहने लगा " न मैं आया हु, न कोई लाया है, मुझे तो गंगा माँ ने बुलाया है"। माँ शब्द को थोड़ा लंबा खींच कर बोलियेगा तब उस दत्तक पुत्र की उस टाइम वाली फीलिंग समझ आएंगी। फिर बेटे ने मा के नाम पर वो लूट पाट मचाई की अब मां भी बोलती होगी- "बेटा तू अपने घर चला जा, मुझे तेरी या तेरे लोगो की सेवा नही चाहिए। मैं आने पुराने हाल में ज्यादा अच्छी थी। गंदी थी लेकिन कम से कम मेरे नाम पर चोरियां तो नही होती थी।"
फरवरी 2014 से लेकर मई 2014 तक गंगा मैया के नाम पर वो श्रद्धा हुई, वह भक्ति की गई, वो डाइलॉग बाजिया हुई, की भगवान शंकर और भगीरथ भी एक बार को यह सोचते होंगे कि "काश मोदी जी की जैसी थोड़ी बहुत श्रद्धा हमने भी गंगा मैया के लिए दिखा दी होती। "
भाई साहब ! वह बड़े-बड़े डायलॉग -
"गंगा मेरी मां है ।"
"गंगा को साफ करूंगा"।
"गंगा में बड़ी-बड़ी स्टिमर चलवा दूंगा।
"नदियों को जोड़ कर गंगा मैया का विस्तार करूंगा "।
"गंगा मैया के घाटों को बनवा दूंगा " ।
"फलाने करवा दूंगा, धीमाके करवा दूंगा।
"यहां कूद जाऊंगा । वहां चढ़ जाऊंगा।"
उफ्फ न जाने क्या क्या हुल्लड़बाजी मचाई गयी उस समय।
लोग तरह तरह के ज्ञान बांटने लगे। कुछ नालो को रोकने प्लान बताने लगे । और कुछ तत्कालीन कथित बुद्धिजीवी तो थेम्स नदी की तर्ज पर गंगा नदी का भी सफाई करने का प्लान लेकर आ गए। और रोज दिन रात समझाने लगे कि "ऐसे ऐसे करके मोदी जी गंगा मैया को साफ करेंगे । बनारस को क्योटो बना देंगे । और "गंगा मैया " को, "क्योटो वाली मैया" बना देंगे।
बहुत कुछ किया, और उससे कही ज्यादा बहोत कुछ का दिखावा किया। जैसे प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहला जो काम किया था वो आज भी सबको याद है। नाम बदलने की परंपरा की शुरुआत। योजना आयोग को बदल कर रख दिया "नीति आयोग"। जबकि उसका फॉर्मेट और काम करने का तरीका सारा कुछ योजना आयोग जैसा ही था। उसी तरह से "गंगा एक्शन प्लान" के पूरे ढांचे को चुरा कर के नया नाम दे दिया "नमामि गंगे प्रोजेक्ट"।
वैसे भी साहब नाम बदलने की कला में माहिर है। साहेब का वो वाला डायलॉग याद है ना जिसमें उन्होंने कहा था कि "मैं देश का प्रधानमंत्री नहीं देश का प्रधानसेवक बनना चाहता हूं ।" उस समय यह बहुत चला और लोगों ने कहा कि वह नेता हो तो ऐसा , जो लोगों की सेवा करना चाहता है , और अपने आप को सेवक बोलता हो। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट पर स्कोर चलाया गया और और अंत में पता चला कि साहब ने इसको भी छापा मार था ।और यह उन्होंने तीन मूर्ति भवन से निकाला था ।
जहां पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के हर काम में अड़चन पैदा करने वाले जवाहरलाल नेहरू जी का एक कोट लिखा हुआ है , जिसमें उन्होंने 1952 में कहा था कि-
" लोग मुझे भारत का प्रधानमंत्री कहते हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि मैं भारत का प्रधान सेवक कहे।"
इसी तरह साहेब ने गंगा मैया के नाम पर भी बनारस के लोगो को मोहा, और मोह कर वोट ले लिए। लोगो को लगा कि बहुत दिनों के बाद कोई अलग कॉन्सेट लेकर आया है, वैसे भी गंगा कोई सीरियस चुनावी मुद्दा तो कभी रही नही थी। हा यदा कदा कोई हड़ताल कर देता था गंगा सफाई को लेकर , लेकिन साहेब आते ही जबरजस्ती गंगा माँ का बेटा बन गए , और सुरु कर दिया आपना काम। गंगा नदी को थेम्स नदी की तरह साफ बनाना, गंगा रिवर फ्रंट लगाने की बात करना, गंगा को और नदियों से कनेक्ट करने की बात, गंगा को जलमार्ग की तरह इस्तेमाल करने की बात, साहेब ने इतनी सारी लंबी लंबी फेकी की लोग उसके लपेटे में आ गए।
