2 अक्टूबर यानी कि विश्व अहिंसा दिवस यानी कि गांधी जी द्वारा दिए अहिंसा के पाठ का मुख्य दिन । और अहिंसा के उसी पुजारी का जयंती भी । साथ ही दूसरे पुजारी लाल बहादुर शास्त्री , जिसने नारा दिया था "जय जवान जय किसान " की भी जयंती। और उसके बाद दिल्ली की सड़कों पर एक अजीब नजारा देखने को मिलता है । 2 अक्टूबर के दिन विश्व अहिंसा दिवस के दिन , राष्ट्रपिता के जयंती के दिन, जय जवान-जय किसान कहने वाले की जयंती के दिन, हाथ में लाठियां लेकर जवान किसानों को पीट रहे थे। मतलब ना तो अहिंसा बची, ना तो जय जवान हुआ, और ना जय किसान हुआ ।

किसको पता था कि चैंपियन ऑफ द अर्थ का अवार्ड लेने वाला, इस अवार्ड को शांति के नोबल पुरस्कार से भी बड़ा बताने वाला देश का कथित चौकीदार 2 अक्टूबर को " लठैत ऑफ थे डे " बन जायेगा। और यह वही "लठैत ऑफ द डे" है जिसने 2014 से पहले यह नारा दिया था "बहुत व किसानों के साथ अत्याचार अबकी बार फलाने सरकार "। और फलाने की सरकार बनते ही फलाने ने हीं जवानों के हाथों में लाठियां पकड़ा दी।  और उनको आदेश दे दिया की जाओ कूट डालो किसानों को।

और इस तरह जो किसान का बेटा मेहनत करके शारीरिक परीक्षाओ को पास करके  सेना में भर्ती हुआ वहीं किसान का बेटा ,  किसानों के ऊपर लाठीचार्ज कर रहा है। यह शायद देश की सबसे भयावह स्तिथि है। जब हमारे देश के तीन मूल स्तंभ अहिंसा , जवान और किसान , तीनो को एक साथ ही ठिकाने लगा दिया। अहिँसा को कही ताखे में रख कर जवानो को किसानों के ऊपर लाठी भांजने का आदेश दे दिया गया।  यह सब एक भयावह स्थिति को जन्म देने जैसा है।  या यूं कहें कि ऐसी भयावह स्थिति जन्म ले चुकी है। और वह धीरे धीरे अब बड़ी हो रही है।

2014 के चुनाव से पहले किसानों के लिए बड़ी बड़ी बातें करने वाले,  गन्ना भुगतान को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले,  तरह-तरह की ट्रिक बताने वाले, उनके समाधान को लेकर तरह-तरह के हवाबाजी वाले उपाय बताने वाले,  देश के प्रथम प्रधान सेवक अपने ऑफिस में बैठकर किसानों के ऊपर लाठीचार्ज करवा दे रहे।  और अपने नाकारा और निकम्मे प्रवक्ताओं को भेज दिया टीवी पर यह बोलने के लिए कि "यह किसान जो दिल्ली आए हैं , वह किसान नहीं गद्दार हैं। "

इन नाकारा प्रवक्ताओं को बताओ कि वह किसान अपनी मेहनत से किसान बनता है।  दिन रात खेतों में हल चला कर के खेतों की रखवाली करके अपना पसीना की एक एक बूंद खेत को समर्पित करके वह किसान धरतीपुत्र बनता है ।और इन बेवकूफ वक्ताओं की तरह नहीं कि जो किसी व्यक्ति विशेष के तलवे चाट चाट कर महारत्न कंपनियों के डायरेक्टर बन जाते हैं ।और योग्यता के नाम पर एक ढेला की जानकारी नहीं होती ।

