2014 मई से पहले हर मुद्दे पे अपना ज्ञान रगड़ा, कालाधन के मुद्दे से लेकर स्विस बैंक के नाम की लिस्ट तक, आरक्षण से लेकर गरीबी तक, देश की धरोहरों से लेकर रेल की सुविधाओं तक, सिलेंडर से लेकर देश की सेना की मजबूती तक, सरकारी कंपनियों के फायदे से लेकर घोटाले तक, शिक्षा से लेकर "गंगा माँ ने बुलाया है " तक, बैंको के हालात से लेकर टैक्स सिस्टम तक, गुलाबी क्रांति ( मांस का निर्यात) से लेकर राम मंदिर तक। ये साहेब ने हर मुद्दे पर अपना ज्ञान जमकर झाड़ा।

पिछले 4 या 5 साले से भारत मे जो हवाबाजिया मारी गयी, जो भर भर कर लोगो से डायलॉग चेपे गए, वैसा शायद देश मे पहले कभी नही हुआ होगा। 2014 के मई से पहले एक परम ज्ञानी परम सामर्थ्यवान , बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अटल साहसी, निर्भीक , और दिलेर 56 इंची सीना वाले महापुरुष हुए। 2012 से ही इस महान प्रतिभावान पुरुष ने देश को लोगो को हर मुद्दे पर लेक्चर दिया, और ऐसे ऐसे समाधान बताए जो लोगो को लगा कि अरे ये तो काम ऐसा बिल्कुल हो जाएगा।

बेसिकली वो एक लकीर से बड़ी लकीर खींच कर उसे छोटा साबित करने वालो में से नही, बल्कि उसी लकीर को मिटा कर उसे छोटा साबित करने वालो में से थे।  भ्रस्टाचार और अन्ना के आंदोलनों से बैकफुट पर आ चुके कांग्रेस इन महापुरुष का सबसे सरल शिकार बने। कही पर 56 इंच की छाती का ढोंग तो कही पर राष्ट्रवादी हिंदुत्व का राग , इन्होंने हर मुद्दे पर मनमोहन सिंह और काँग्रेस को निकम्मा सबित करने की कोसिस किया। बड़े बड़े एंडोर्समेंट , बड़े बड़े स्पोंसर्स करके दिन रात टीवी पर दिखाया गया।

जिस अर्थव्यवस्था के मनमोहन सिंह सबसे बड़े जानकर है, और जिस अर्थव्यवस्था का "अ" भी इन साहेब को नही आता था, उसमे भी इन्होंने मनमोहन सिंह को फिसड्डी साबित करने का प्रयास किया। वो डायलॉग तो याद होगा ही " जैसे जैसे देश का रुपया गिर रहा है, वैसे वैसे प्रधानमंत्री की गरिमा गिर रही है"  तब तो भारतीय जनता पार्टी की 4 बार हारी हुई मंत्री मनमोहन सिंह को पेट्रोल 71 रुपये होने पे चूड़ियां भेज रही थी। और आज रुपया 74 के पार, और पेट्रोल 90 के पार है, पर अब उन महापुरुष और उन्ही ईरान वाली मैडम का कुछ पता नही है।

साहेब ने 2014 मई से पहले हर मुद्दे पे अपना ज्ञान रगड़ा, कालाधन के मुद्दे से लेकर स्विस बैंक के नाम की लिस्ट तक, आरक्षण से लेकर गरीबी तक,  देश की धरोहरों से लेकर रेल की सुविधाओं तक, सिलेंडर से लेकर देश की सेना की मजबूती तक, सरकारी कंपनियों के फायदे से लेकर घोटाले तक, शिक्षा से लेकर "गंगा माँ ने बुलाया है " तक, बैंको के हालात से लेकर टैक्स सिस्टम तक,  गुलाबी क्रांति ( मांस का निर्यात) से लेकर राम मंदिर तक।
ये साहेब ने हर मुद्दे पर अपना ज्ञान जमकर झाड़ा।

काला धन

साहेब ने कहा कि कांग्रेस देश का पैसा बाहर भेज कर स्विस बैंक में जमा करवा रही है। सिर्फ अपने ही क्यों आपके गुरु या चेले  हरिद्वार वाले बाबा भी यही कहते रहे, बाबा ने तो सलवार पहन कर 20 लाख हज़ार करोड़ के काला धन भारत के बाहर होने का दावा किया। इसके लिए खूब बड़े बड़े आंदोलन हुए, sms कॉम्पिटिशन हुए , और सबने मिलकर साहेब को गद्दी पर बैठा दिया, उसके बाद क्या हुआ ? साहेब ने मिलकर कर्जदारों को ही बाहर भेज दिया।