वो क्या है कि इनके पहले कोई नेता ऐसे बड़े पैमाने पर फेकता नही था। तो लोगो को लगा कि बंदा इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहा है, इसका मतलब कुछ तो प्लान होगा ही इसके पास, लेकिन लोगो को क्या पता था कि मोदी जी का मानना है कि " झूठ भी बोलो तो विजन काफी बड़ा रखो "
इसके चक्कर मे लोगो ने बनारस और गंगा मैया की बांगडोर साहेब के हाथों में दे दिया। सिर्फ एक साल में साहेब की होनहार मंत्री उमा जी और उनकी मीटिंग में नमामि गंगे के नाम पर 750 करोड़ रुपये का नाश्ता पानी खा लिया ,और गंगा में सफाई के नाम पर एक ढेला भी नही उठवाया। और साहेब ने भी गंगा मैया का उपयोग सिर्फ अपने मेहमानों को गंगा आरती दिखाने के लिए , और बनारस का उपयोग सिर्फ सड़के खोदने के लिए किया।
बनारस बस स्टैंड के सामने वाली सड़क पिछले साढ़े चार साल से खुदी हुई है और आज तक नही बनी, अरे वही सड़क जिसका ओवर ब्रिज अज्ञात आदमी की वजह से गिर गया, और उस अज्ञात आदमी की वजह से 20 से भी ज्यादा लोग मर गए, अरे वही अज्ञात आदमी जिसको सरकार ने अज्ञात होते हुए भी 150 करोड़ से ज्यादा का पेमेंट दे रखा था। अब जबकि सबको पता था कि वो अज्ञात आदमी आने छोटे टेड्डी यानी कि जूनियर गडकरी जी थे।
ओवर ब्रिज हादसे में सरकार लोगो को खा गई, और गंगा शुद्धि के लिए भी पिछले 4 साल में अनशन पे बैठे हुए जाने कितने लोगों की मौत हो गयी, इधर गंगा मैया के असली बेटे मा के लिए मरते रहे और उधर जबरजस्ती बेटे बने मोदी जी ने उन लोगो का जवाब देना तक उचित नही समझा। देंगे भी कहा से, साहेब तो अपने दोस्तों को लड़ाकू विमान के जरिए कॉर्पोरेट में उड़ने में मदद कर रहे थे। इसी वजह से गंगा मैया के न जाने कितने सच्चे सपूत मौत की आगोश में चले गए।
ताज़ा घटना गुरुवार को हुई जब आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर और गंगा के निर्मल प्रवाह के अग्रदूत प्रो. जीडी अग्रवाल का 112 दिनों के अनशन के बाद निधन हो गया । प्रो. अग्रवाल बीते 22 जून 2018 से हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठे हुए थे। प्रो. अग्रवाल गंगा नदी की धारा में बांधों के जरिए पैदा किए अवरोधों के विरोधी थे। उनकी सरकार से मांग थी कि "सभी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बंद किए जाएं"
उन्होंने करीब 11 दिनों के अनशन के बाद पानी भी छोड़ दिया फिर उन्हें जबरदस्ती पुलिस बल का प्रयोग करके धरने से उठाया गया । और उन्हें ऋषिकेश के एम्स में एडमिट किया गया । जहां उनकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई और उसे हार्टअटैक का नाम दे दिया गया । डॉक्टर अग्रवाल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले मैं एक किसान के घर पर पैदा हुए। उसके बाद उन्होंने आईआईटी रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। फिर पीएचडी की डिग्री उन्हें कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से मिली ।
डॉ अग्रवाल एनजीटी बोर्ड के पहले मेंबर सेक्रेट्री बने । साथ ही वह कानपुर आईआईटी सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के हेड भी थे। प्रोफेसर अग्रवाल गांधीवादी तरीकों में विश्वास रखते थे । और गांधी जी के ही रास्ते पर चलना उचित समझते थे। उन्होंने 2011 में सन्यास लिया और उसके बाद वह गंगा की सफाई और गंगा की स्वच्छता के लिए अभियान छेड़ा । जिसमें वे उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया ।