कुछ निहायती बेशर्म प्रस्तावों की तो डॉक्टरी तक लाइसेंस तक कैंसिल कर दिया गया है । उसके बाद भी वह आ करके दे खीस निपोरते हुए किसान को गद्दार और देशद्रोही बोल देता है ।इतना सब कुछ होने के बाद भी साहिब यह कहते नहीं थकते कि वह किसानों की समस्या को लेकर गंभीर है।  तरह तरह के जुमलेबाजी और तरह-तरह की हवा बाजी से उन्होंने चार साल तक देसी किसानों को बेवकूफ बनाये रखा।

उत्तर प्रदेश में भी कर्जमाफी के नाम पर किसानों के साथ जो भद्दा मजाक हुआ है , वह छुपा नही है। यह तक कोई किसी का 12 पैसा ,किसी के पांच रुपये, किसी के बीस रुपया, किसी के 30 रुपया, किसी के 250 रुपया, लोन माफ कर के बोला गया हमने किसानों का लोन कर दिया है।ऐसा फरेब झूठ और गुमराह करने की आदत इनके बचपन  वाली ट्रेनिंग का हिस्सा है, जो इन्हें हाफ पैंट पहनकर लाठियां भांजते वक्त सिखाई जाती है।

2 अक्टूबर महात्मा गांधी का जन्म दिन था, वही महात्मा गांधी जो हमारे राष्ट्र पिता है और जिसने कहा था कि “मेरी चले तो हमारा गवर्नर जनरल किसान होगा, हमारा बड़ा वज़ीर किसान होगा।
हिन्दुस्तान का सचमुच राजा वही है।हम उसे गुलाम बना कर बैठे है।
किसान प्रधानमंत्री बने तो हिन्दुस्तान की शक्ल बदल जाएगी।"
उसी दिन महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री दोनों के करीबी किसानों को लाठी खिला कर इन लोगो ने ये दिखाया कि भले ही ये लोग गांधी के नाम पर विदेशो में इज़्ज़त पाते हो ,लेकिन असल मे ये लोग फॉलोवर है आतंकी गोडसे के।

हर बार पांच का 500 करके दिखाने की इनकी आदत और इनका दुस्साहस ,हर बार बढ़ता ही गया।  इसी क्रम में साहेब ने जब रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों का ऐलान किया तो भी यह दावा करने से नहीं चुके कि खरीफ के बाद उसने इन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में भी एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों से आगे बढ़कर भारी वृद्धि कर दी है, जिससे किसानों का मालामाल होना तय है।

इसके बावजूद न उसकी रीति-नीति से किसानों की शिकायतें कम हो रही हैं, न ही असंतोष। उलटे उनकी नाराजगी इतनी बढ़ गयी है कि गत किसान क्रांति पदयात्रा के तहत हरिद्वार से दिल्ली कूच के दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह उन्हें मनाने पहुंचे तो उन्होंने उनकी ओर जूता उछालने तक से परहेज नहीं किया। इस परिदृश्य से साफ है कि इस सरकार ने अब तक और चाहे जितनी उपलब्धियां हासिल की हों, देश के अन्नदाताओं का विश्वास नहीं जीत पायी है।

इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी हैं कि सरकार किसानों की मुसीबतों पर अपनेपन से कोई एक्शन नही ले रही है, या ये भी कह सकते है कि सरकार किसानों को अपना नही मानती। लेकिन सरकार की तरफ से भी सोचना चहिये की सरकार के पास खुद इतने अपने है , जैसे अम्बानी, अडानी, माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, की सरकार के पास अपने वाली वेकैंसी ही फुल हो चुकी है।

और जब सरकार के करीबी वाले अपने इतने खुश हैं तो सरकार को किसानों को अपना बनाने की कोई जरुरत महसूस नहीं होती हां किसानों को अपना बताने का ढोंग जरूर चलता है । और इसी ढोंग के चलते किसानों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं घोषित कर दी जाती हैं । लेकिन यह योजनाएं सिर्फ पेपर तक ही रहती हैं।