और उनकी सुविधा के लिए पत्र भी लिखे।  नोटबंदी से जनता का पैसा बैंकों में जमा कराकर उनके कर्ज बट्टे खाते में डाल दिये। रिजर्व बैंक ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी दी है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सरकारी बैंकों का एनपीए यानी बैड लोन तिगुना हो गया है। इंडिया टुडे टीवी के सवालों का जवाब देते हुए आरबीआई ने कहा है कि 30 जून, 2014 से दिसंबर, 2017 के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए बढ़कर तीन गुना हो गया है।
नोटबंदी से कोई ठोस नतीजा नहीं मिला है, इसे आमतौर पर विफल माना जा रहा है।

नवंबर 2016 में सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया। पूरे करेंसी सर्कुलेशन में इन नोटों का हिस्सा करीब 86 फीसदी था।इसके पीछे सोच बैंकिंग सिस्टम से बाहर हो चुके धन को वापस लाने की थी। सरकार को लगता था कि इससे बैंकिंग सिस्टम में 10 से 11 लाख करोड़ मूल्य के नोट वापस आ जाएंगे। नोटबंदी के समय 500 और 1000 के कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट अवैध घोषित किए गए थे। इनमें से सिर्फ 16,000 करोड़ रुपये ही वापस नहीं आए।

नोटबंदी के दौरान नए नोटों की छपाई और एटीएम को दुरुस्त करने आदि पर रिजर्व बैंक के करीब 21,000 करोड़ रुपये खर्च हो गए। हालांकि नोटबंदी के दौरान कुल कितनी रकम बैंकों में वापस आई अभी इसका अंतिम आंकड़ा रिजर्व बैंक बताने को तैयार नहीं है। इस तरह नोटबंदी से सरकार का यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ कि अर्थव्यवस्था से काला धन बाहर निकल आएगा।
और जब इन लोगो से ये नही हो पाया तो , इन्होंने ये कहना सुरु कर दिया कि स्विस बैंकों में जमा रुपया काला धन है ही नही। लो अब उखाड़ लो जो उखाड़ना है।

देश की धरोहर

2014 के अपने चुनावी कंपैन के लिए साहेब ने एक गाना रिलीज करवाया था, जिसमे वो गवैया भी बने थे, और एक ही डायलॉग मार था, " देश नही बिकने दूंगा "
और पता चला कि प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने वही जगह डालमिया ग्रुप को बेच दिया जिसपे खड़ा होकर देश का हर प्रधानमंत्री देश की आज़ादी और स्वाधीनता की ललकार ठोकता है कि "अब हम आजाद है, और ये ज़मीन हमारी है," अब ये ललकार नही ठोकी जाएगी, क्योकि अब वो जमीन भाड़े के हो गयी है ।  जो लाल किला कांग्रेस के समय मे 10 रुपये में ही दिखाया जा रहा था, वो भी सरकारी खर्च पर।

मोदी जी से  वह ख़र्चा भी न उठाया गया और लालकिला 99 साल की लीज पर डालमिया को को देकर जनता की जेब से 10 की जगह 100 ररुपये लुटवाने लगे। मोदी जी ने देश के रेलवे स्टेशनो को कायाकल्प के नाम पर प्राइवेट हाथों में सौप दिया। कांग्रेस सरकार सुविधा कम देती थी, लेकिन  रेल टिकट सस्ता था,  आप महंगा दे रहे हैं लेकिन सुविधा वो की वो ही है। वो प्लेटफार्म टिकट 5 रुपये का दे रहे थे हम आपको ले आए। आपने डिजिटल जेबकतरा बनकर 20 रुपये तक जेब से चुराने लगे ।

गैस

एलपीजी गैस सिलेंडरों के नाम पर भी साहेब ने खूब उल्लू बनाया , पहले का सिलेंडर 450 रुपये में मिलता था , तब यही मोदी जी मंत्री दिन रात इसके विरोध में सड़क पर ही नज़र आते थे, लेकिन अब वही सिलेंडर 900 रुपये में मिल रहा है, और कथित सब्सिडी सीधे बैंक में जाती है। सब्सिडी बैंक में वापस आती है 300 रुपये के आस पास , मतलब एक सिलेंडर 600 रुपये का जाता है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन चीजों के कच्चे माल की कीमत 2014 के पहले के मुकाबले बेहद कम है ।