पंडित मदन मोहन मालवीय की संस्था गंगा महासभा के संरक्षक भी थे। एक इंटरव्यू में डॉक्टर वालों ने कहा हमने प्रधानमंत्री और जल साधन संसाधन मंत्रालय को बहुत सारा पत्र भेजा लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया । मैं बीते 109 दिनों से आमरण अनशन पर हूं । और अब मैंने फैसला किया है कि मैं अपनी तपस्या को और आगे बढ़ आऊंगा और गंगा नदी के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दूंगा। मेरी मौत के साथ ही मेरे अनशन का अंत होगा ।
हालांकि दिखाने के लिए प्रोफेसर अग्रवाल का अनशन तुड़वाने की कोशिश उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने की । लेकिन वह सिर्फ दिखावा ही था । और वह सफल नहीं हुआ । इस तरह से एक पवित्र मां का सच्चा बेटा अपनी मां की भलाई की लड़ाई लड़ते-लड़ते मर गया । अच्छा हुआ वह बेटा अपनी मां की बर्बादी नहीं देख पाया । और उसके पहले ही मर गए ,उसने अपना रास्ता बना लिया ,या तो गंगा मां की सफाई होगी या तो मेरी मौत।"
उधर साहेब के कुछ भक्तो को पहले ये कहते हुए सुना गया था कि अरे प्रोफेशर साहब ढोंग कर रहे है। उन मूर्खो को कौन समझाए की ढोंग जिंदगी की लिए किया जाता है, जैसे साहेब ने एक दिन का उपवास रख कर किया था। मरने के लिए कोई ढोंग नही होता। प्रोफेशर अग्रवाल की मौत उनकी सच्चाई, ईमानदारी, और माँ गंगा की सफयो के प्रति उनकी तत्परता दिखती है।
ऐसा नही गई साहेब ही वह शख्स है जिसने मां गंगा की सफाई के लिए अभियान शुरू किया। या कोई वादा किया साहब ने तो सिर्फ एक वादा किया है । मां गंगा की सफाई के लिए असली काम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने किया। जब उन्होंने गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत की और जगह जगह पर गंगा की सफाई का कार्य शुरू किया। सन 1985 में ही पर्यावरण विभाग के एक अंग के रूप में ‘गंगा परियोजना निदेशालय (गंगा प्रोजेक्ट डाइरेक्टोरेट या संक्षेप में जी.पी.डी.) का गठन किया गया।
जिसे केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण के निर्देशन में गंगा कार्य योजना को कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। सन 1994 में ‘गंगा परियोजना निदेशालय का नाम बदलकर नया नामकरण किया गया ‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय (नेशनल रीवर कंजर्वेशन डाइरेक्टोरेट या संक्षेप में एन.आर.सी.डी.)।गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण (फर्स्ट फेज) के कार्यान्वयन की शुरुआत 14 जनवरी, 1986 को हुई तथा 31 मार्च, 2000 को इसे समाप्त घोषित किया गया। इस कार्य योजना का मुख्य उद्देश्य था आवासीय मकानों तथा कई प्रकार की औद्योगिक इकाइयों से निकलकर गंगा में मिलने वाले मल जल ,सीवेज तथा कुछ विषैले रासायनिक प्रदूषकों को रोकना, उनके रास्ते को बदलना तथा रासायनिक कैमिकल ट्रीटमेंट द्वारा उसमें मौजूद प्रदूषकों को अलग कर देना जिससे सिर्फ शुद्ध जल ही गंगा में मिल सके।