साहिब 2014 में आए तो रट रट कर भाषण दिए। "मित्रों साथ महीने दे दो,  मित्रों 70 महीने दे दो।"
फिर "मित्रों 2022 में ये कर देंगे , 2022 में वो  कर देंगे"।  2022 में ही सारा गोल सेट करके रखा है साहब ने।  2014 में बनी सरकार 2019 तक चलनी है , लेकिन सारा गोल सेट कर रखा है 2022 में । चाहे वह 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा हो , चाहे न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने का वादा हो , या एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को और बढ़ा कर लागू करने का वादा हो । साहेब ने इन सब मामलों में इंसानी पूर्वजों की तरह लपक कर गुलाटी मारी है । और गुलाटी भी ऐसी की डाल पर लटके हुए इंसानी पूर्वज देखकर शरमा जाए ।और रोज सुबह शाम साहेब की फोटो पर अगरबत्ती माला चढ़ाकर फिर से गुलाटी मारने की प्रेक्टिस करने लगे।

साहेब ने किसानों के लिए एक और योजना निकाली।  जिसमें उनको यह कहा गया कि हम आप की फसलों का बीमा करेंगे , और प्राकृतिक आपदा आने पर हम उस नुकसान के बराबर की भरपाई करेंगे । लेकिन यहां भी साहेब खेल कर गए,  और खेल उन्होंने ऐसा किया कि फसल के नुकसान की भरपाई वाली रकम किसान को ना देकर उस भुगतान को बीमा कंपनी को देने लगे ।अब इसकी भी जांच नहीं की कि बीमा कंपनी किसान को पैसा दे रही है, या नहीं दे रही है। या क्लेम एक्सेप्ट कर रही है या नहीं कर रही है।  कर रही है तो कितना कर रही है।

इन सब से साहब को कोई मतलब नहीं है। बस साहब ने अपने बीमा कंपनी वाले मित्रों को खुश जरूर कर दिया।  बात किए थे किसानों की आय दोगुनी करने की,  यहां तो साहब ने बीमा कंपनियों की आय दसगुनी कर दी।  बीच में साहब ने एक और शिगुफा छोड़ दिया की न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुने से ज्यादा बढ़ गया है । लेकिन जब उसका भी सच्चाई सामने आई तो लोग सोचने पर विवश हुए । क्योंकि उसमें सारी कैलकुलेशन ही खा गए साहब। उन्होंने उसमें मैंन पावर कॉस्ट को जोड़ा ही नहीं।

चलो हम मान भी लेते हैं कि साहेब ने 150% तक न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया,  तो 2014 के हलफनामे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह क्यों कहा कि वह किसानों की फसलों की लागत की 50 परसेंट से ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य दे ही नहीं सकती । तो अब मोदी जी बताने का कष्ट करेंगे कि 150 प्रतिशत वाला मिरेकल कैसे हो गया ?

2 अक्टूबर को जो किसानों के ऊपर लाठियों से प्रसाद दिया गया वह भी वह भी अपने आप में एक मिसाल बन गया। 2 अक्टूबर यानी कि विश्व अहिंसा दिवस यानी कि गांधी जी द्वारा दिए अहिंसा के पाठ का मुख्य दिन । और अहिंसा के उसी पुजारी का जयंती भी । साथ ही दूसरे पुजारी लाल बहादुर शास्त्री , जिसने नारा दिया था "जय जवान जय किसान " की भी जयंती।  और उसके बाद दिल्ली की सड़कों पर एक अजीब नजारा देखने को मिलता है । 2 अक्टूबर के दिन विश्व अहिंसा दिवस के  दिन , राष्ट्रपिता के जयंती के दिन, जय जवान-जय किसान कहने वाले की जयंती के दिन,  हाथ में लाठियां लेकर जवान किसानों को पीट रहे थे।  मतलब ना तो अहिंसा बची, ना तो जय जवान हुआ, और ना जय किसान हुआ ।