फिर इन्होंने एक नया ढोंग किया " प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना" लोगो से कहा कि वो अपनी सब्सिडी छोड़े, और उनकी छोड़ी हुई सब्सिडी से किसी गरीब को सिलेंडर और चूल्हा दिया जाएगा। ये ढोंग भी खूब चला, हर पेट्रोल पंप और हर जगह इस ढोंग के पोस्टर आज भी लगे हुए नज़र आते है । अब मैं इसे ढोंग क्यों कहा रहा हु, समझाता हु ,इन लोगो को सब्सिडी और उज्ज्वला के नाम पर खुलेआम बेवकूफ बनाया जा रहा है।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ‘उज्ज्वला गैस योजना’ को गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त दी गई बड़ी परिवर्तनकारी योजना बता रही है। प्रधानमंत्री खुद कई मौकों पर सार्वजनिक मंच से इस योजना की सफलता की तारीफ कर चुके हैं मगर सच्चाई इससे उलट है।

पहली बात तो यह कि इस स्कीम के तहत गरीब महिलाओं को दिया गया गैस कनेक्शन (सिलेंडर और चूल्हा) न तो फ्री है और न ही सिलेंडर पर (मार्च 2018 तक) सब्सिडी मिली है। किसी भी लाभार्थी को गैस कनेक्शन लेते ही कुल 1750 रुपये चुकाने पड़ते हैं। इनमें से 990 रुपये गैस चूल्हे के लिए जाते हैं जबकि 760 रुपये का पहला सिलेंडर आता है। सरकार की तरफ से दावा किया जाता है कि प्रति गैस कनेक्शन यानी प्रति उपभोक्ता 1600 रुपये की आर्थिक सहायता दी गई है, जो गलत है।

दरअसल, सरकार इस योजना के तहत लिए गए कनेक्शन में पहले छह सिलेंडर की रिफिलिंग पर मिलने वाली सब्सिडी खुद रख लेती थी, ताकि 1600 रुपये की दी गई आर्थिक सहायता (एक तरह का कर्ज) चुकता कर लिया जाय। सरकार सिर्फ 150 रुपये का रेग्यूलेटर फ्री देती है। इसके एवज में पीतल बर्नर वाले चूल्हे की जगह लोहे का बर्नर लगा चूल्हा दिया जाता है। गैस पाइप भी छोटा दिया जाता है।

उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं को पहले छह सिलेंडर बाजार दर पर खरीदने होते हैं जो 750 से 900 रुपये के बीच पड़ता है। अमूमन एक सिलिंडर पर सब्सिडी 240 से 290 रुपये मिलती है। इस लिहाज से सरकार पहले छह सिलेंडर की रिफिलिंग के दौरान करीब 1740 रुपये प्रति ग्राहक वसूल लेती है।अगर देखा जाए तो सरकार इसमें भी गरीबों को सहायता देने के नाम पर उनसे लगभग लगभग 140 रुपये कमा ले रही है।

घोटाला और कमीशनबाजी।

साहेब ने ये बताया कि कांग्रेस ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकाप्टरों की डील में पैसा खा रहे थे, हम आपको ले आये।

आप तो मदारी निकले, आपने न केवल विमान तीन गुना अधिक कीमत पर खरीदे, बल्कि आपने भारतीय सार्वजनिक उपक्रम, HAL, जिसे दशकों का अनुभव है, और जिसने अनेक शत्रुजयी युद्धक विमान दिये उससे छीनकर, उस कम्पनी को  राफेल बनवाने का ऑर्डर दिलवा दिया जो कुछ हफ्तों पहले विशेष षड़यंत्र के तहत बनी, जिस  कम्पनी ने कभी कोई हथियार भी नहीं बनाया ।लोगो को तो ये  याद होगा ही कि जब अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए थे तब फ्रांस्वा ओलांद ही राष्ट्रपति थे। उन्हीं के साथ राफेल विमान का करार हुआ था। मीडियापार्ट फ्रांस' नाम के अख़बार ने पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से पूछा कि रिलायंस को किसने चुना और क्यों चुना तो फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि -

" हमारे पास पार्टनर चुनने का कोई विकल्प नहीं था। भारत की सरकार ने ही रिलायंस को प्रस्तावित किया। डास्सो ने अनिल अंबानी के साथ समझौता किया। हमारे पास कोई चारा नहीं था।हम उस मध्यस्थ के साथ काम कर रहे थे जो हमें दिया गया था। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि इसका संबंध फिल्म जुली गाइये होगा।"