मल जल सीवेज ट्रीटमेंट के लिये नई प्रौद्योगिकी का उपयोग किये जाने की योजना बनाई गई। ऐसी प्रौद्योगिकी में प्रमुख है - अप फ्लो अनऐरोबिक स्लज ब्लैंकेट , जिसे यू.ए.एस.बी. कहा जाता है। साथ ही मल जल आने वाले रास्ते में वृक्षारोपण की योजना भी बनाई गई जिससे मल जल का अधिकांश भाग इन वृक्षों द्वारा शोषित कर लिया जाये। इसके अलावा कोमल शाॅफ्ट शेल्ड कछुओं के पुनर्वास का लक्ष्य भी रखा गया। क्योंकि इस प्रकार के कछुए प्रदूषण को दूर करने में काफी सहायक पाए गए हैं। इस कार्य योजना में गंगा का प्रदूषण दूर करने के अलावा मीथेन उत्पादन के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त करने तथा मछली पालन का भी लक्ष्य रखा गया।
फर्स्ट फेज में कुल 69 परियोजनाओं पर कार्य पूरा किया गया। इस दौरान लगभग दस लाख लीटर मल जल प्रतिदिन या तो शुद्ध किया गया अथवा रास्ता बदलकर उसे गंगा में मिलने से रोका गया। प्रथम चरण के कार्यान्वयन पर लगभग नौ अरब रुपए खर्च किये गए। राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण द्वारा गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण में किये गए कार्यों के दौरान आने वाली विभिन्न समस्याओं तथा उस दौरान प्राप्त किये गए अनुभवों का आकलन तथा मूल्यांकन किया गया जिससे कि इन अनुभवों का लाभ दूसरे चरण के कार्यान्वयन के दौरान उठाया जा सके।
भारत सरकार द्वारा गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण (सेकेंड फेज) की स्वीकृति कई चरणों में दी गई जिसकी शुरुआत सन 1993 में ही हो गई थी तथा बहुत बाद तक चलती रही। गंगा कार्य योजना के इस चरण में गंगा के अलावा उसकी सहायक नदियों को भी शामिल किया गया जिनमें प्रमुख थीं- यमुना, दामोदर तथा महानंदा। प्रदूषण नियंत्रण के लिये जो तरीके अपनाए जाने की योजना बनाई गई उनमें शामिल थे -
1- सीवेज को या तो रास्ते में रोकना या उसका रास्ता बदल देना।
3- सीवेज के ट्रीटमेंट हेतु उपकरणों की स्थापना,
4- कम खर्च की सेनिटेशन सुविधा का निर्माण तथा
5- विद्युत शवदाह गृहों या विकसित किस्म के काष्ठ शवदाह सुविधा का निर्माण।
वहीं दूसरी ओर 2014 में साहेब जैसे ही प्रधानमंत्री बने , उन्होंने दिखावे के लिए गंगा एक्शन प्लान का नाम बदल दिया । अब गंगा एक्शन प्लान को हटाकर, "नमामि गंगे" योजना कर दी। और उस समय उन्होंने उस परियोजना के लिए लगभग लगभग एक भारी भरकम रकम को एलॉट किया लेकिन । 4 साल में सरकार उस पैसे का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाई । और जब संसद में सरकार ने नमामि गंगे योजना की रिपोर्ट सीएजी को सौंपी तो सीएजी ने सारा कच्चा चिट्ठा सामने रख दिया ।
सीएजी के मुताबिक 2014 से 2017 के बीच नमामि गंगे के लिए आवंटित पैसों में से 50% हिस्सा भी खर्च नही किया गया। ऐसे में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के 2133 करोड़, 422 करोड़ और 60 करोड रुपए खर्च ही नहीं किए गए ।
जबकि यह रकम बहुत सारे राज्य के कार्यक्रम और एजेंसियों के उपक्रमों के साथ खर्च करनी थी । सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि "46 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इंटरसेक्शन और डायवर्जन प्रोजेक्ट्स और नहर पर योजनाओं की लागत पांच हज़ार करोड़ से ग्यारह हजार करोड़ थी।
2710 करोड़ रुपए की लागत वाली 26 परिजनों में जानबूझकर देरी की गई । जिसकी वजह भूमि का उपलब्ध नहीं होना और ठेकेदारों की कामचोरी बताई गई। रिपोर्ट में सीएजी ने बताया कि कार्य को अंतिम रूप नहीं दिए जाने की वजह से स्वच्छ गंगा नदी में से एक भी रुपए का इस्तेमाल नहीं किया जा सका है। और इसके तहत कुल 198 करोड रुपए अभी बैंक में पड़े हुए हैं ।