जब पूरा देश ही नही बल्कि पूरे विश्व अहिंसा दिवस के नाम पर शांति का पर्व मना रहा था । खुद साहब भी सुबह-सुबह अपनी टीम को ले जाकर गांधी जी की समाधि पर फूल चढ़ाकर आए । उसी समय देश के किसान राजधानी में घुसने के लिए लाठियां खा रहे थे। और लाठीया खाते समय साहेब का एक ही दिन में चार बार कपड़े बदलने वाला फोटो भी वायरल हुआ । तो इससे हम समझ सकते हैं कि उस समय साहब किसानों से ज्यादा जरूरी काम अपने कपड़े बदलने वाले काम कर रहे थे ।

वैसे भी साहब की प्राथमिकताओं में किसानों और जवानों से पहले कपड़े बदलना और उससे भी पहले सही से फोटो खिंचवाना आता है।  हो भी क्यों ना उसी के अगले दिन उन्हें "चैंपियन ऑफ द अर्थ" का अवार्ड लेना था । लेकिन विचार  करके वो एक दिन पहले ही "लठैत ऑफ द डे " बन गए।  केंद्रीय कृषि मंत्री भी साहब की सुर में सुर मिलाए खामोशी डाले बैठे रहे । कृषि राज्य मंत्री आए तो वह भी गोला घूम आए और थूक लगा कर चले गए ।

किसानों को पीटने का भी पुलिस का अपना एक अलग तरीका था । अभी तक हमने सुना था कि लोग भिगो भिगो कर जूते मारते हैं । लेकिन पहली बार देखा कि पुलिस ने भिगो भिगो कर लाठियां मारी । मतलब काम भी हो जाए और बदनाम भी ना हो । किसानों को जी भर के कूट भी दिया जाए और शरीर पर एक निशान भी न आये। करीब 100 साल पहले अप्रैल 1917 में महात्मा गांधी ने जिनके लिए पहला सत्याग्रह शुरू किया था, वो किसान थे।

इस सत्याग्रह को दुनिया चंपारण सत्याग्रह के नाम से जानती है। लेकिन उसी चंपारण सत्याग्रह की अगुवाई करने वाले महात्मा गांधी के जन्मदिन पर जब हजारों किसान दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर जमा होने जा रहे थे, पुलिस ने उन्हें दिल्ली में घुसने से ही रोक दिया। उनपर लाठीचार्ज किया गया, पानी की बौछार की गई और आंसू गैस के गोले छोड़े गए और ये सब उस दिन हुआ, जिस दिन अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का जन्म दिन थ। इसके अलावा भारतीय राजनीति में एक और नेता हुआ, जिसने किसानों को सबसे ज्यादा अहमियत दी. वो थे देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, जिन्होंने नारा दिया था जय जवान-जय किसान। 2 अक्टूबर को उनका भी जन्मदिन होता है, लेकिन देश की राजधानी में गांधी और शास्त्री के जन्मदिन के दिन ही किसानों पर लाठियां चलाई जा रही है।

किसान संगठन,  भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में करीब 30,000 किसान 23 सितंबर को हरिद्वार में जुटे ।  वहां से ये किसान दिल्ली के लिए पैदल चले, जिसे नाम दिया गया "किसान क्रांति यात्रा" । अब जैसे ही क्रांति का नाम आया , साहेब के अंदर का बैठा जनरल डायर जाग गया। इस किसान क्रांति यात्रा में किसानों के साथ ही ट्रैक्टर और ट्रॉली भी थीं। अपनी मांगों को लेकर निकले। इनमें से इनकी प्रमुख मांगे थी-

1-स्वामीनाथन कमिटी की सिफारिशें लागू की जाएं।

2-किसानों का पूरा कर्ज माफ हो।

3-बिजली के दाम घटाए जाएं।

4-60 साल से अधिक की उम्र के किसानों को 5,000 रुपये की पेंशन दी जाए।

5-10 साल पुराने ट्रैक्टर पर लगाया गया प्रतिबंध वापस लिया जाए।

6-प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बदलाव किया जाए।

7-योजना का लाभ कंपनियों के बदले किसानों को दिया जाए।

8-सिंचाई के लिए बिजली मुफ्त में उपलब्ध करवाई जाए।

9-किसान क्रेडिट कार्ड योजना में बिना ब्याज लोन दिया जाए।

10-महिला किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड योजना अलग से बनाई जाए।