10 अप्रैल 2015 के दिन मोदी जी ने ओलांद के साथ फोटो खिंचवाई और डील को फाइनल किया । लेकिन थोड़ी इंटरेस्टिंग बात यहाँ आती है कि  इसी डील के 16 दिन पहले राफेल बनाने वाली डास्सो एविएशन के सीईओ का बयान आता है कि "हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड से बात हो रही है।"यानी कि एचओएल का नाम लगभग डील के लिए फाइनल था, क्योकि डील होने में सिर्फ 14 दिन बचे थे।

मार्च 2014 के बीच दोनों के बीच करार हुआ था कि भारत में 108 लड़ाकू विमान बनेगा और 70 फीसदी काम एचएएल को मिलेगा।लेकिन इस डील से दो दिन पहले हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड का नाम गायब हो जाता है। प्रशांत भूषण ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था जिसे बार-बार राहुल गांधी ने कहा था कि क्रोनी कैपटलिस्ट को लाभ पहुंचाने के लिए एचएएल को डील से हटा दिया गया। रिलायंस डिफेंस डील के भीतर आ जाती है। यही नहीं प्रशांत भूषण ने 8 अप्रैल 2015 के दिन भारत के विदेश सचिव के एक बयान का भी ज़िक्र किया था।

प्रधानमंत्री मोदी के भारत दौरे से पहले विदेश सचिव ने कहा था कि राफेल को लेकर मेरी समझ यह है कि फ्रेंच कंपनी, हमारा रक्षा मंत्रालय और हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड के बीच चर्चा चल रही है। ये सभी टेक्निकल और डिटेल चर्चा है।नेतृत्व के स्तर पर जो यात्रा होती है, उसमें हम रक्षा सौदों को लेकर शामिल नहीं करते हैं।वो अलग ही ट्रैक पर चल रहा होता है।

ये तो समझ मे आता ही है कि 10 अप्रैल 2015 को डील होती है।उसके दो दिन पहले 8 अप्रैल को विदेश सचिव के अनुसार एचएएल डील में शामिल है। उसके 14 दिन पहले डास्सो एविएशन के बयान के अनुसार सरकारी कंपनी एचएएल डील में शामिल है। अब ये बात थोड़ी खुजली काटने लायक जरूर है कि अम्बानी जी इस सीन में कैसे आगये ? ये डील किसके इशारे पर होती है? 

गंगा की सफाई का ढोंग

2014 में साहेब जैसे ही प्रधानमंत्री बने , उन्होंने दिखावे के लिए गंगा एक्शन प्लान का नाम बदल दिया । अब गंगा एक्शन प्लान को हटाकर,  "नमामि गंगे" योजना कर दी।  और उस समय उन्होंने उस परियोजना के लिए लगभग लगभग एक भारी भरकम रकम को एलॉट किया लेकिन । 4 साल में सरकार उस पैसे का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाई । और जब संसद में सरकार ने नमामि गंगे योजना की रिपोर्ट सीएजी को सौंपी तो सीएजी ने सारा कच्चा चिट्ठा सामने रख दिया ।

सीएजी के मुताबिक 2014 से 2017 के बीच नमामि गंगे के लिए आवंटित पैसों में से 50% हिस्सा भी खर्च नही किया गया।  ऐसे में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के 2133 करोड़, 422 करोड़ और 60 करोड रुपए खर्च ही नहीं किए गए ।
जबकि यह रकम बहुत सारे राज्य के कार्यक्रम और  एजेंसियों के उपक्रमों के साथ खर्च करनी थी । सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि "46 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इंटरसेक्शन और डायवर्जन प्रोजेक्ट्स और नहर पर योजनाओं की लागत पांच हज़ार करोड़  से ग्यारह हजार करोड़ थी।

2710 करोड़ रुपए की लागत वाली 26 परिजनों में जानबूझकर देरी की गई । जिसकी वजह भूमि का उपलब्ध नहीं होना और ठेकेदारों की कामचोरी बताई गई।  रिपोर्ट में सीएजी ने  बताया कि कार्य को अंतिम रूप नहीं दिए जाने की वजह से स्वच्छ गंगा नदी में से एक भी रुपए का इस्तेमाल नहीं किया जा सका है।  और इसके तहत कुल 198 करोड रुपए अभी बैंक में पड़े हुए हैं ।