अब जब सरकार खुद भी सफाई के और काम के आंकड़े देती है , तो ही स्थिति और भी भयंकर बन जाती है। सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे योजना शुरू की । 3 सालों में सरकार ने 4131 करोड़ रुपए दिए और सफाई के लिए कुल बीस हज़ार करोड रुपए अलॉट किए। लेकिन उसमें से अभी तक केवल तीन हज़ार करोड रुपए ही इस्तेमाल हो सके हैं । देश के पांच अलग-अलग राज्यों के 97 शहरों से होकर गुजरने वाली 2525 किलोमीटर लंबी गंगा के किनारे बसे हुए शहरों से लगभग लगभग 2953 मिलियन टन कचरा निकलता है।
जी हां बिलकुल इतना ही । और यह हाल उस नदी का है जिसे हिंदू अपनी आस्था का प्रतीक और अपनी मां मानता है। ठीक उसी तरह जिस तरह गाय को अपनी आस्था का प्रतीक और अपनी मां मानता है। लेकिन आए दिन गाय प्लास्टिक खाने की वजह से मरी जाती है ।या सड़कों पर कचरा खाते में पाई जाती हैं ।गंगा नदी की सफाई करना तो बहुत बड़ी बात है , साहब तो अभी तक गंगा नदी में कचड़े को फेंकने वाली व्यवस्था के रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं कर पाए हैं। बीच में सिर्फ लोगों को भड़काने और मुद्दे भटकाने के लिए लोग अक्सर गंगा की बात करते हैं, लेकिन इसका ग्राउंड लेवल पर कोई फर्क नहीं है ।
गंगा के किनारे बसे हुए घाटों और रिवरफ्रंट के विकास के नाम पर 65 प्रोजेक्ट चालू करने की बात थी। और वह शुरू भी किए गए लेकिन अभी तक 20 ही पूरे हो पाए हैं। सीएजी की रिपोर्ट आगे अभी बताती है कि गंगा की सफाई से जुड़े 154 प्रोजेक्ट ओं में से सिर्फ 71 को ही मजबूत मंजूरी मिली है। और गंगा को मैली होने से बचाने के लिए 46 ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाने हैं, जिसमें से 26 का काम बहुत ही देरी से चल रहा है ।कुल मिलाकर 2958 करोड़ रुपए तक आग की तरफ फूंक डाले गए हैं। लेकिन गंगा की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।
यहां तक की सरकार की रिपोर्ट कहती है कि गंगा 150% ज्यादा गंदी हो गई है । एक आरटीआई के माध्यम से जब गंगा नदी की सूचना मांगी गई तो उसके बदले जो प्रधानमंत्री कार्यालय का जवाब आया वह बहुत ही ज्यादा हैरान करने वाला था ।और उससे यह भी पता चला कि बहुत ज्यादा हल्ला गुल्ला करके, बहुत ज्यादा शोर शराबा और पांच सौ जगह बात करके जिस नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी वह सिर्फ और सिर्फ पेपर पर ही है।
9 मई की आरटीआई में 7 सवाल पूछे गए थे। जिसमें संवेदनशील मुद्दे बजटीय प्रावधान और खर्चों पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठकों का विवरण से जुड़ा सवाल शामिल है। पीएमओ के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी सुब्रतो हजारा ने इस मामले का जवाब देने के लिए इसे केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय के पास भेजा। मंत्रालय ने बताया कि 2014-15 में 2137 करोड रुपए आवंटित किए गए। बाद में इसमे से 84 करोड रुपए काट कर वापस ले लिए गए। इस तरह ये रकम सिर्फ2053 करोड़ की हो गयी।
और खूब सारे प्रचार-प्रसार के बाद भी सरकार ने 326 करोड रुपए खर्च किए । और इस तरह से 1700 करोड़ से रुपए से भी ज्यादा की रकम खर्च ही नहीं हो पाई। 2015-16 में भी स्थिति कुछ खास नहीं बदली , और वही फटी फटाई पुरानी राग अलापने वाली केंद्र सरकार ने पिछली बार के 2137 करोड़ के बजट आवंटन को घटाकर 1650 कर दिया । और इसमें भी 18 करोड रुपए बिना खर्च के बच गए। अब सवाल यह भी है कि हमारे साहब इतनी महत्वपूर्ण परियोजना को लेकर गंभीर क्यों नहीं है ?