11-आवारा पशुओं से किसानों के फसल को बचाने का इंतजाम किया जाए।

अपनी इन्ही चंद माँगो के साथ किसान 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर राजघाट पहुंचने वाले थे। वहां महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के बाद इन किसानों को राजघाट से संसद भवन तक विरोध मार्च निकालना था।हजारों की संख्या में जमा हुए ये किसान जब 23 सितंबर को हरिद्वार से निकले तो किसी भी सरकार ने इनकी सुध नहीं ली। दस दिन की यात्रा के बाद जब किसानों का ये जत्था एक अक्टूबर की शाम को दिल्ली से सटे साहिबाबाद तक पहुंचा, तब दिल्ली पुलिस को लगा कि मामला हाथ से निकल रहा है।

इसके बाद दिल्ली पुलिस ने किसानों की यात्रा पर रोक लगा दी। दिल्ली पुलिस और यूपी पुलिस ने मिलकर किसानों को 1 अक्टूबर की शाम होते-होते साहिबाबाद में बैरिकेडिंग कर रोक दिया और फोर्स तैनात कर दी गई। हजारों की संख्या में किसान दिल्ली पहुंचे थे और उनपर लाठीचार्ज भी हुआ। इसके अलावा एक और खबर आई कि एक किसान की जेल में मौत हो गई। किसान को जेल इसलिए भेजा गया था, क्योंकि वह अपना लोन नहीं चुका सका था। एक आंकड़े के मुताबिक पंजाब में 12625 किसान ऐसे हैं, जिन्हें लीगल नोटिस मिला है।

उन्हें कहा गया है कि अगर वह अपना कर्ज वापस नहीं करते हैं तो उन्हें अपना जमीन भी खोना पड़ सकता है। इन किसानों के ऊपर लगभग 230 करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं दूसरी तरफ सिर्फ दो बड़े कॉरपोरेट ने लगभग 13 हजार 500 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है, जो माफ हो चुका है।

पिछले तीन से चार साल में सरकार जिस तरह की कृषि योजनाएं लेकर आई है और उसे जिस तरह लागू किया गया है, इसे देखकर लगता है कि किसानों की आय 2025 तक भी दोगुनी नहीं हो सकती है।


30 दिसम्बर 2016 को जारी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015’ के मुताबिक साल 2015 में 12,602 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2015 में किसानों और कृषि मजदूरों की कुल आत्महत्या में दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साल 2014 में कुल 12360 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी।

गौर करने वाली बात ये है कि इन 12,602 लोगों में 8,007 किसान थे जबकि 4,595 खेती से जुड़े मजदूर थे। साल 2014 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 5,650 और खेती से जुड़े मजदूरों की संख्या 6,710 थी। इन आंकड़ों के अनुसार किसानों की आत्महत्या के मामले में एक साल में 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। वहीं कृषि मजदूरों की आत्महत्या की दर में 31.5 फीसदी की कमी आई है।

किसानों की आत्महत्या के मामले में सबसे ज्यादा खराब हालत महाराष्ट्र की रही। राज्य में साल 2015 में 4291 किसानों ने आत्महत्या कर ली। महाराष्ट्र के बाद किसानों की आत्महत्या के सर्वाधिक मामले कर्नाटक में 1569, तेलंगाना में 1400, मध्य प्रदेश में 1290, छत्तीसगढ़ में 954, आंध्र प्रदेश में 916 और तमिलनाडु में 606 सामने आए। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या का कारण कर्ज, कंगाली, और खेती से जुड़ी दिक्कतें हैं। आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या करने वाले 73 फीसदी किसानों के पास दो एकड़ या उससे कम जमीन थी।


यह सब काम हो रहा है जबकि देश में 2014 के बाद मोदी जी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने काला धन के साथ-साथ किसानों की समस्या को पुरजोर तरीके से उठाया।  और काला धन को किसानों से जोड़कर किसानों के हितों की बात करने लगे । माहौल कुछ ऐसा घुमाया की हर तबके के लोगों ने उन्हें वोट देकर अपनी भलाई देखने लगे । 