अब जब सरकार खुद भी सफाई के और काम के आंकड़े देती है , तो ही स्थिति और भी भयंकर बन जाती है।  सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे योजना शुरू की । 3 सालों में सरकार ने 4131 करोड़ रुपए दिए और सफाई के लिए कुल बीस हज़ार करोड रुपए अलॉट किए। लेकिन उसमें से अभी तक केवल तीन हज़ार करोड रुपए ही इस्तेमाल हो सके हैं । देश के पांच अलग-अलग राज्यों के 97 शहरों से होकर गुजरने वाली 2525 किलोमीटर लंबी गंगा के किनारे बसे हुए शहरों से लगभग लगभग 2953 मिलियन टन कचरा निकलता है।

गंगा के किनारे बसे हुए घाटों और रिवरफ्रंट के विकास के नाम पर 65 प्रोजेक्ट चालू करने की बात थी। और वह शुरू भी किए गए लेकिन अभी तक 20 ही पूरे हो पाए हैं। सीएजी की रिपोर्ट आगे अभी बताती है कि गंगा की सफाई से जुड़े 154 प्रोजेक्ट ओं में से सिर्फ 71 को ही मजबूत मंजूरी मिली है। और गंगा को मैली होने से बचाने के लिए 46 ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाने हैं, जिसमें से 26 का काम बहुत ही देरी से चल रहा है ।कुल मिलाकर 2958 करोड़ रुपए तक आग की तरफ फूंक डाले गए हैं। लेकिन गंगा की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।

यहां तक की सरकार की रिपोर्ट कहती है कि गंगा 150% ज्यादा गंदी हो गई है । एक आरटीआई के माध्यम से जब गंगा नदी की सूचना मांगी गई तो उसके बदले जो प्रधानमंत्री कार्यालय का जवाब आया वह बहुत ही ज्यादा हैरान करने वाला था ।और उससे यह भी पता चला कि बहुत ज्यादा हल्ला गुल्ला करके, बहुत ज्यादा शोर शराबा और पांच सौ जगह बात करके जिस नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी वह सिर्फ और सिर्फ पेपर पर ही है।

बैंको की हालत

पंजाब नेशनल बैंक दिवालिया हो गया और विलय होने की कगार पर है,रिलायंस इंश्योरेंस के सामने भारत के सरकारी तंत्र का एल.आई.सी. बर्बाद हो रहा है।बी.एस.एन.एल. बर्बाद हो रहा है।HAL को नाकारा घोषित कर दिया। और ओएनजीसी के फायदे को सो गुज़रती बर्बाद कंपनियों को बचाने में लगा दिया, सरकारी उपक्रमो खास कर बैंको का खूब दुरपयोग किया गया साहेब के द्वारा, अपने निजी हितों को साधने में । और लोन दिलवा कर अपने दोस्तों को बाहर भेज दिया, फिर  उन पैसो को एनपीए में डाल कर हमेशा के लिए क्लोज कर दिया। एनपीए के इस खेल में सरकार ने अपना मोहरा प्रमुख बैंको को बनाया है। प्राइवेट सेक्टर की बैंको का एनपीए लगभग न के बराबर रहा है, सिर्फ सार्वजनिक सेक्टर की बैंको पर एनपीए इतना ज्यादा कैसे हो सकता है ? इशारा साफ है कि सार्वजनिक क्षेत्रो में पैसा जनता का होता है, और जहा जनता का पैसा होता है वहा तो सत्ता में बैठे लालचियों के लिये खुला ऑफर रहता है । उन्हें ये पता है कि वो पेटभर कर नंगी नाच कर लेंगे फिर कोई एक दो कलम चला कर सब कुछ बट्टा खाते में डाल देंगे।

रिजर्व बैंक ने कहा है, 30 जून, 2014 तक सरकारी क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए 2,24,542 करोड़ रुपये था जो साढ़े तीन साल यानी दिसंबर 2017 तक बढ़कर 7,23,513 करोड़ रुपये हो गया। रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की रिपोर्ट के आधार पर यह आंकड़ा जारी किया है।
आरटीआई में 30 जून, 2018 तक बैड लोन की जानकारी मांगी गई थी लेकिन आरबीआई ने आंकड़ा नहीं होने का हवाला देकर आगे की सूचना देने में असमर्थता जाहिर की।