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की तीन बैठकें हुई जिस के प्रधानमंत्री अध्यक्ष हैं। लेकिन उन्होंने तीन बैठकों में से सिर्फ एक ही बैठक की अध्यक्षता किया। हो सकता हो बाकी दो बैठकों के टाइम प्रधानमंत्री कहीं चुनाव प्रचार में बिजी रहे हो ।या रैलियां करने या झूठ बोलने में व्यस्त रहे हो। बाकी दो बैठकों की अध्यक्षता उमा भारती ने की। जो अब यह कहती हैं कि-
"गंगा नदी के बारे में मुझसे कुछ मत पूछो। वह गडकरी जी बताएंगे। मैं जब संत थी तो गंगा नदी के बारे में बोलती थी।अब मैं मंत्री हूं, तो कुछ नहीं बोलूंगी।"
27 अक्टूबर 2014 , जुलाई 2016 को उमां भारती ने दो मीटिंग की अध्यक्षता की। जबकि यही मीटिंग जब प्रधान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई तो , अपने कार्यकाल में हुए तीनों बैठकों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उपस्थित रहे ।और तीनों कार्यक्रमों की अध्यक्षता किया। लेकिन इन सब के बाद हम फिर भी मनमोहन सिंह को एक बेकार और नाकारा प्रधानमंत्री ही मानेंगे। क्योंकि ऐसा हमारे दिमाग में ठूंस ठूंस कर भर दिया गया है। और उसको निकालने वाला कोई नहीं है।
अगर कोई एक इस को निकालने आएगा तो, 4 और आ जाएंगे उसको और अंदर गहराई तक ठूसने के लिए। नमामि गंगे और गंगा मैया के नाम पर प्रधानमंत्री जी ने खूब कैसे बनाएं, मित्रों को दिए ,और कथित संतो के नाश्ते पानी में 750 करोड रुपए तक खर्च करवा दिए। और वोट भी जमकर लिया ।लेकिन काम के नाम पर प्रधानमंत्री जी ने अभी तक कुछ भी नहीं किया। केंद्र सरकार की ही हालिया रिपोर्ट के अनुसार 150% तक गंगा ज्यादा गंदी हो चुकी है ।तो क्या इसके लिए अब किसको जिम्मेदार माना जाए ?
अब कई लोगों को कहते हुए सुना जाता है कि "हर काम सरकार थोड़ी ना करेगी ,कुछ बदलाव अपने में भी लाइए"। ये तो 2014 से पहले सोचना चाहिए था। और अगर लोगों को खुद से बदलाव लाना ही है, तो फिर हमें प्रधानमंत्री बदलने की जरूरत क्यों पड़ी ? इसका मतलब की हमें बाहकाया गया, और बातों को बढ़ा चढ़ाकर बड़ा बड़ा दिखा कर वोट हथियाने की कोशिश की गई। ताकि सत्ता मिले और अपना उल्लू सीधा का किया जा सके। जैसा कि अभी कुछ दिन पहले तत्कालीन गंगा जीके मंत्री नितिन गडकरी जी ने कहा कि "हमने तो चुनाव में बड़े-बड़े वादे किए थे, हमें क्या पता था कि सत्ता हमारे पास आ जाएगी"
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