किसान भी बिना वजह ही कर्ज माफी के लिए इतने आंदोलन कर रहे हैं । जबकि इसी पार्टी के नायाब अध्यक्ष शाहजी खुलेआम अपनी छाती ठोक कर कह चुके हैं,  कि "हमने कभी किसानों का लोन नहीं माफ किया , और न हम किसानों का लोन माफ करने के पक्ष में है, हमने अगर लोन माफ किया है तो उद्योगपतियों का लोन माफ किया है" ।  उद्योगपतियों में भी वही जो साहेब के और शाह जी के करीबी हैं , जिनका नाम है पहले भी ले चुका हूं।

इन लोगों के लोन माफ कर कर के और इनको विदेश में जुगाड़ कराके सेटल कर दिया है।  मतलब रिटायरमेंट के बाद की साहेब की अपनी भी फ्यूचर प्लैनिंग सेट है। तभी तो बड़े बड़े बिजनेसमैनो के लोन माफ कर दिए जाते हैं,  और उन्हें बैंकों के एनपीए में तब्दील कर दिया जाता है। फिर वही बिजनेसमैन विदेश भाग जाते हैं , कई तो वित्त मंत्री जी को बता कर भागते हैं। तो कई बिजनेसमैनो को वित्त मंत्री जी खुद एयरपोर्ट छोड़ कर आते हैं।

ऐसे में किसानों की सुनेगा कौन ? इस देश मे यह नियम बनता जा रहा है कि अगर आप के ऊपर 5 लाख से कम का कर्ज है तो आपके पास तीन रास्ते हैं, या तो आप कर्ज चुकाये, या आप लोन माफी की मांग करते हुए लाठियां खाइये, या आप कही कुए में कूद कर मर जाइए , लेकिन हा यदि आपका लोन कुछ हजार करोड़ में है तो आराम से आप विदेश में जाकर रह सकते है।

अगर आपको विदेश में रहने में कोई समस्या होती है तो कुछ विदेश मंत्री उस देश को चिट्ठी लिखकर आपके रहने खाने और वहाँ पर आपके बिज़नेस की व्यवस्था करा देंगी। अगर आपको एयरपोर्ट तक जाने में तकलीफ हो रही है तो , साहेब खुद छोड़कर आएंगे। और अगर भागने से संबंधित सलाह मशविरा करनी है , तो हमारे जेबलुटेली जी के दरवाजे तो हमेशा ही खुले रहते है । 

और यह सब तब हो रहा है जब 2014 में अपने तरह-तरह की लच्छेदार भाषणों से किसानों को लुभाने और फसाने की कोशिश की गई थी। आज साहेब को देखकर यही लगता है कि "क्या ये वही मोदी जी हैं जो , 2014 में किसानों के पैर में कांटा चुभने से पहले किसानों के पैर के नीचे लेटने तक को तैयार रहते थे ??  वह सब  ढोंग किस लिए,  सिर्फ वोट के लिए ना ?  ताकि सत्ता हथिया ली जा सके।  और सत्ता हथिया कर अपने दोस्तों को पेट भर भर कर पैसा देकर विदेश में सेटल किया  जा सके।  और फिर बुढ़ापे में भी अपनी खुद की रिटायरमेंट लाइफ वहीं पर गुजारी जा सके।

क्योंकि साहेब आडवाणी जी का बुढ़ापे में हाल तो देख ही रहे हैं । और देख ही कहाँ रहे हैं, वो हाल  करने वाले भी तो वो खुद वही  साहेब हैं।  बेचारे आडवाणी जी हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए खड़े रह जाते हैं, और मोदी जी बिना देखे , बिना जवाब दिए वहां से निकल जाते हैं।  यह नजारा देखकर वही शायरी याद आती है कि "तू किसी रेल सी गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूं"।

जय जवान जय किसान।
जय समाजवाद

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