आरबीआई ने आरटीआई के जवाब में यह भी बताया है कि अप्रैल 2014 से लेकर 31 मार्च, 2018 तक इन बैंकों द्वारा कुल 1,77,931 करोड़ रुपये की लोन रिकवरी हुई है। यह आंकड़ा दिसंबर 2017 तक बांटे गए बैड लोन से बहुत छोटा है। बता दें कि कुछ दिनों पहले रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने संसदीय समिति को लिखित जवाब में कहा था कि उन्होंने बड़े बैंक घोटालेबाजों की एक लिस्ट प्रधानमंत्री कार्यालय भेजकर आगाह किया था लेकिन उनमें से एक के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं हुई।

भारतीय स्टेट बैंक का एनपीए सर्वाधिक 1.86 लाख करोड़ रुपए रहा। इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक ( 57,630 करोड़ रुपए), बैंक ऑफ इंडिया (49,307 करोड़ रुपए), बैंक ऑफ बड़ौदा (46,307 करोड़ रुपए), कैनरा बैंक (39,164 करोड़ रुपए) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का (38,286 करोड़ रुपए) का नंबर रहा। निजी बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक 44,237 करोड़ रुपए के एनपीए के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद एक्सिस बैंक 22,136 करोड़ रुपए, एचडीएफसी बैंक 7,644 करोड़ रुपए और जम्मू एंड कश्मीर बैंक का एनपीए 5,983 करोड़ रुपए रहा।

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने हाल ही में देश के सबसे बड़े 50 लोन बकाएदारों (सिर्फ कंपनियों) की सूची जारी की है। इस सूची में कुछ ऐसी कंपनियों के नाम भी शामिल हैं, जिनका देश के साथ-साथ विदेशों में भी काफी बोलबाला है। इन सभी बकाएदारों पर कुल मिलाकर लगभग 40,528 करोड़ रुपए का कर्ज है। संघ बैंकों में पड़े आम लोगों के पैसों को सुरक्षित रखने के लिए जल्द से जल्द बकाएदारों से पैसे वसूलने की मांग कर रहा है।

खैर रिजर्व बैंक के मुताबिक पिछले चार साल में मात्र 29 हजार करोड़ की वसूली हो पाई है। पिछले चार वित्तीय वर्ष (2014-2018) में 21 सार्वजनिक बैंक महज 29,343 करोड़ रुपये की वसूली कर पाए हैं। जबकि इस दौरान बैंकों ने 2.72 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को राइट ऑफ कर दिया ।और यह जानकारी संसद में खुद हमारे होनहार वित्त राज्य मंत्री ने दी है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीजेपी के कुछ नेताओं ने शनिवार को ट्वीट कर यह दावा किया था कि, 'इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड' (IBC) की वजह से 4 लाख करोड़ के एनपीए की वसूली हुई है। यूपीए सरकार द्वारा कॉरपोरेट को दिया गया करीब 9 लाख करोड़ रुपये का कर्ज एनपीए या फंसे कर्ज में तब्दील हो गया था, उसमें से ही यह वसूली की गई है।

लेकिन रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2016-17 और 2017-18 (दिसंबर तक) में सार्वजनिक बैंकों ने महज 15,786 करोड़ रुपये की वसूली की है। इनमें आईबीसी सहित सभी माध्यमों से वसूली शामिल है। बैंकों ने आईबीसी के तहत जनवरी 2017 से वसूली शुरू की थी।

रिजर्व बैंक के इन आंकड़ों की जानकारी खुद वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने राज्यसभा में 27 मार्च को दी थी. इस दौरान सार्वजनिक बैंकों की 89 फीसदी गैर निष्पादित संपत्त‍ि यानी एनपीए की वसूली नहीं हो पाई और इन्हें बट्टे खाते में डालना पड़ा।

भारतीय रेल

आज भी आज भारत की 80% , जी हां ध्यान से पढ़िए 80% ट्रेनें समय से कभी नहीं चल पाती हैं।

साल 2016-17 के दौरान मेल-एक्सप्रेस ट्रेन के समय पर गंतव्य पर पहुंचने का औसत 76 फीसदी रहा था। इसका मतलब यह है कि 76 फीसदी ट्रेनें टाइम पर चली थीं। वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान मेल-एक्सप्रेस ट्रेन की समय पर पहुंचने की दर घटकर 71.38 फीसदी रह गई।
अगर पैसेंजर ट्रेनों की बात करें तो वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान समय पर पहुंचने की औसतन दर 76.53 फीसदी रही, जो वर्ष 2017-18 में गिरकर 72.66 फीसदी रह गई।

