उसको, उसके जैसा लिखने का हुनर पाऊं कैसे
हुस्न के इतने सारे जलवे लफज़ों मे सजाऊ कैसे
उसको, उसके जैसा लिखने का हुनर पाऊं कैसे
ये आंखे,ये होंठ, ये तरीन चेहरा,ये अदा,ये अलके
मेरे खुदा मै इन सबको एक ग़ज़ल मे लाऊँ कैसे
मेरे सामने बैठी उस लड़की को अब बताऊँ कैसे
किताब ए मौशिकी के ऊपर कलम चलाऊं कैसे
उसके हसने भर से शमा ए शाम रोशन होती है
ये बात नादान इन जुगुनूओ को मै समझाऊ जैसे
उसने जिसको भी छूवा वो अनमोल बन गया
फिर मै इन गज़लो का कोई मोल लगाऊं कैसे
कहा था उनके आने पर लबों को खामोश रखूंगा
अब इन धड़कनो की हलचल उनसे छुपाऊं कैसे
उसकी मर्जी वो चाहे तो सब कुछ खरीद ले मेरा
उससे कुछ भी खरीदने की हैसियत मै लाऊ कैसे
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