रेल मंत्रालय में निदेशक (सूचना एवं प्रसार) वेदप्रकाश का कहना है कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने पर पूरा जोर दे रही है। उन्होंने बताया कि साल 2009-2014 के दौरान रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर पर सालाना 24,307 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। मोदी सरकार में साल 2014-15 में इस मद में 58,718 करोड़ रुपये का निवेश किया गया।
वित्त वर्ष 2015-16 में इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़कर 93,520 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. वित्त वर्ष 2016-2017 के दौरान रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में 1,09,935 करोड़ रुपये का निवेश किया गया।
वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश का लक्ष्य 1,46,500 करोड़ रुपये तय किया गया है।वेदप्रकाश के मुताबिक देश भर में रेलवे लाइन डबल की जा रही है। उनके विद्युतीकरण और आधुनिकीकरण का काम चल रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार की वजह से भी रेलवे की आवाजाही पर असर पड़ा है।

साल 2019 तक डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर काम करना शुरू कर देगा तो उसके बाद मालगाड़ियों का दबाव मौजूदा लाइनों से हट जाएगा। इससे पैसेंजर ट्रेन को तेजी से और समय पर चलाया जा सकेगा।पूरे देश में रेलवे सुरक्षा पर फोकस रेलवे की प्रीमियम ट्रेनें शताब्दी और राजधानी तक 2 से लेकर 6 घंटे की देरी से चल रही हैं।  रेलवे का इस पर कहना है कि "सुरक्षित यात्रा अधिक जरूरी है"। पूरे देश में सरकार का फोकस रेलवे को सुरक्षित तरीके से चलाने पर है।  जिन रेल ट्रैक और स्टेशन पर मरम्मत और सेफ्टी के काम बकाया थे उन्हें तेजी से पूरा किया जा रहा है।

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने रेलवे सुरक्षा से संबंधित कार्य जल्द पूरा करने के निर्देश जारी किये है। उफ्फ इतना सारा काम और प्लान बनाया गया है कि लिखते लिखते हाथ दर्द करने लगा।  लेकिन 4 साल ले बाद और यात्रियों से मरम्मत के नाम पर इतना पैसा लेने के बाद भी क्या हाल है ?

अगर आपको रेल यात्रा करनी ही पड़े तो अपने हाथ में काफी समय एक्स्ट्रा लेकर चलियेगा। इसकी वजह यह है कि रेलवे के कई सेक्शन में मेंटेनेंस के नाम पर ब्लॉकेज चल रही है। इस वजह से ट्रेनें लेट चल रही है।
रेलवे का कहना है कि सुरक्षा उसकी उच्च प्राथमिकता में शामिल है। इस वजह से पटरियों को मेंटेन करना जरूरी है। आम तौर पर कोहरा पड़ने या बाढ़ आने की वजह से ही ट्रेनें देर से चलती हैं। रेलगाड़ियों के देरी से चलने के चलते देश भर में यात्री परेशान हैं।

रेलवे की लंबी दूरी की तमाम ट्रेनें घंटों देरी से चल रही हैं। उनके डेस्टिनेशन पर पहुंचने का कोई समय भी निर्धारित नहीं है। रेल मंत्रालय के आंकड़े भी यहीं कहते हैं कि रेलवे का टाइम टेबल ही बिगड़ चुका है। दिलचस्प यह है कि लेट चलने वाली ट्रेन में मेल एक्सप्रेस ही नहीं, राजधानी-शताब्दी और दुरंतो भी शामिल है।ट्रेनों की  लेटलतीफी दरअसल कोई टेक्निकल प्रॉब्लम नहीं,  बल्कि रेलवे विभाग की लापरवाही है।  रेलवे विभाग बिल्कुल ही निरंकुश एवं कार्य विहीन हो चुका है।  रेलवे विभाग को यात्रियों के और देश के लोगों के समय की कोई चिंता नहीं है।  ना ही हमारे रेल मंत्री या प्रधानमंत्री को है।  अगर इनको थोड़ी भी चिंता होती तो हवाई जहाज में यात्रियों को जो सुविधा दी गई है,  या जो चार्टर तैयार किया गया है वैसा ही कुछ चार्टर रेल यात्रियों के लिए भी बनाया जाता । जिससे कि कम से कम समय पर सही जगह ना पहुंच पाने के एवज में उन्हें कुछ तो पैसा मिलता।

आप जहां पर हवाई जहाज के यात्रियों को बीस हजार रुपये दे रहे हैं, वही पर आप रेल यात्रियों को बस दो हज़ार ही दीजिए।  लेकिन कुछ तो मुआवजा दीजिए । आखिर में यह दोहरा रवैया क्यों ?  और एक बात यह भी समझ में नहीं आती कि जो भारत सरकार रेलवे के यात्रियों को लेटलतीफ होने पर कोई मुआवजा नहीं देती है,  वह भारत सरकार प्राइवेट कंपनियों से उनके यात्रियों को मुआवजा कैसे दिलवाएगी ?  क्या यह एक तरह की निरंकुशता नहीं है,  जो काम हम खुद नहीं कर रहे हैं  वह काम हम दूसरों से कैसे करा सकते हैं ?

शिक्षा का स्तर

शिक्षा का हाल तो ये बना दिया गया है कि 3 साल से कई कई विश्वविद्यालय में वार्षिक परीक्षा ही नही होती है, ओर कुछ भंगेड़ी कहते है कि नौकरी है पर काबिल लोग नही है।

स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच पाता है। भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानी सिर्फ़ 11 फ़ीसदी है।अमरीका में ये अनुपात 83 फ़ीसदी है।इस अनुपात को 15 फ़ीसदी तक ले जाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को 2,26,410 करोड़ रुपए का निवेश करना होगा । जबकि 11वीं योजना में इसके लिए सिर्फ़ 77,933 करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया गया था।

हाल ही में नैसकॉम और मैकिन्से के शोध के अनुसार मानविकी में 10 में से एक और इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके चार में से एक भारतीय छात्र ही नौकरी पाने के योग्य हैं। (पर्सपेक्टिव 2020) भारत के पास दुनिया की सबसे बड़े तकनीकी और वैज्ञानिक मानव शक्ति का ज़ख़ीरा है इस दावे की यहीं हवा निकल जाती है।राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का शोध बताता है कि भारत के 90 फ़ीसदी कॉलेजों और 70 फ़ीसदी विश्वविद्यालयों का स्तर बहुत कमज़ोर है।

भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का आलम ये है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी 15 से 25 फ़ीसदी शिक्षकों की कमी है।भारतीय विश्वविद्यालय औसतन हर पांचवें से दसवें वर्ष में अपना पाठ्यक्रम बदलते हैं लेकिन तब भी ये मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहते हैं।आज़ादी के पहले 50 सालों में सिर्फ़ 44 निजी संस्थाओं को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। पिछले 16 वर्षों में 69 और निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता दी गई।

कांग्रेस के समय में  देश के हर विश्वविद्यालय को वार्षिक अनुदान दिया जा रहा था। 2014 के बाद साहेब ने   12वीं पासईरान वाली तुलसी को कहकर के इस अनुदान में 50% कटौती करवा दी।  और इसके बाद उन्होंने अपने चुनावी स्पांसर और परम मित्र अम्बानी के  विश्व विद्यालय को देश के १० विश्वविद्यालय में शामिल करा कर १००० करोड़ का अनुदान दिया। और सबसे ज्यादा मजे की बात यह रही कि अंबानी बाबू का यह विश्वविद्यलय अभी तक एक ईंट भी नही जोड़ पाया है, इस विश्वविद्यलय का कोई भी वजूद अब तक तो नही है, ये सिर्फ कागजों पर है । और इस कागजी विश्वविदयालय को साहेब ने 1000 करोड़ रुपये का तोहफा देकर पूरे देश को मूर्ख बनाया है।

ये सब कुछ बहुत ही गिने चुने  मुद्दे थे, जिस पर साहेब ने 2014 से पहले पीएचडी तक कर डाली थी। लेकिन साहेब जैसे ही प्रधानमंत्री बने साहेब को शायद गजनी वाली बीमारी लग गयी। और साहेब ये सब मुद्दे बिल्कुल ही भूल गए, और ऐसा भूले की याद दिलाने पे भी याद नही कर पाते। जुमलेबाजी, हवाबाजी, फेकूपना, झूठ , फरेब, बहकावां पन, और बेहयापन ये सब आज की सरकार के नए पैतरे और नए गुण है, जिसे वो अपने भक्तों के साथ पूरे देश मे सफलतापूर्वक अप्लाई कर रहे है। किसी को कुछ भी बोलने या पूछने की जरूरत नही है, क्योकि ऐसा करने पर आप को जूता उठाकर मारने के लिए मूर्खो की फौज दौड़ पड़ेगी।

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